Chaitra Navratri 2023: चैत्र नवरात्रि का शुभारंभ आज, पहले दिन होती है देवी मां के पहले स्वरुप शैलपुत्री की पूजा

Edited By Anil Kapoor,Updated: 22 Mar, 2023 11:43 AM

on the first day shailputri is worshiped as the first form of mother goddess

आज से चैत्र नवरात्रि (Chaitra Navratri) का शुभारंभ हो गया है। नवरात्र के पहले दिन देवी मां के पहले स्वरूप शैलपुत्री (Maa Shailputri) की पूजा अर्चना की जाती है। नवरात्रों में देशभर के मंदिर (Temple) सजाए जाते हैं, जहां पूरे नौ दिन मां के सभी रूपों की...

वाराणसी(विपिन मिश्रा): आज से चैत्र नवरात्रि (Chaitra Navratri) का शुभारंभ हो गया है। नवरात्र के पहले दिन देवी मां के पहले स्वरूप शैलपुत्री (Maa Shailputri) की पूजा अर्चना की जाती है। नवरात्रों में देशभर के मंदिर (Temple) सजाए जाते हैं, जहां पूरे नौ दिन मां के सभी रूपों की पूजा की जाती है। काशी के अलइपुरा इलाके स्थित देवी शैलपुत्री मंदिर में आज नवरात्रि (Navratri) के पहले दिन भक्तों की काफी भीड़ उमड़ पड़ी। दूर-दराज से श्रद्धालु (Devotees) देवी मां के दर्शन के लिए तड़के सुबह से ही जुटने लगे और माँ शैलपुत्री (Maa Shailputri) से अपने परिवार की सुख-शांति की मन्नतें मांगी।

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काशी में नवरात्रि के 9 दिन देवी के अलग-अलग रुपों की पूजा की जाती 
सूत्रों के मुताबिक, धर्म की नगरी काशी में भी नवरात्रि के नौ दिनों में देवी के अलग-अलग रूपों की पूजा विधिवत की जाती है। जिसमें सबसे पहले दिन माता शैल पुत्री के दर्शन का विधान है। शैलराज हिमालय की कन्या होने के कारण इन्हें शैलपुत्री कहा गया है। मां शैलपुत्री दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प लिए अपने वाहन वृषभ पर विराजमान होतीं हैं। नवरात्र के इस प्रथम दिन की उपासना में साधक अपने मन को मूलाधार’ चक्र में स्थित करते हैं। शैलपुत्री का पूजन करने से मूलाधार चक्र’ जागृत होता है और यहीं से योग साधना आरंभ होती है जिससे अनेक प्रकार की शक्तियां प्राप्त होती हैं।

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मान्यता है कि देवी के दर्शन मात्र से ही मिट जाते हैं वैवाहिक कष्ट
बताया जाता है कि ऐसी मान्यता है कि देवी के इस रूप ने ही शिव की कठोर तपस्या की थी। मान्यता है कि इनके दर्शन मात्र से सभी वैवाहिक कष्ट मिट जाते हैं। माँ की महिमा का पुराणों में वर्णन मिलता है कि राजा दक्ष ने एक बार अपने यहां यज्ञ किया और सारे देवी देवताओं को बुलाया, मगर श्रृष्टि के पालन हार भोले शंकर को नहीं बुलाया। इससे माँ नाराज हुई और उसी अग्नि कुण्ड में अपने को भस्म कर दिया। फिर यही देवी सैल राज के यहा जन्म लेती है। शैलपुत्री के रूप में और भोले भंडारी तदैव प्रसन्न करती है। वाराणसी में माँ का अति प्राचीन मंदिर है। जहां नवरात्र के पहले दिन हजारों श्रद्धालुओ की भारी भीड़ उमड़ी। माँ को नारियल और गुड़हल का फूल काफी पसंद है। शारदीय नवरात्र पर कलश स्थापना के साथ ही माँ दुर्गा की पूजा शुरू की जाती है।
 

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