Holi 2023: क्या आप जानते हैं होली के बारे में यह खास बात?

Edited By Anil Kapoor,Updated: 05 Mar, 2023 04:40 PM

do you know this special thing about holi

होली का त्‍योहार 8 मार्च को मनाया जाएगा। हर कोई रंगों से सराबोर होने की तैयारी में है, लेकिन सभी को यह नहीं पता होगा कि इस रंग-बिरंगे उत्सव की शुरुआत कहां से और कैसे हुई थी। जी हां जिस होली के त्योहार को पूरे देश में मनाया जाता है, उसकी शुरुआत रानी...

झांसी (शहजाद खान): होली का त्‍योहार 8 मार्च को मनाया जाएगा। हर कोई रंगों से सराबोर होने की तैयारी में है, लेकिन सभी को यह नहीं पता होगा कि इस रंग-बिरंगे उत्सव की शुरुआत कहां से और कैसे हुई थी। जी हां जिस होली के त्योहार को पूरे देश में मनाया जाता है, उसकी शुरुआत रानी लक्ष्मीबाई के शहर झांसी से हुई थी। सबसे पहली बार होलिका दहन झांसी के प्राचीन नगर एरच में ही हुआ था। झांसी में एक ऊंचे पहाड़ पर वह जगह आज भी मौजूद है, जहां होलिका दहन हुआ था। इस नगर को भक्त प्रह्लाद की नगरी के नाम से जाना जाता है। झांसी से एरच करीब 80 किलोमीटर दूर है।

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भक्‍त प्रहलाद से जुड़ी है घटना
पुराणों के आधार पर होली मनाए जाने के पीछे की घटना भक्त प्रहलाद से जुड़ी हुई है। सतयुग में हिरण्यकश्यप राक्षसो का राज था। हिरण्यकश्यप का भारत में एक छत्र राज चलता था। झांसी के एरच को हिरण्यकश्यप ने अपनी राजधानी बनाया था जो घोर तपस्या के बाद उसे ब्रह्मा से अमर होने का वरदान मिल गया। इससे वह अभिमानी हो गया वह खुद को देवता मानने लगा और उसने प्रजा को अपनी पूजा कराने से मजबूर कर दिया, लेकिन हिरण्यकश्यप की यह बात उसके ही पुत्र भक्त प्रहलाद ने नहीं मानी और उसकी पूजा करने से इनकार कर दिया। हिरण्यकश्यप का पुत्र भक्त प्रहलाद भगवान विष्‍णु की पूजा-अर्चना करने लगा। इससे हिरण्यकश्यप क्षुब्ध हो गया। उसने प्रहलाद को मारने का षड़यंत्र रचना शुरू कर दिया। हिरण्यकश्यप ने अपने ही पुत्र भक्त प्रहलाद को मारने की कोशिश की। उसने प्रहलाद को हाथी से कुचलवाया,, उंचे पहाड़ से बेतवा नदी में धक्का दिया, लेकिन प्रहलाद बच गए। जहां प्रहलाद नदी में गिरे, वह जगह भी मौजूद है,, कहा जाता है कि हिरण्यकश्यप ने भक्त प्रहलाद को जिस जगह बेतवा नदी में फेंका था, उस जगह पाताल जैसी गहराई है, आज तक उस जगह की गहराई की कोई थाह नहीं ले पाया है।

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आपको बता दें कि यहां पहाड़ पर स्थित नर सिंह भगवान की गुफा में तपस्या करने वाले जागेश्वर महाराज बताते हैं कि कई प्रयास विफल होने के बाद हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका के साथ षड़यंत्र रचा, होलिका हिरण्यकश्यप की बहन थी। उसे वरदान था कि उसे अग्नि नहीं जला सकती। यह भी था कि जब होलिका अकेली अग्नि में प्रवेश करेगी, तभी अग्नि उसे नुकसान नहीं पहुंचायेगी। वहीं, हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से भक्त प्रहलाद को लेकर अग्नि में प्रवेश करने को कहा। वह अपने वरदान के बारे में भूल गई कि यदि किसी और के साथ जाएगी तो खुद ही जल जाएगी और हिरण्यकश्यप की बातों में आ गई, फिर क्या था एरच के ग्राम ढिकौली में बने उंचे पहाड़ पर अग्नि जलाई गई। होलिका भक्त प्रहलाद को लेकर इसी अग्नि में प्रवेश कर गई। चूंकि, होलिका को वरदान था कि वह अकेली जाएगी, तभी बचेगी। फिर भी वह भक्त प्रहलाद को लेकर आग में कूद गई। इससे वह उस आग में जलकर खाक हो गई, जबकि भगवान विष्णु ने भक्त प्रहलाद को अग्नि से बचा लिया। आसपास क्षेत्र में भीषण आग फैल गई। इससे बौखलाए हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र भक्त प्रहलाद को झांसी के एरच में स्थित इसी पहाड़ जहां उसकी बहन होलिका जली,पर एक अग्नि से तपे हुए खम्भे से बांध कर मारना चाहा,,खडग से उस पर प्रहार किया। तभी भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लिया और हिरण्यकश्यप का वध कर डाला। हिरण्यकश्यप के मरने से पहले ही होलिका के रूप में बुराई जल गई और अच्छाई के रूप में भक्त प्रहलाद बच गए।उसी दिन से होली को जलाने और भक्त प्रहलाद के बचने की खुशी में अगले दिन रंग गुलाल लगाए जाने की शुरुआत हो गई।

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गजेटियर में है होली का उल्लेख
झांसी जिले के गजेटियर में इस बात का उल्लेख है कि एरच कस्बा एक ऐतिहासिक नगर है, जहां से होली की शुरुआत हुई थी। एरच कस्बे के पास स्थित बेतवा नदी के किनारे बसे डिकोली गांव को ऐतिहासिक डेकांचल पर्वत के किनारे बसा गांव माना जाता है। यह मान्यता है कि इसी डेकांचल पर्वत से भक्त प्रहलाद को नदी में फेंका गया था। जिस स्थान पर भक्त प्रह्लाद को फेंका गया था। उसे वर्तमान समय में लोग प्रह्लाद कुंड के नाम से जानते हैं।

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क्‍या कहते हैं जानकार?
इतिहासकर बताते हैं कि एरच को भक्त प्रहलाद की नगरी के रूप में ही जाना जाता है।उनके पास सिक्कों के संग्रह में से एक दुर्लभ सिक्का भी है, जिसमें एरच का नाम ब्रहम लिपि में एरिकच्छ लिखा है और नृत्य करती हुई मोर बनी हुई है।दतिया जिले में प्राप्‍त अशोक के शिलालेख में लिखी लिपि का तरीका एक जैसा है। इससे प्रतीत होता है कि भक्त प्रहलाद की नगरी में यह सिक्का में लगभग 2300 साल पहले चलता था।

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