राम मंदिरः दक्षिण भारत के कारसेवकों का प्रवेशद्वार बनी थी झांसी

Edited By Moulshree Tripathi,Updated: 02 Aug, 2020 08:18 PM

jhansi was the gateway for the kar sevaks of south india

उत्तर प्रदेश के अयोध्या में भगवान श्रीराम के भव्य मंदिर का भूमिपूजन बुधवार को होने जा रहा है और इसी के साथ देश और दुनिया में बसे हिंदुओं की प्रभु राम के मंदिर निर्माण की इच्छा सदियों के इंतजार के बाद मूर्तरूप

झांसी: उत्तर प्रदेश के अयोध्या में भगवान श्रीराम के भव्य मंदिर का भूमिपूजन बुधवार को होने जा रहा है और इसी के साथ देश और दुनिया में बसे हिंदुओं की प्रभु राम के मंदिर निर्माण की इच्छा सदियों के इंतजार के बाद मूर्तरूप लेने जा रही है। मंदिर के लिए विश्व हिंदू परिषद और राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के 30 साल पहले शुरू किये गये संघर्ष में हिस्सा लेने अयोध्या की ओर कूच करने वाले विशेषकर दक्षिण भारत के कारसेवकों का उत्तर में प्रवेश द्वार वीरांगना नगरी झांसी बनी थी और उस दौरान यहां की सड़के पूरी तरह से कारसेवकों से पट गयीं थीं।

भाजपा के तत्कालीन नगर अध्यक्ष व नगर पालिका झांसी के पूर्व अध्यक्ष डा.धन्नूलाल गौतम ने उस समय को याद करते हुए रविवार को बताया कि राममंदिर के लिए 1990 में शुरू हुए उस जनांदोलन के समय झांसी में चारों ओर लाखों कारसेवक ही कारसेवक नजर आते थे। पूरे देश का केन्द्र झांसी बना हुआ था। झांसी नगर के अलावा आस पास के ग्रामीण क्षेत्र के लोग भी उत्साह से भरे हुए थे और कारसेवकों का सभी सहयोग कर रहे थे। खेतों के रास्ते उन्हें अयोध्या भेजने का प्रबंध किया जा रहा था ताकि पुलिस उन्हें गिरफ्तार न कर सके। ट्रैक्टरों में भरकर लोग खाद्य सामग्री की व्यवस्था कर रहे थे।

विश्व हिन्दू परिषद के आह्वान पर देशभर के हिन्दुओं में अयोध्या में कारसेवा में शामिल होने का जुनून सवार था। अक्टूबर 1990 के अन्तिम सप्ताह में वीरांगना भूमि झांसी का सौभाग्य था कि हजारों की संख्या में देश के विभिन्न क्षेत्रों से आए हुए कारसेवकों का स्वागत करने का मौका मिला। झांसी रेलवे स्टेशन देश के बीचों बीच होने के चलते कारसेवक झांसी ही उतरते थे। उनकों झांसी से ही अयोध्या के लिए ट्रेन बदलनी होती थी।

तत्कालीन समाजवादी पार्टी की सरकार ने प्रशासन को कारसेवकों को झांसी में ही रोकने के आदेश दिये थे और यह प्रशासन के लिए भी यह बड़ी चुनौती थी। शासन की ओर से सख्ती से कारसेवकों को रोकने के आदेश दिये गये थे ताकि कारसेवक झांसी से अयोध्या की ओर कूच ही न कर सकें। यह सिलसिला जब शुरु हुआ तो थमने का नाम ही नहीं ले रहा था। नगर की सड़कों पर कारसेवकों का सैलाव उमड़ रहा था। चारों ओर जय श्रीराम-जय श्रीराम,रामलला हम आएंगे-मंदिर वहीं बनाएंगे,जैसे नारों से नगर गुंजायमान हो रहा था।

प्रशासन ने कारसेवकों को रोकने के लिए नगर के बीचोंबीच खण्डेराव गेट स्थित लक्ष्मी व्यायाम मंदिर व बुन्देलखण्ड डिग्री कॉलेज को अस्थाई जेल बनाते हुए कारसेवकों को उसमें बंद कर दिया था लेकिन इतनी बड़ी संख्या में एकत्र अनुशासित कारसेवकों को रोकना भी प्रशासन के लिए चुनौती बन गया। जब प्रशासन उनकी खानपान की व्यवस्था जुटाने में असमर्थ दिखने लगा तो यहां के लोगों ने कारसेवकों को पलकों पर बैठाया। उनके लिए पानी से लेकर भोजन तक की नि:शुल्क व्यवस्था गली गली करते हुए भोजन वितरण किया गया। इससे जहां प्रशासन ने राहत की सांस ली,वहीं कारसेवकों का उत्साह भी आसमान छूने लगा।

उधर 28 अक्टूबर 1990 को पूरी झांसी नगरी को खुली जेल घोषित कर दिया गया था यहां तक कि प्रशासन द्वारा बनाई गई अस्थाई जेल के दरवाजे खोल दिए गए और सीमाएं सील कर दी गई थी। कारसेवक भी यह जानते थे कि उन्हें झांसी पहुंचते ही गिरफ्तार कर लिया जाएगा इसलिए वे झांसी पहुंचने से पहले ही चेन खींचकर उतर जाते थे और इस तरह पूरे नगर में कारसेवक फैल गए। उनके स्वागत में लोग सड़कों पर उनके जरुरत की वस्तुंए वितरित करते दिखाई देते थे। सड़कों पर चारों ओर कारसेवकों का सैलाब उमड़ा हुआ था। ऐसे लगता था जैसे व्यवस्था किसी के हाथ में नहीं थी। बल्कि जनता और कारसेवक स्वयं व्यस्था को संभाल रहे थे।

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