Edited By Anil Kapoor,Updated: 15 Dec, 2025 09:56 AM

Jaunpur News: उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के केराकत तहसील स्थित देहरी गांव में रविवार को मोहम्मद खालिद दुबे की शादी का आयोजन हुआ। यह विवाह सिर्फ पारिवारिक उत्सव नहीं था, बल्कि भारतीय समाज की विविधताओं और साझा सांस्कृतिक विरासत का उदाहरण......
Jaunpur News: उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के केराकत तहसील स्थित देहरी गांव में रविवार को मोहम्मद खालिद दुबे की शादी का आयोजन हुआ। यह विवाह सिर्फ पारिवारिक उत्सव नहीं था, बल्कि भारतीय समाज की विविधताओं और साझा सांस्कृतिक विरासत का उदाहरण भी रहा। खालिद दुबे का डबल सरनेम उनकी 17वीं सदी से जुड़ी वंश परंपरा की कहानी कहता है और मुगलकाल से जुड़े उनके पूर्वजों की पहचान को दर्शाता है।
इतिहास और वंश की खासियत
खालिद दुबे के चाचा, नौशाद अहमद दुबे ने 'बहू भोज' या उर्दू में 'दावत-ए-वलीमा' का आयोजन किया। परिवार के अनुसार, उनके पूर्वज 1669 में आजमगढ़ से यहां आए थे। उस समय उनके परिवार के सदस्य लाल बहादुर दुबे जमींदार थे। समय के साथ धर्म में बदलाव आया, लेकिन 'दुबे' उपनाम को परिवार ने अपनी ऐतिहासिक पहचान के प्रतीक के रूप में बनाए रखा। नौशाद अहमद दुबे ने कहा कि धर्म बदल सकता है, लेकिन वंश और इतिहास नहीं। हमने अपने मूल को पहचाना और उसी पहचान के साथ आगे बढ़ रहे हैं। यह विवाह उसी सांस्कृतिक निरंतरता का प्रतीक है।
समारोह में दिखी सामाजिक समरसता
विवाह समारोह में विभिन्न धर्मों, सामाजिक वर्गों और सांस्कृतिक पृष्ठभूमियों से जुड़े लोग शामिल हुए। पातालपुरी पीठ के जगद्गुरु बाबा बालकदास देवाचार्य महाराज, महंत जगदीश्वर दास, भारत सरकार की उर्दू काउंसिल की सदस्य नजनीन अंसारी और विशाल भारत संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव गुरु की उपस्थिति समारोह को खास बना रही। नौशाद अहमद दुबे स्वयं विशाल भारत संस्थान से जुड़े हुए हैं। उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी कृष्ण गोपाल और इंद्रेश कुमार ने भी फोन के माध्यम से परिवार को शुभकामनाएं दी।
सांस्कृतिक और सामाजिक संदेश
यह विवाह समारोह केवल एक पारिवारिक आयोजन नहीं था, बल्कि यह भारतीय समाज में विविधताओं के बीच एकता और साझा इतिहास की परंपरा का प्रतीक बनकर सामने आया। समारोह ने यह साबित किया कि धार्मिक और सामाजिक विविधताओं के बावजूद हमारी संस्कृति में साझा पहचान और सामाजिक समरसता संभव है।