प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट के खिलाफ याचिका दाखिल: जितेंद्रानंद सरस्वती की अर्जी में लिखा- 1192 से 1947 के बीच विदेशी हमलावरों ने धार्मिक स्थलों को ध्वस्त किया था

Edited By Imran,Updated: 25 May, 2022 02:04 PM

petition filed against places of worship act

ज्ञानवापी मस्जिद मामले को चल रहे विवाद के बीच प्लेसेज ऑफ वर्शिप (स्पेशल प्रॉविजंस) एक्ट 1991 के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है। अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती ने उपासना अधिनियम एक्ट 1991 को चुनौती दी है।

वाराणसी: ज्ञानवापी मस्जिद मामले को चल रहे विवाद के बीच प्लेसेज ऑफ वर्शिप (स्पेशल प्रॉविजंस) एक्ट 1991 के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है। अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती ने उपासना अधिनियम एक्ट 1991 को चुनौती दी है।

उन्होंने बुधवार को कहा कि दिल्ली की संसद ने एक ऐसा एक्ट पास किया कि हम काशी और मथुरा के अपने देव स्थानों के लिए दावा नहीं कर सकते हैं। हम दावा क्यों नहीं कर सकते हैं, यह भला कहां का न्याय है। इसलिए हमने आज सुप्रीम कोर्ट में प्लेसेज ऑफ वर्शिप (स्पेशल प्रॉविजंस) एक्ट, 1991 यानी उपासना स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम, 1991 और उसकी धाराओं को जनहित याचिका के माध्यम से चैलेंज किया है। हमने मांग की है कि कहीं से भी उपयोगी प्रतीत न होने वाले इस अधिनियम के प्रावधानों से हमें निजात दिलाई जाए।

स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि भारतीय संविधान में धर्म स्वतंत्रता के मूल अधिकार के अंतर्गत जब हमारे धर्म पर प्रहार हुए तो एक विधेयक लाया गया। उस व्यवस्था को उपासना स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम नाम दिया गया। हम भले ही यह कह लें कि हम स्वतंत्र देश के निवासी हैं। मगर, स्वतंत्रता प्राप्ति की तिथि के पूर्व जिस गुलामी के हालात में हमारे देवस्थान थे, हम उन्हें प्राप्त नहीं कर सकते हैं। उन देव स्थानों की बेहतरी के बारे में नहीं सोच सकते हैं।

'विदेशी हमलावरों ने मंदिरो को तोड़ा'
बता दें कि जितेंद्रानंद सरस्वती की ओर से दाखिल इस अर्जी में कहा गया है कि 1192 से 1947 के बीच विदेशी हमलावरों ने हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध मत के सैकड़ों धार्मिक स्थलों को ध्वस्त किया था। इतिहास में इसका ब्योरा और प्रमाण सभी दर्ज हैं।

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