इटावा: आजादी के बाद भी एक पक्की सड़क की बाट जोह रहा ये गांव, गर्भवती महिलाओं के लिए नहीं पहुंचती...

Edited By Umakant yadav,Updated: 13 Aug, 2021 05:08 PM

etawah even after independence this village is waiting for a paved road

ग्रामीण अर्थव्यवस्था की बदौलत एक ट्रिलियन इकोनामी बनने के लिये कड़ी मेहनत कर रहे घनी आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश के बीहड़ में बसा एक गांव आजादी के 75 साल बाद भी एक अदद पक्की सड़क की बाट जोहने को मजबूर है। जिले के बढ़पुरा इलाके में यमुना नदी के किनारे...

इटावा: ग्रामीण अर्थव्यवस्था की बदौलत एक ट्रिलियन इकोनामी बनने के लिये कड़ी मेहनत कर रहे घनी आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश के बीहड़ में बसा एक गांव आजादी के 75 साल बाद भी एक अदद पक्की सड़क की बाट जोहने को मजबूर है। जिले के बढ़पुरा इलाके में यमुना नदी के किनारे बीहड़ में बसे जोहाना गांव में लगभग 200 मकान है। गांव की आबादी लगभग 900 है। गांव इतना बदहाल है कि आजादी के बाद से इस गांव के लोगों को निकलने के लिए एक सड़क तक नहीं बनाई जा सकी है। ग्रामीणों के अनुसार ऊबड़ खाबड़ पगडंडी के जरिये पहुंच वाले गांव मे किसी गर्भवती महिला को अस्पताल ले जाना हो तो केवल चारपाई ही मात्र एक सहारा है अगर साइकिल का इस्तेमाल कर लिया तो गर्भपात का खतरा बना रहता है। बारिश में तो इस गांव मे पहुंचना किसी मुसीबत से कम नहीं है। यहां जरा से चूके तो जान जोखिम में पड़ सकती है। क्योंकि बारिश में गांव को जोड़ने वाली पुलिया की कच्ची सड़क बह गई है और उसके दोनों ओर तालाब सा बन गया है। दूसरी ओर बीहड़ से घूम कर जाने वाला कच्चा रास्ता फिसलन भरा होने के चलते ग्रामीण कभी भी फिसल कर गिर सकते हैं।      

जिला मुख्यालय से महज 10 किमी की दूरी पर स्थित यह गांव आज भी विकास से कोसों दूर है। हालात ये हैं कि गांव आने के लिए एक संपर्क मार्ग तक नहीं बना है। छह माह पहले गांव वालों के आवागमन के लिए दो पुलियां बनाई गई थी। इन दोनों पुलियों का संपर्क मार्ग एक बारिश भी नहीं झेल सका। गांव वालों ने बताया कि गांव आने जाने की लिए कई किमी बीहड़ के कच्चे और ऊंचे नीचे रास्तों से होकर जाना आना पड़ता है। बारिश में गांव का संपर्क शहर से पूरी तरह से कट जाता है। बड़ी मुश्किलों के बाद गांव को जोड़ने के लिये पुलिया बनी थी वो भी पहली बारिश में ही टूट गई। गांव के ज्ञान सिंह ने बताया कि यदि गांव में कोई बीमार पड़ जाता है या किसी गर्भवती महिला को अस्पताल लेकर जाना होता है, तो पांच किमी पैदल या चारपाई से गांव से बाहर लाया जाता है। इसके बाद ही एंबुलेंस या किसी अन्य वाहन से उसे अस्पताल पहुंचाया जाता है। कई बार तो गंभीर बीमारी से पीड़ित गरीब गांव में ही दम तोड़ देते हैं। वहीं कई बार से स्वास्थ्य कर्मी पैदल जाकर ग्रामीणों का इलाज करते हैं।      

एक अन्य ग्रामीण अमर सिंह बताते है कि जब जब चुनाव आते है तो गांव वालो से वोट मांगने के लिए राजनेता आते है लेकिन कोई भी गांव में सड़क की इस समस्या को हल कराने की स्थिति में नहीं आता है। चुनाव बाद दुबारा राजनेता कभी भी नहीं आता है। इस गांव में प्राथमिक शिक्षा के लिए स्कूल जरूर बनवा दिया गया है लेकिन जिस किसी भी शिक्षक की तैनाती की जाती है वो कभी भी गांव में नही आता है। यहॉ के छात्रों को पढाने के लिए केवल शिक्षा मित्र के ही भरोसे रहना पड़ता है शिक्षा मित्र स्कूल के बच्चो को घेर कर बैठा रहता है। इटावा के मुख्य विकास अधिकारी संतोष राय ने बताया कि जल्द ही गांव का सर्वे कराया जाएगा। ये सुनिश्चित किया जाएगा कि किसी तरह गांव का विकास हो और सड़क बनवाकर उसे मुख्यालय से जोड़ा जाए।

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