UP में 5000 स्कूलों के मर्जर पर हाईकोर्ट की हरी झंडी, सीतापुर में बनी रहेगी यथास्थिति; 21 अगस्त को अगली सुनवाई

Edited By Mamta Yadav,Updated: 24 Jul, 2025 11:37 PM

high court gives green signal to merger of 5000 schools in up

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रदेश के 50 से कम छात्र संख्या वाले 5000 परिषदीय स्कूलों के समेकन (मर्जर) के आदेश पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अंतरिम रोक लगाने से मना कर दिया है। यह आदेश राज्य सरकार की उस महत्वाकांक्षी योजना को बल देता है जिसके तहत हजारों...

लखनऊ/प्रयागराज: उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रदेश के 50 से कम छात्र संख्या वाले 5000 परिषदीय स्कूलों के समेकन (मर्जर) के आदेश पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अंतरिम रोक लगाने से मना कर दिया है। यह आदेश राज्य सरकार की उस महत्वाकांक्षी योजना को बल देता है जिसके तहत हजारों छोटे स्कूलों को शैक्षिक गुणवत्ता, संसाधनों और प्रशासनिक कुशलता की दृष्टि से एकीकृत किया जाना है। आदेश के अंतर्गत विशेष बात यह है कि सीतापुर के 210 में से मात्र 14 विद्यालयों में यथास्थिति बनी रहेगी।

कोर्ट ने कहा कि समेकन पर रोक लगाने का कोई आधार नहीं बनता
हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने याचिकाकर्ता की उस मांग को खारिज कर दिया, जिसमें समेकन प्रक्रिया पर तत्काल रोक लगाने की अपील की गई थी। कोर्ट ने कहा कि समेकन पर रोक लगाने का कोई आधार नहीं बनता। हालांकि, सीतापुर जनपद को लेकर कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वहां फिलहाल यथास्थिति बनाए रखी जाए और अगली सुनवाई तक किसी प्रकार की नई कार्रवाई न हो।

शिक्षण गुणवत्ता सुधार और संसाधनों के कुशल उपयोग की दिशा में सरकार का बड़ा कदम
सरकार ने अपने पक्ष में दलील दी कि यह कदम शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार, शिक्षकों के समुचित उपयोग और विद्यालयीय संसाधनों की प्रभावी व्यवस्था के उद्देश्य से उठाया गया है। शिक्षा विभाग का मानना है कि अत्यल्प नामांकन वाले विद्यालयों को पास के प्रभावी स्कूलों में मर्ज करने से छात्रों को बेहतर शिक्षा, आधारभूत सुविधाएं और योग्य शिक्षक उपलब्ध हो सकेंगे।

अगली सुनवाई की तिथि 21 अगस्त तय
कोर्ट में अगली सुनवाई की तिथि 21 अगस्त तय की गई है। इस दिन समेकन नीति की संवैधानिक वैधता और इसके व्यावहारिक प्रभावों पर विस्तृत बहस की संभावना है। इस आदेश से स्पष्ट संकेत मिलता है कि सरकार का समेकन मॉडल फिलहाल न्यायिक समर्थन प्राप्त करता है, जबकि याचिकाकर्ताओं को अब अपनी दलीलों को अधिक मजबूत आधार पर प्रस्तुत करना होगा। शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने इस आदेश को नीतिगत फैसले की स्वीकृति के रूप में देखा है। यह फैसला न केवल शासन की मंशा को बल देता है, बल्कि शिक्षा क्षेत्र में संरचनात्मक सुधारों की दिशा में भी अहम कदम माना जा रहा है।

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