Edited By Ajay kumar,Updated: 21 Dec, 2022 07:23 PM
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि यह हर अदालत का कर्तव्य है कि वह अपराध की प्रकृति और उसे अंजाम देने या किए जाने के तरीके को ध्यान में रखते हुए उचित सजा दे सकती है। उक्त टिप्पणी न्यायमूर्ति सुरेंद्र सिंह की एकलपीठ ने...
प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि यह हर अदालत का कर्तव्य है कि वह अपराध की प्रकृति और उसे अंजाम देने या किए जाने के तरीके को ध्यान में रखते हुए उचित सजा दे सकती है। उक्त टिप्पणी न्यायमूर्ति सुरेंद्र सिंह की एकलपीठ ने राजकुमार व अन्य द्वारा दाखिल आपराधिक अपील पर सुनवाई करते हुए दिया है। याचिका में आरोपियों के विरुद्ध बुलंदशहर में प्राथमिकी दर्ज की गई थी।
कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद स्पष्ट रूप से कहा कि वैधानिक प्रावधान बहुत सशक्त रूप से सजा देने के सुधारात्मक उद्देश्य को निर्धारित करते हैं और कानून के तहत प्रदान किए गए उपयुक्त मामलों में परिवीक्षा का लाभ देने के लिए ट्रायल कोर्ट के साथ-साथ अपीलीय अदालतों को बाध्य करते हैं। दुर्भाग्य से, कानून की इस शाखा का अदालतों द्वारा अधिक उपयोग नहीं किया गया है।
न्याय प्रशासन की हमारी प्रणाली में यह अधिक प्रासंगिक और महत्वपूर्ण हो जाता है जहां परीक्षण अक्सर लंबे समय के बाद समाप्त होता है। जब तक निर्णय अंतिम रूप लेता है, तब तक सजा देने का उद्देश्य अपनी प्रभावकारिता खो देता है क्योंकि समय बीतने के साथ दंडात्मक और सामाजिक प्राथमिकताएं बदल जाती हैं। कोर्ट ने अपने आदेश में जगत पाल सिंह व अन्य बनाम हरियाणा राज्य में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश का हवाला दिया। कारावास की सजा देने की कोई आवश्यकता नहीं है, खासकर जब अपराध गंभीर नहीं है और आरोपी व्यक्तियों का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है।