जब UP की एक तवायफ ने बचाई थी 'चंद्रशेखर आजाद' की जान, अपने घर में यूं छिपाया कि पुलिस को भनक भी नहीं लगी, चौंका देगा पूरा रहस्य; भगत सिंह को भी...

Edited By Purnima Singh,Updated: 12 Nov, 2025 01:47 PM

banaras courtesan who hid chandrashekhar azad from the police

आजादी की लड़ाई के दौरान बनारस का दालमंडी इलाका नाच-गाने और कोठों का एक प्रमुख क्षेत्र था। यहां तवायफों की महफिलें सजती थीं और यहां की सबसे  प्रसिद्ध तवायफ धनेशरी बाई थीं .....

वाराणसी : आजादी की लड़ाई के दौरान बनारस का दालमंडी इलाका नाच-गाने और कोठों का एक प्रमुख क्षेत्र था। यहां तवायफों की महफिलें सजती थीं और यहां की सबसे  प्रसिद्ध तवायफ धनेशरी बाई थीं। वह दालमंडी थाने के पीछे रहती थीं। धनेशरी बाई से जुड़ी एक कहानी आज हम आपको बताने वाले हैं। ये बात उन दिनों की है जब बनारस में चंद्रशेखर आजाद क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय हो गए थे। उन्होंने अपनी पढ़ाई के दौरान ही अग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। 1920 के दशक में वे हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के प्रमुख सदस्य बने थे। फिर ब्रिटिश पुलिस की नजर में आने के बाद फरार हो गए थे और बचने के लिए कई स्थानों पर छिपते रहे। धनेशरी बाई ने उसी दौरान चंद्रशेखर आजाद को पुलिस थाने के पीछे अपनी हवेली में शरण दी थी। पुलिस को इसकी भनक तक नहीं लग पाई थी। 

धनेशरी बाई की हैसियत और स्थान आजाद को छिपाने के लिए बना आदर्श ढाल 
धनेशरी का कोठा तब अपने मुजरे के लिए बहुत फेमस था। बड़े बड़े लोग वहां आते थे और महफिलें रोज सजा करती थीं। एक प्रसिद्ध तवायफ के रूप में उनका कोठा समाज के उच्च और प्रभावशाली वर्गों के लोगों के आने-जाने का केंद्र था। उनकी हैसियत और स्थान चंद्रशेखर आजाद को छिपाने के लिए एक आदर्श ढाल बन गया। ब्रिटिश पुलिस का ध्यान ऐसे स्थानों पर नहीं जाता था। ऐसा इसलिए क्योंकि वे इन्हें केवल मनोरंजन का अड्डा मानते थे। यह घटना अल्फ्रेड पार्क कांड (1931) से पहले की है। 

भगत सिंह और दूसरे क्रांतिकारियों के लिए भी था सुरक्षित ठिकाना
धनेशरी बाई का ये कोठा सिर्फ आजाद के लिए ही नहीं, बल्कि भगत सिंह और अन्य क्रांतिकारियों के लिए भी एक गुप्त बैठक स्थल बना करता था। ऐसा माना जाता है कि हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन की कई महत्वपूर्ण बैठकें इसी कोठे के अंदर हुईं हैं। देशभक्ति की गंभीर योजनाएं इन्हीं रंगरेली महफिलों के बीच बनती थीं। दरअसल, क्रांतिकारियों को भी ब्रिटिश पुलिस के शिकंजे से बचने के लिए एक ऐसे सुरक्षित ठिकाने की जरूरत थी जहां उन पर संदेह न हो और ये स्थान इतना गोपनीय था कि पुलिस की नजरों से बचने में बहुत कारगर साबित होता था। 

ये तथ्य उस बड़े ऐतिहासिक सच को उजागर करता है कि भारत की आज़ादी की लड़ाई में तवायफों ने भी हिस्सा लिया और देश की सेवा की। माना जाता है कि धनेशरी बाई ने अपने संसाधनों का इस्तेमाल क्रांतिकारियों के लिए धन जुटाने में भी किया। वो अपने अमीर ग्राहकों से मिले पैसों का एक हिस्सा हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन को दान कर देती थीं। धनेशरी बाई के योगदान की पुष्टि कई गंभीर इतिहासकारों ने अपने शोध में भी किया है। 


 
.

Related Story

Trending Topics

img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!