गोरखपुर के गैंगवार की कहानी: हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र शाही के वर्चस्व की खूनी जंग, सरकार ने लागू किया था गैंगस्टर एक्ट

Edited By Mamta Yadav,Updated: 17 May, 2023 04:38 PM

the bloody battle of supremacy of harishankar tiwari and virendra shahi

पूर्वांचल की सियासत में कद्दावर ब्राह्मण चेहरा माने जाने वाले पूर्व कैबिनेट मंत्री हरिशंकर तिवारी का लंबी बीमारी के बाद मंगलवार शाम करीब साढ़े सात बजे निधन हो गया। इनका निधन इनके समर्थकों के लिए अपूरणीय क्षति है जिनके लिए वे एक अभिवावक समान थे।...

गोरखपुर: पूर्वांचल की सियासत में कद्दावर ब्राह्मण चेहरा माने जाने वाले पूर्व कैबिनेट मंत्री हरिशंकर तिवारी का लंबी बीमारी के बाद मंगलवार शाम करीब साढ़े सात बजे निधन हो गया। इनका निधन इनके समर्थकों के लिए अपूरणीय क्षति है जिनके लिए वे एक अभिवावक समान थे। धर्मशाला बाजार स्थिति तिवारी जी का हाता के नाम से मशहूर उनका निवास स्थान आज उनके समर्थकों के लिए गमजदा बना हुआ था। बुधवार सुबह हजारों की भीड़ जुट चुकी थी जो उनके अंतिम दर्शन के लिए लालायित थी। पूर्वांचल के बाहुबली पंडित हरिशंकर तिवारी की शव यात्रा गोरखपुर से उनके गांव टांडा के लिए निकाली गई। जैसे-जैसे यात्रा आगे बढ़ती गई लोगों का काफिला बढ़ता ही जा रहा था। गोरखपुर-वाराणसी हाईवे पर लंबा जाम लग गया था। दो बजे के करीब उनका अंतिम संस्कार बड़हलगंज में मुक्ति पथ पर किया गया।
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पंडित हरिशंकर तिवारी का जीवन परिचय
पंडित हरिशंकर तिवारी का जन्म 1985 में बड़हलगंज के टांड़ा गांव में पिता भोलेनाथ तिवारी और माता गंगोत्री देवी के यहां हुआ था। वहीं के नेशनल इंटर कॉलेज से उन्होंने हाईस्कूल तक की पढ़ाई की। इंटरमीडिएट करने गोरखपुर आए और यहां के सेंट एंड्रयूज इंटर कॉलेज से पास हुए। गोरखपुर विश्वविद्यालय से बीए, राजनीति शास्त्र और अंग्रेजी में गोविवि से एमए भी किए। अपने जीवन का पहला चुनाव तिवारी हार गए थे। वर्ष 1984 में वह महराजगंज लोकसभा सीट से निर्दल प्रत्याशी के तौर पर चुनाव मैदान में खड़े हुए थे पर जीत नहीं मिली। साल 1985 में जेल में रहते हुए चिल्लूपार विधानसभा से चुनाव लड़े और विधानसभा पहुंचे। कांग्रेस के टिकट पर सल 1989, 1991 और 1993 में चिल्लूपार से एमएलए बने। 1997 में भी कांग्रेस से चुनाव लड़कर वह जीते। 1997 में अखिल भारतीय लोकतांत्रिक कांग्रेस की स्थापना जगदम्बिका पाल, श्याम सुंदर शर्मा, बच्चा पाठक और राजीव शुक्ला के साथ मिलकर की। साल 2002 में लोकतांत्रिक कांग्रेस से चुनाव लड़कर विजयी रहे। साल 2007 और 2012 में चुनाव हार गए। फिर उन्होंने यह सीट अपने छोटे बेटे विनय शंकर तिवारी को सौंप दी। यूपी में मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की सरकार 1997-1999 में तक मंत्री थे। 2000 में राम प्रकाश गुप्ता सरकार में 2001 में राजनाथ सरकार में मंत्री, 2002 में बसपा सरकार में मंत्री बने। इसके बाद पुनः 2003-2007 तक मुलायम सिंह यादव सरकार में मंत्री बने।
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छात्र राजनीति में हरिशंकर और बलवंत के बीच छिड़ गई वर्चस्व की जंग
गोरखपुर विश्वविद्यालय के दो छात्र नेताओं बलवंत सिंह और हरिशंकर तिवारी के बीच वर्चस्व को लेकर अदावत शुरू हो गई। धीरे धीरे यह वर्चस्व पंडित बनाम ठाकुर का हो गया और दनादन गोलियां चलने लगीं और लाशें गिरने लगीं। इसी बीच बलवंत सिंह को उनकी ही जाति के वीरेंद्र प्रताप शाही मिल गए। उसके बाद वर्चस्व की यह लड़ाई और खूनी हो गई।
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रेलवे के टेंडर में बहा दर्जनों लोगों का खून
तिवारी और शाही के गुटों ने खुद को मजबूत करना शुरु कर दिया। रेलवे के ठेके दोनों के लिए मायने रखते थे। ठेका पट्टी से इन दोनों ने करोड़ो रुपए अर्जित किए। दोनों गुटों की ताकत यह थी की प्रशासन भी इनके गैंग के पीछे नहीं पड़ता था। दो गुटों की लड़ाई सिर्फ गोरखपुर शहर तक ही सीमित नहीं थी। बल्कि यह आसपास के जिलों तक फैल गई। आए दिन खूनी संघर्ष की वारदातें आम थी। यह वो दौर था, जब गोरखपुर में आन-मान-शान के नाम पर दनादन गोलियां चला करती थीं। ऐसी घटनाएं आम थीं। उधर, वीरेंद्र प्रताप शाही को ठाकुर नेता के प्रतीक के रूप में मान लिया गया था। इधर, हरिशंकर तिवारी को ब्राह्मणों के नेता के रूप में और दोनों गैंग की समानान्तर सरकार अरसों तक चली। उनके दरबार में लोग अपने मामले लेकर जाने लगे।
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बाहुबली हरिशंकर तिवारी ने की थी राजनीति में अपराध की इंट्री
हरिशंकर तिवारी को पूर्वांचल ही नहीं पूरे उत्तर प्रदेश की राजनीति को बदलने वाला नाम माना जाता रहा है। उत्तर प्रदेश में बाहुबली राजनीति या कहें सियासत के अपराधीकरण की शुरूआत हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र शाही की अदावत से ही मानी जाती है। कहा जाता है कि उत्तर प्रदेश में पहली बार माफिया शब्द का इस्तेमाल भी पूर्वांचल के इसी बाहुबली के लिए किया गया।
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ब्रह्मर्षि के रूप में लोगों ने माना अपना नेता
उनके समर्थकों का कहना था कि पंडित हरिशंकर तिवारी सिर्फ एक जाति या दल के नेता नहीं थे, पूर्वांचल की आन-बान-शान थे। इन्हें हम ब्राह्मण शिरोमणि और शेरे पूर्वांचल के रूप में भी जानते हैं। वह किसी एक पार्टी से बांध कर नहीं रहे, उनकी राजनिति दलगत राजनीति से ऊपर थी। हम अपने नेता और अभिभावक के अंतिम दर्शनों के लिए यहां पहुंचे हैं।
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पूर्वांचल के बाहुबलि थे हरिशंकर तिवारी, पांच बार बने कैबिनेट मंत्री
एलएलएलएल हरिशंकर तिवारी की राजनीतिक शुरुआत सन 1985 से हुई, जब वह पहली बार चिल्लूपार विधानसभा से विधायक चुने गए। तीन बार कांग्रेस पार्टी से विधायक रहने के बाद उन्होंने अपनी भी एक पार्टी बनाई थी, जिसके तहत वह अकेले विधायक थे। 6 बार विधायक रहे पंडित हरिशंकर तिवारी 5 बार कैबिनेट में मंत्री भी रहे। पंडित हरिशंकर तिवारी की पहचान शुरू से ही एक बाहुबली नेता की रही। इनका विवादों से भी चोली-दामन का साथ रहा। कई बार गंभीर और आपराधिक आरोप भी लगे, जिसके तहत कई मुकदमे दर्ज हुए। एक बार हरिशंकर तिवारी ने जेल में रहते हुए भी चुनाव जीता था।
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पूर्वांचल के अजेय डॉन बन चुके थे हरिशंकर
80 के दशक तक गैंगवार शब्द भारत के लिए अनजाना था। मूल रूप से यह शब्द इटली में वहां की परिस्थिति के हिसाब से गढ़ा गया था। लेकिन 80 के दशक में इस शब्द का भारतीय मीडिया और राजनीति में भी खूब इस्तेमाल किया गया। माना जाता है कि इसका श्रेय भी हरिशंकर तिवारी को जाता है। इस दौर में हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र शाही के बीच बार बार टकराव हुए, जिसे गैंगवार का नाम दिया गया। उत्तर प्रदेश में खासतौर पर लखनऊ से लेकर बलिया तक स्थिति ऐसी बन गई थी कि कब और कहां बंदूकें गरजने लगे, कहा नहीं जा सकता।
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तिवारी और शाही गुटों पर नकेल के लिए प्रदेश में बना गैंगस्टर एक्ट
राजनीतिक वर्चस्व की जंग में हरिशंकर तिवारी गुट भारी पड़ता रहा। लेकिन वीरेंद्र शाही की गैंग भी उन्हें कड़ी टक्कर दे रही थी। इसी बीच परिस्थिति ऐसी बनी कि हेमवती नंदन बहुगुणा को पछाड़ कर ठाकुर वीर बहादुर सिंह मुख्यमंत्री बन गए। कहा तो यह भी जाता है कि राजनीति में हरिशंकर तिवारी के वर्चस्व को रोकने के लिए ही वीर बहादुर सिंह की सरकार उस समय यूपी में गैगेस्टर एक्ट और गुंडा एक्ट लेकर आई थी। बावजूद इसके तिवारी 1997 से लेकर 2007 तक ना केवल लगातार चुनाव जीतते रहे, बल्कि यूपी सरकार में मंत्री भी बने रहे।
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