कौन थे आंदोलनकारी सुगमपाल सिंह चौहान? अंग्रेज कर्नल ने दी थी बंदूक और लगा दी थी बंदीसे, देश की आजादी की लड़ाई में नहीं कर पाए फायर

Edited By Mamta Yadav,Updated: 29 Jul, 2025 03:38 PM

who was the agitator sugampal singh chauhan

देश को आजाद करने में विभिन्न आंदोलन कारियों का योगदान रहा है उन्हीं में से एक है स्वर्गीय सुगमपाल सिंह चौहान जो की राजपूत समाज से आते हैं। सुगम पाल सिंह चौहान के ठाठ-बाट को देखकर अंग्रेज कर्नल ने उनको बंदूक दी थी लेकिन बंदूक देने के साथ-साथ उस पर...

Saharanpur News, (रामकुमार पुंडीर): देश को आजाद करने में विभिन्न आंदोलन कारियों का योगदान रहा है उन्हीं में से एक है स्वर्गीय सुगमपाल सिंह चौहान जो की राजपूत समाज से आते हैं। सुगम पाल सिंह चौहान के ठाठ-बाट को देखकर अंग्रेज कर्नल ने उनको बंदूक दी थी लेकिन बंदूक देने के साथ-साथ उस पर बंदीसे भी लगा दी थी।
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आज भी विरासत के रूप में मौजूद है बंदूक
बता दें कि यह उस दौर की बात है जब देश अंग्रेजों का गुलाम था। सन 1933 में गांव काशीपुर के रहने वाले सुगमपाल सिंह चौहान एक बड़े जमीदार और बड़ी-बड़ी मूछे रखने वाले आंदोलनकारी थे। उन्होंने अंग्रेजों से कई बार लोहा लिया। देश की आजादी के विभिन्न आंदोलनों में उन्होंने भाग लिया।  इस दौरान वह सहारनपुर जिले में स्थित कलेक्ट्रेट में किसी काम से गए हुए थे तब वहां के अंग्रेज कर्नल ने उनको देखा और उनको अपने पास बुलाकर उनसे जब पूछा कि आप राजपूत हो और आपके पास कौन सा हथियार है। जब उन्होंने हथियार नहीं होने की बात कही तो तब अंग्रेज ने उनसे कहा आप राजपूत हो और आपके पास हथियार नहीं जबकि राजपूतों ने हमेशा अपने देश, अपने समाज की रक्षा की है। तब उनसे खुश होकर अंग्रेज कर्नल ने उनको एक बंदूक दी थी। बंदूक के साथ-साथ लगभग 5000 गोलियां भी उनको फ्री में दी थी, लेकिन इन गोलियों का इस्तेमाल वह अंग्रेजों पर नहीं कर सकते थे। क्योंकि अंग्रेजी कर्नल ने उनसे यह वचन भी लिया था कि आप इस बंदूक और गोलियों का इस्तेमाल आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों पर नहीं करेंगे। आज भी वह बंदूक विरासत के रूप में सुगम पाल सिंह चौहान के बेटे रामबीर सिंह चौहान के पास मौजूद है।
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अंग्रेज कर्नल ने दी थी बंदूक और लगा दी थी बंदीसे
रामबीर सिंह चौहान ने पंजाब केसरी से बात करते हुए बताया कि मेरे पिता जी सुगमपाल सिंह चौहान 1933 में जब आजादी की लड़ाई चल रही थी और हमारे देश मे ब्रिटिश सरकार थी, मेरे पिताजी आजादी की लड़ाई में भाग लिया करते थे, और इधर-उधर देश के हिस्सों में जाकर आजादी की लड़ाई लड़ते थे। यह बात है 1933 की जब हमारा देश गुलाम था तो मेरे पिताजी सहारनपुर कलेक्ट्रेट जहां पर कोर्ट हुआ करती थी साथ ही डीएम साहब के साथ-साथ वहां पर मिलिट्री का ऑफिस भी हुआ करता था, तो मिलिट्री के एक कर्नल जो अंग्रेज थे उन्होंने मेरे पिताजी सुगमपाल जिनकी पर्सनालिटी अच्छी और बड़ी-बड़ी मुछे व पगड़ी पहनते थे अपने पास बुलाया और पूछा आपके पास कौन सा हथियार है। मेरे पिताजी ने मना कर दिया क्योंकि देश की आजादी की लड़ाई चल रही है तो ऐसे में ब्रिटिश सरकार हमें हथियार क्यों देगी। पिताजी की पर्सनलिटी व राजपूत होने पर उनको हथियार देने की बात कही और उनसे उस समय के चांदी के 1000 सिक्के मंगाए और अगले ही दिन उनको बंदूक दे दी गई। उस बंदूक को देने के साथ ही उस बंदूक पर बंदीसे से भी लगा दी गई कि आप इस बंदूक का इस्तेमाल देश की आजादी के लिए अंग्रेजों पर नहीं करेंगे।
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मेरे पिताजी की यह बंदूक अब मेरे पास है और विरासत के रूप में हमेशा रहेगी और आगे भी मेरा प्रयास रहेगा कि यह बंदूक विरासत के रूप में मेरे परिवार और आगे बच्चों के पास रहेगी। यह बंदूक जर्मनी की बनी हुई है और 12 बोर 32 इंची बंदूक है जो आज नहीं मिलती।

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