इलाहाबाद हाईकोर्ट का अहम फैसलाः मृतक आश्रित कोटे में सिर्फ नियमित नियुक्ति ही दी जा सकती है

Edited By Ajay kumar,Updated: 27 Sep, 2022 11:08 AM

important decision of allahabad high court

मृतक आश्रित कोटे में नियुक्ति को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में सीधे तौर पर कहा है कि मृतक आश्रित कोटे में अस्थाई नियुक्ति नहीं कर सकते। मृतक आश्रित कोटे में सिर्फ नियमित नियुक्ति ही की जा सकती है।

प्रयागराजः मृतक आश्रित कोटे में नियुक्ति को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में सीधे तौर पर कहा है कि मृतक आश्रित कोटे में अस्थाई नियुक्ति नहीं कर सकते। मृतक आश्रित कोटे में सिर्फ नियमित नियुक्ति ही की जा सकती है। कोर्ट ने कहा कि मृतक आश्रित नियुक्ति के मामले में 30 जनवरी 1996 को जारी शासनादेश प्रभावी नहीं होगा। जस्टिस आशुतोष श्रीवास्तव की सिंगल बेंच ने झांसी निवासी आसिफ खान की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया। साथ ही कोर्ट ने कोर्ट ने बीएसए को दो माह में विचार कर निर्णय लेने का निर्देश दिया है।

क्या था मामला?
दरअसल, याची आसिफ खान के पिता प्राथमिक विद्यालय में सहायक अध्यापक के पद पर तैनात थे। सेवाकाल में ही उनकी मृत्यु हो गई। जिसके बाद याची ने अनुकंपा के तहत नियुक्ति की मांग की। उसे चतुर्थ श्रेणी पद पर निश्चित वेतनमान के तहत नियुक्ति दी गई। बाद में याची ने नियमित नियुक्ति की मांग करते हुए प्रत्यावेदन दिया। जिसपर बीएसए झांसी ने याची का प्रत्यावेदन खारिज कर दिया। बीएसए ने 30 जनवरी 1996 के शासनादेश का हवाला देते हुए कहा कि पूर्व माध्यमिक विद्यालय में कोई पद रिक्त नहीं होने के कारण याची को निश्चित मानदेय पर नियुक्ति दी गई है। नियमित वेतन स्थाई कर्मचारी के तौर पर समायोजित होने की तिथि से देय होगा।

मृतक आश्रित कोटे में लागू नहीं होगा 30 जनवरी 1996 का शासनादेश
बीएसए के इस फैसले को याची ने हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। सुनवाई के दौरान याची के अधिवक्ता ने दलील दी कि 30 जनवरी 1996 का शासनादेश इस न्यायालय द्वारा रवि करण सिंह केस में दी गई विधि व्यवस्था के विपरीत है। याची के मामले में यह शासनादेश लागू नहीं होता क्योंकि वह अनुकंपा नियुक्ति के तहत स्थायी नौकरी का हकदार है। कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद फैसला सुनाते हुए कहा कि मृतक आश्रित कोटे में 30 जनवरी 1996 का शासनादेश नहीं होगा।

 

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