Edited By Tamanna Bhardwaj,Updated: 30 Jan, 2023 01:51 PM

उत्तर प्रदेश में इन दिनों रामचरितमानस को लेकर सियासत गरमाई हुई है। वहीं कई हिन्दू संगठन, नेता और संत इसके विरोध में उतरे हैं, लेकिन यूपी के पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह स्वामी प्रसाद मौर्य के समर्थन में...
लखनऊ: उत्तर प्रदेश में इन दिनों रामचरितमानस को लेकर सियासत गरमाई हुई है। वहीं कई हिन्दू संगठन, नेता और संत इसके विरोध में उतरे हैं, लेकिन यूपी के पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह स्वामी प्रसाद मौर्य के समर्थन में आ गए हैं। इस पर सुलखान सिंह ने फेसबुक पोस्ट की है। उन्होंने लिखा कि स्वामी प्रसाद मौर्य के मानस पर दिए गए बयान पर अभिजात्य वर्ग की प्रतिक्रिया ठीक नहीं है। मौर्य ने मानस का अपमान नहीं किया है मात्र कुछ अंशों पर आपत्ति जताई है। उन्हें इसका अधिकार है। रामचरित मानस पर किसी जाति या वर्ग का विशेषाधिकार नहीं है। हिंदू समाज के तमाम प्रदूषित और अमानवीय ग्रंथों की निंदा तो करनी ही होगी।

सिंह ने कहा कि भारतीय ग्रंथों ने समाज को गहराई से प्रभावित किया है। इन ग्रन्थों में जातिवाद, ऊंचनीच, छुआछूत, जातीय श्रेष्ठता/हीनता आदि को दैवीय होना स्थापित किया गया है। अतः पीड़ित व्यक्ति/समाज अपना विरोध तो व्यक्त करेगा ही। किसी को भी भारतीय ग्रंथों पर एकाधिकार नहीं जताना चाहिए। कुछ अतिउत्साही उच्च जाति के हिंदू हर ऐसे विरोध को गालीगलौज और निजी हमले करके दबाना चाहते हैं। यह वर्ग चाहता है कि सदियों से शोषित वर्ग, इस शोषण का विरोध न करे, क्योंकि वे इसे धर्मविरोधी बताते हैं। हिंदू समाज की एकता के लिए जरूरी है कि लोगों को अपना विरोध प्रकट करने दिया जाये। भारतीय ग्रंथ सबके हैं। यह शोषित वर्ग हिंदू समाज में ही रहना चाहता है, इसीलिये विरोध करता रहता है। अन्यथा इस्लाम या ईसाई धर्म अपना चुका होता। अतीत में धर्मांतरण इसी कारण से हुए हैं।
'मैं रामचरित मानस और भगवद्गीता का नियमित पाठ करता हूं'
सुलखान सिंह ने आगे लिखा कि राम और कृष्ण हमारे पूर्वज हैं। हम उनका अनुसरण करते हैं। हमें यह अधिकार है कि हम अपने पूर्वजों से प्रश्न करें। यह एक स्वस्थ समाज के विकास की स्वाभाविक गति है। राम और कृष्ण से उनके कई कार्यों के बारे में सदियों से आम लोग सवाल पूछते रहे हैं। यही उनकी व्यापक स्वीकार्यता का सबूत है। मैं रामचरित मानस और भगवद्गीता का नियमित पाठ करता हूँ और इनका अनुसरण करने का यथासंभव प्रयास करता हूँ। लेकिन, मैं मानस और गीता पर प्रश्न उठाने वालों की निंदा नहीं करता हूँ। बल्कि ऐसे लोगों से संपर्क होने पर अपनी समझ और क्षमता के अनुसार उनके संदेहों का निवारण करता हूँ। हिंदू समाज की एकता और मानवता के हित में मैं निंदक लोगों पर हमले और अभद्रता करने वालों की निंदा करता हूँ।

क्या कहा था स्वामी प्रसाद ने?
स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा था कि कई करोड़ लोग रामचरित मानस को नहीं पढ़ते, सब बकवास है। यह तुलसीदास ने अपनी खुशी के लिए लिखा है। सरकार को इसका संज्ञान लेते हुए रामचरित मानस से जो आपत्तिजनक अंश है, उसे बाहर करना चाहिए या इस पूरी पुस्तक को ही बैन कर देना चाहिए। स्वामी प्रसाद मौर्य ने आपत्ति जताते हुए कहा था कि तुलसीदास की रामचरितमानस में कुछ अंश ऐसे हैं, जिनपर हमें आपत्ति है। क्योंकि किसी भी धर्म में किसी को भी गाली देने का कोई अधिकार नहीं है। तुलसीदास की रामायण की चौपाई है। इसमें वह शुद्रों को अधम जाति का होने का सर्टिफिकेट दे रहे हैं।