Edited By Pooja Gill,Updated: 13 Jan, 2023 05:11 PM
Scholarship Scam: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) की लखनऊ खंडपीठ (Lucknow Bench) ने मदरसा छात्रों की छात्रवृत्ति (Scholarship) में करोड़ों रुपये का घोटाला (scam) मामले में सुनवाई...
Scholarship Scam: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) की लखनऊ खंडपीठ (Lucknow Bench) ने मदरसा छात्रों की छात्रवृत्ति (Scholarship) में करोड़ों रुपये का घोटाला (scam) मामले में सुनवाई के दौरान नाराजगी जताई। यह नाराजगी कोर्ट ने अभियोजन स्वीकृति (prosecution sanction) में 5 साल की देरी होने पर जताई है। अदालत ने माइनॉरिटी वेलफेयर (minority welfare) के डायरेक्टर से पूछा है कि जांच में दोषी पाए गए अफसरों से अभी तक वसूली क्यों नहीं की गई ? वहीं, कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई की तारीख 25 जनवरी को दी है।
बता दें कि लखनऊ बेंच के मुख्य न्यायमूर्ति (chief justice) राजेश बिंदल (Rajesh Bindal) और न्यायमूर्ति आलोक माथुर की खंडपीठ ने निदेशक अल्पसंख्यक कल्याण (Director Minorities Welfare) से पूछा है कि विभागीय जांच (departmental inquiry) में दोषी मिले अधिकारियों से छात्रवृत्ति की धनराशि अभी तक क्यों नहीं वसूली गई।
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उन्होंने निदेशक को इस बाबत शपथपत्र दाखिल करने को कहा। कोर्ट ने यह आदेश इस्लामिक मदरसा मॉर्डनाइजेशन टीचर्स एसोसिएशन (Islamic Madrassa Modernization Teachers Association) की वर्ष 2014 में दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया। मामले में अभियोजन स्वीकृति वर्ष 2019 में दी गई थी। कोर्ट ने कहा कि अगर 25 जनवरी तक निदेशक का शपथ पत्र नहीं आता है, तो उन्हें कोर्ट में हाजिर होना होगा।
मामले में बीपी सिंह के खिलाफ है FIR दर्ज
इससे पहले कोर्ट को प्रति शपथपत्र के जरिए बताया गया कि, हाथरस के तत्कालीन जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी बीपी सिंह ने छात्रों के फर्जी नाम से 24 करोड़ 92 लाख 76 हजार 312 रुपये के छात्रवृत्ति की मांग की थी। इस संबंध में वर्ष 2011-12 व 2012-13 का कोई रिकॉर्ड कार्यालय में नहीं है। मामले में बीपी सिंह के खिलाफ FIR दर्ज है।
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हालांकि निदेशक के संस्तुति देने के बाद वर्ष 2019 में अभियोजन शुरू हो सका है। वहीं, कोर्ट को यह भी बताया गया कि दोषी पाए गए अधिकारी से 27 लाख 25 हजार रुपये वसूली की नोटिस भेजी गई थी। इस पर हाईकोर्ट ने वसूली पर रोक लगा दी। कहा कि मामला करोड़ों रुपये का है तो सिर्फ 27 लाख 25 हजार की वसूली का ही स्पष्टीकरण क्यों दिया गया।