Edited By Ajay kumar,Updated: 28 Jul, 2023 06:15 PM

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तीन तलाक के मामले में कहा कि केवल एक लिखित बयान में यह कहना कि पति ने अमुक तारीख को तीन तलाक दिया, को अंकित मूल्य पर नहीं लिया जा सकता है। पति द्वारा इसे सिद्ध करने की आवश्यकता है। उक्त आदेश न्यायमूर्ति ज्योत्सना शर्मा की एकलपीठ...
प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तीन तलाक के मामले में कहा कि केवल एक लिखित बयान में यह कहना कि पति ने अमुक तारीख को तीन तलाक दिया, को अंकित मूल्य पर नहीं लिया जा सकता है। पति द्वारा इसे सिद्ध करने की आवश्यकता है। उक्त आदेश न्यायमूर्ति ज्योत्सना शर्मा की एकलपीठ ने श्रीमती जाहिदा अंजुम द्वारा दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान पारित किया। संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपराधिक याचिका के माध्यम से याची ने अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, बांदा द्वारा दिनांक 6 मई 2005 को पारित आदेश को रद्द करने के लिए अनुरोध किया, साथ ही सीआरपीसी की धारा 125 के तहत आवेदन की तारीख से याची को प्रतिमाह 5000 रूपए की रखरखाव राशि का भुगतान करने के लिए विपक्षी को आदेश जारी करने की भी मांग की।

दरअसल याची ने वर्ष 2001 में संबंधित मजिस्ट्रेट के समक्ष अपने पति अतिकुर रहमान से भरण-पोषण की मांग करते हुए एक आवेदन दाखिल किया था, जिस पर ट्रायल कोर्ट ने उसके पक्ष में भरण पोषण के रूप में 1500 रूपये प्रतिमाह का भुगतान करने का आदेश दिया। उपरोक्त आदेश को चुनौती देते हुए याची ने भरण पोषण राशि बढ़ाने की मांग करते हुए तथा मजिस्ट्रेट द्वारा पारित भरण-पोषण आदेश को रद करने की मांग वाली दो अलग-अलग आपराधिक पुनरीक्षण याचिकाएं दाखिल कीं । याची का कहना था कि उसका कभी तलाक हुआ ही नहीं । याची के तर्कों का खंडन करते हुए विपक्षी ने बताया कि 20 अप्रैल 2004 को एक पंचायत में उसने अपनी पत्नी को तीन बार तलाक कहकर तलाक दिया था। उस पंचायत में पत्नी के रिश्तेदार भी शामिल थे।

सभी परिस्थितियों और तर्कों को सुनने के बाद न्यायालय ने स्पष्ट किया कि सिविल कोर्ट के आदेश को संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत चुनौती दी जा सकती है, न कि अनुच्छेद 226 के तहत। इसके साथ ही न्यायालय ने पिछले 17 वर्षों से लंबित वर्तमान मामले को निस्तारित करते हुए कहा कि पुनरीक्षण अदालत के फैसले को रद्द करने के साथ ही भरण-पोषण राशि में वृद्धि का मुद्दा स्वतः हल हो जाता है। अंत में कोर्ट ने याचिका को स्वीकार करते हुए संबंधित अदालत को फैसले की प्रमाणित प्रति दाखिल करने की तारीख से 3 महीने की अवधि के भीतर कानून के अनुसार निर्णय लेने का निर्देश दिया है।