माघ मेले का पौष पुर्णिमा स्नान पर्व आज, कोरोना के चलते नहीं दिखी इस बार श्रद्धालुओं की भीड़

Edited By Tamanna Bhardwaj,Updated: 17 Jan, 2022 12:53 PM

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माघ मेले के दूसरे स्नान पर पौष पूर्णिमा के मौके पर करोना का ग्रहण देखने को मिल रहा है। इस बार श्रद्धालुओं में वह उत्साह नहीं देखा गया जो उत्साह हर साल देखा जाता था। देश में लगातार बढ़ रहे कोरोना माम...

प्रयागराज: माघ मेले के दूसरे स्नान पर पौष पूर्णिमा के मौके पर करोना का ग्रहण देखने को मिल रहा है। इस बार श्रद्धालुओं में वह उत्साह नहीं देखा गया जो उत्साह हर साल देखा जाता था। देश में लगातार बढ़ रहे कोरोना मामला की संख्या में एक तरफ जहां लगातार इजाफा देखने को मिल रहा है उसी के चलते माघ मेले के दूसरे स्थान पर बर भीड़ ना के बराबर देखी जा रही है। आज से ही कल्पवास की शुरुआत भी हो जाती है और आज के स्नान पर्व के साथ ही देश के कोने-कोने से आये श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाने के बाद 1 महीने तक संगम की रेती पर कल्पवास करते नजर आते हैं।
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हालांकि जो भी श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगा रहे हैं उनका कहना है कि वह मां गंगा से प्रार्थना कर रहे हैं कि देश दुनिया से जल्द से जल्द कोरोना महामारी दूर हो और सामान्य जीवन एक बार फिर से लौट आए। आज के दिन से ही कल्प प्रवासी पितरों के मोक्ष और अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति का संकल्प लेकर कल्पवास की भी शुरुआत करते हैं। यह कल्पवास पौष पूर्णिमा से लेकर माघी पूर्णिमा तक चलता है। श्रद्धालु सुबह 4 बजे से ही आस्था की डुबकी लगा रहे है और कोरोना जैसी महामारी खत्म हो इसके लिए प्रार्थना कर रहे है। मेला क्षेत्र इस बार 640 हेक्टेयर के 6 सेक्टरों में  बसाया गया है। कोविड के चलते स्नान घाटों का भी विस्तार किया गया है। स्नान घाटों पर डीप वाटर बैरिकेडिंग की गई है और जल पुलिस की भी तैनाती की गई है। संगम तट पर श्रद्धालु आस्था की डुबकी तो लगा ही रहे है साथ ही माँ गंगा के  गीत गाकर पूजा भी कर रहे है।

पौष पूर्णिमा के स्नान के बाद से ही माघ महीने की शुरुआत हो जाती है। प्रयागराज में माघ के महीने में ही हर साल लाखों श्रद्धालु एक महीने तक यहीं रहकर मोह- माया से दूर रहते हुए कल्पवास करते हैं। समूची दुनिया में कल्पवास सिर्फ प्रयागराज में त्रिवेणी के तट पर ही होता है। पौराणिक  मान्यता है कि पौष पूर्णिमा के दिन से ही सभी तैंतीस करोड़ देवी-देवता भी संगम की रेती पर आकर एक महीने के लिए अदृश्य रूप से यहां विराजमान हो जाते हैं। मान्यताओं के मुताबिक़ संगम की रेती पर कल्पवास करने वाले को मोक्ष की प्राप्ति होती है और वह जीवन- मरण के बन्धनों से आज़ाद हो जाता है। 

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