Edited By Anil Kapoor,Updated: 25 May, 2019 10:50 AM
लोकसभा चुनाव 2019 कई मायनों में ऐतिहासिक है। इस चुनाव के दौरान नेहरू-गांधी परिवार की सबसे नई सदस्य प्रियंका गांधी ने भी राजनीति में कदम रखे लेकिन सियासी गलियारे में उनके इस आकस्मिक आगमन का कोई लाभ नहीं मिला।
लखनऊ\नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव 2019 कई मायनों में ऐतिहासिक है। इस चुनाव के दौरान नेहरू-गांधी परिवार की सबसे नई सदस्य प्रियंका गांधी ने भी राजनीति में कदम रखे लेकिन सियासी गलियारे में उनके इस आकस्मिक आगमन का कोई लाभ नहीं मिला। प्रियंका गांधी ने चुनाव शुरू होने के ठीक 3 महीने पहले मोर्चा संभाला था जिसका कोई खास असर देखने को नहीं मिला है। इस लोकसभा चुनाव में पूरे प्रचार के दौरान प्रियंका गांधी ने 38 रैलियां कीं। इनमें से 26 रैलियां उन्होंने सिर्फ यूपी में कीं। बाकी मध्य प्रदेश, दिल्ली, झारखंड और हरियाणा में कांग्रेस प्रत्याशियों के लिए प्रचार किया। प्रियंका का जादू चुनाव में नहीं चला। उन्होंने जितनी सीटों पर प्रचार किया था उनमें से 97 प्रतिशत सीटें कांग्रेस हार गई।
प्रियंका गांधी पूर्वी उत्तर प्रदेश की प्रभारी बनाई गई थीं। उनके साथ ही ज्योतिरादित्य सिंधिया को पश्चिमी उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया गया था। दोनों को पार्टी में महासचिव का पद दिया गया था। उत्तर प्रदेश में त्रिकोणीय मुकाबला था। एक तरफ मजबूत भाजपा गठबंधन था तो दूसरी तरफ सपा-बसपा का महागठबंधन। इन दोनों की मौजूदगी में प्रियंका गांधी के सामने कांग्रेस का खोया जनाधार वापस लाने की चुनौती थी। उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी को उतारने को कुछ लोगों ने ‘मास्टर स्ट्रोक’ बताया था तो कुछ का कहना था कि कांग्रेस का यह फैसला हड़बड़ी में लिया गया है।