‘साहब, हम अभी ज़िंदा हैं कागजों में मत मारिए…’, दर-दर भटक रहा बुजुर्ग दंपती, बाराबंकी में फिल्म कागज वाली कहानी

Edited By Mamta Yadav,Updated: 09 May, 2025 02:25 PM

sir we are still alive don t kill us on paper    elderly couple wandering

आपने बॉलीवुड की कागज फिल्म तो देखी ही होगी, जिसमें एक जिंदा आदमी को विभागीय अधिकारियों की लापरवाही के चलते दस्तावेजों में मृत घोषित कर दिया गया था। इसके बाद वह शख्स अपने आप को जिंदा साबित करने के लिए सालों तक विभागों के चक्कर लगाता रहा। ऐसा ही एक...

Barabanki News, (अर्जुन सिंह): आपने बॉलीवुड की कागज फिल्म तो देखी ही होगी, जिसमें एक जिंदा आदमी को विभागीय अधिकारियों की लापरवाही के चलते दस्तावेजों में मृत घोषित कर दिया गया था। इसके बाद वह शख्स अपने आप को जिंदा साबित करने के लिए सालों तक विभागों के चक्कर लगाता रहा। ऐसा ही एक मामला उत्तर प्रदेश के बारांबकी से सामने आया है। यहां के हरख ब्लॉक की गढ़ी राखमऊ पंचायत में रहने वाले मोहम्मद आशिक और उनकी पत्नी हसमतुल निशा का जीवन उस समय थम सा गया जब उन्हें सरकारी रिकॉर्ड में ‘मृत’ घोषित कर दिया गया। हैरानी की बात यह है कि यह वृद्ध दंपती आज भी पूरी तरह स्वस्थ हैं और समाज कल्याण की कई योजनाओं जैसे राशन आदि का लाभ ले रहे हैं। बावजूद इसके उनकी वृद्धा पेंशन करीब एक साल से बंद कर दी गई है।
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मृत घोषित कर देना प्रशासनिक लापरवाही का बड़ा उदाहरण
गुरुवार की दोपहर करीब 2 बजे यह बुज़ुर्ग दंपती हाथों में तख्ती लिए जिस पर लिखा था "साहब हम अभी ज़िंदा हैं!", संबंधित अधिकारियों से न्याय की गुहार लगाने पहुंचे। चेहरे पर थकान आंखों में पीड़ा, लेकिन ज़िंदा रहने का जज़्बा आज भी कायम है। मोहम्मद आशिक ने बताया कि उन्होंने कई बार शिकायती प्रार्थना पत्र देकर पेंशन पुनः चालू कराने की मांग की, लेकिन अब तक कोई सुनवाई नहीं हुई। इस पूरे मामले में सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि बिना ठोस प्रमाणों के किसी को मृत घोषित कर देना प्रशासनिक लापरवाही का बड़ा उदाहरण है। बुज़ुर्ग दंपती को न तो कोई सूचना दी गई और न ही उनके जीवित होने की पुष्टि के लिए उन्हें बुलाया गया। अब वह अपनी पहचान अपनी सांसों का सबूत लेकर बार-बार दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं।

इस मामले में जब जिला समाज कल्याण अधिकारी सुषमा वर्मा से संपर्क किया गया तो उन्होंने बताया कि उक्त प्रकरण की जांच कर उचित कार्यवाही की जा रही है। हालांकि यह जवाब भी उन कई जवाबों की तरह है जो अक्सर कार्रवाई के नाम पर फाइलों में ही दम तोड़ देते हैं। लेकिन अब यह मामला सामने आया है तो उम्मीद है कि सिस्टम की नींद खुलेगी और इस बुज़ुर्ग दंपती को न्याय मिलेगा। बता दें कि सरकारी आंकड़ों में मृत घोषित किए जाने के बावजूद जब कोई अपनी सांसों का सबूत लेकर सड़कों पर उतर आए तो यह सिर्फ एक प्रशासनिक भूल नहीं बल्कि मानवता पर चोट है। यह खबर सिर्फ एक दंपती की नहीं बल्कि उस पूरी व्यवस्था की तस्वीर है जिसमें जीवित रहना भी कभी-कभी प्रमाण मांगता है।

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