मुलायम के खिलाफ लड़ चुके बाहुबली रमाकांत यादव की सपा में होगी घर वापसी

Edited By Ajay kumar,Updated: 03 Oct, 2019 12:53 PM

ramakant yadav will return home in sp

राजनीति संभावनाओं का खेल है। इसमें न कोई पक्का मित्र होता है न ही शत्रु। कब क्या हो जाए कुछ नहीं कहा जा सकता। ऐसा ही मामला इन दिनों आजमगढ़ में देखने को मिल रहा है।

आजमगढ़: राजनीति संभावनाओं का खेल है। इसमें न कोई पक्का मित्र होता है न ही शत्रु। कब क्या हो जाए कुछ नहीं कहा जा सकता। ऐसा ही मामला इन दिनों आजमगढ़ में देखने को मिल रहा है। यहां से समाजवादी पार्टी के पूर्व सांसद व बाहुबली नेता रमाकांत यादव ने यू टर्न ले लिया है। उनके फिर से समाजवादी पार्टी में घर वापसी की खबरें मिल रही हैं। ज्ञात हो कि सपा से बाहर किए जाने के बाद उन्होंने कहा था कि ‘अब वे तो क्या सपा में उनकी लाश भी नहीं जाएगी।’ लेकिन अब वक्त बदल चुका है। 

सपा सूत्रों के मुताबिक रमाकांत यादव, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की मौजूदगी में 6 अक्टूबर को समाजवादी पार्टी ज्वाइन कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि दल-बदल में माहिर रमाकांत ने राजनीतिक करियर डूबता देख समाजवादी पार्टी में वापसी का फैसला लिया है।

बीजेपी से टिकट कटने पर कांग्रेस में हुए शामिल
बता दें कि वर्ष 2019 में बीजेपी से टिकट न मिलने से नाराज रमाकांत ने कांग्रेस का हाथ पकड़ा था। कांग्रेस ने उन्हें भदोही से मैदान में उतारा था, लेकिन उन्हें बीजेपी के हाथों हार का सामना करना पड़ा था। इतना ही नहीं उनकी जमानत भी जब्त हो गई थी। निर्दलीय राजनीति की शुरुआत करने वाले रमाकांत यादव मुलायम सिंह के करीबी हुआ करते थे। अब रमाकांत यादव के सपा में जाने की खबरों को बीजेपी ने राजनीतिक स्वार्थ का फैसला बताया है।

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राजनीतिक स्वार्थ के माहिर माने जाते हैं रमाकांत
वर्ष 1984 में जगजीवन राम की पार्टी से राजनीतिक जीवन की शुरूआत करने वाले रमाकांत यादव राजनीतिक स्वार्थ के माहिर माने जाते हैं। एक दौर था जब रमाकांत मुलायम सिंह के सबसे करीबी माने जाते थे। गेस्ट हाउस कांड में भी मायावती के साथ दुव्र्यवहार के मामले में रमाकांत का नाम सामने आया था। बाद में सीएम रहते हुए मुलायम ने रमाकंत को हत्या के आरोप से बचाया था लेकिन रमाकांत यादव मुलायम सिंह के भी नहीं हुए और वर्ष 2004 में राजनीतिक लाभ के लिए सपा को छोड़ बसपा के साथ चले गए थे। वैसे रमाकांत बसपा के भी बनकर नहीं रह सके और सांसद बनने के बाद वर्ष 2007 में पार्टी छोड़ दिया और वर्ष 2008 में बीजेपी में शामिल हो गए। वर्ष 2009 में रमाकांत बीजेपी के टिकट पर सांसद बने लेकिन एक बार फिर राजनीतिक स्वार्थ और सवर्ण विरोधी छवि उनके रास्ते का रोड़ा बनी। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और सीएम योगी के खिलाफ बयानबाजी का परिणाम रहा कि बीजेपी ने वर्ष 2019 में रमाकांत को पार्टी से टिकट नहीं दिया और मजबूरी में रमाकांत ने कांग्रेस का दामन थामा। सपा से समझौते के कारण कांग्रेस ने भी रमाकांत को आजमगढ़ से टिकट नहीं दिया बल्कि भदोही से मैदान में उतार दिया जहां रमाकांत की जमानत जब्त हो गयी। इसके बाद से ही उन्हें अपना राजनीतिक कैरियर समाप्त होता दिखने लगा था। चुनाव के बाद से ही रमाकांत अपना कैरियर बचाने के लिए अखिलेश को मनाने में लगने थे। 

PunjabKesariलाश होती तो नहीं जाती लेकिन मैं तो जिंदा जा रहा हूं: रमाकांत
रमाकांत ने बताया कि ‘मैं सपा अध्यक्ष की अगुवाई में 6 अक्टूबर को समाजवादी पार्टी में जा रहा हूं। जब उनसे पूछा गया कि आपने कसम खाई थी कि ‘सपा में मेरी लाश भी नहीं जाएगी’ तो उन्होंने कहा, हां कहा था, लेकिन मैं तो जिंदा जा रहा हूं। लाश होती तो नहीं जाती।’ इस दौरान उन्होंने प्रदेश की योगी सरकार पर हमला बोला। 

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राजनीतिक रूप से वे मृत हो चुके हैं रमाकांत: भाजपा 
वहीं इस मामले में भाजपा के जिला महामंत्री का कहना है कि रमाकांत भदोही से हार चुके हैं। राजनीति में उनके लिए कोई जगह नहीं बची है। उनकी दुकान बंद हो चुकी है। अब उनके पास कोई चारा नहीं है इसलिए वे सपा में जाकर अपनी राजनीतिकि हैसियत बचाने की कोशिश कर रहे हैं जो अब बचने वाली नहीं है। सपा में लाश भी न जाने के सवाल पर ब्रजेश ने कहा कि यह रमाकांत की फितरत है। सपा में मेरी लाश नहीं जाएगी ऐसा उन्होंने कसम खाया था। इस तरह की कस्में उनके लिए आम बात है। राजनीतिक रूप से वे मृत हो चुके हैं। उनकी राजनीति में कोई जगह नहीं बची है।

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