Edited By Ajay kumar,Updated: 29 Jul, 2020 03:16 PM
अधिकारियों की मनमानी के खिलाफ फेसबुक पर अपना ''दर्द'' जाहिर करने वाले हरदोई से भाजपा सांसद जय प्रकाश रावत ने इस सिलसिले में मीडिया में आई खबरों पर बुधवार को अपनी सफाई पेश की।
लखनऊ: अधिकारियों की मनमानी के खिलाफ फेसबुक पर अपना 'दर्द' जाहिर करने वाले हरदोई से भाजपा सांसद जय प्रकाश रावत ने इस सिलसिले में मीडिया में आई खबरों पर बुधवार को अपनी सफाई पेश की। सांसद ने हाल में अपनी फेसबुक वॉल पर प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा जनप्रतिनिधियों की बात न सुने जाने पर चिंता जाहिर करते हुए कहा था कि अपने 30 साल के राजनीतिक करियर में उन्होंने ऐसी स्थिति का सामना पहले कभी नहीं किया।
स मामले के मीडिया में आने के बाद भाजपा सांसद रावत ने स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि फेसबुक पर की गई उनकी टिप्पणी को काफी तोड़-मरोड़ कर इसे सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल के तौर पर पेश किया गया है, जो बिल्कुल गलत है। उन्होंने कहा कि वह चाहते हैं कि जनकल्याण की योजनाओं के लिए सरकार द्वारा दिए गए धन का सदुपयोग हो। यह सही है कि स्थानीय स्तर पर कुछ अधिकारी जनप्रतिनिधियों की बातों की अनसुनी कर रहे हैं, मगर उनकी इस टिप्पणी को प्रदेश के सभी अधिकारियों के मामले में प्रासंगिक नहीं कहा जा सकता।
भाजपा सांसद ने कहा कि फेसबुक पर सामान्य चैट के दौरान उन्होंने स्थानीय अधिकारियों की मनमानी पर चिंता जाहिर की थी लेकिन यह उनके निर्वाचन क्षेत्र के एक बहुत छोटे से इलाके का मामला था। रावत ने कहा कि प्रदेश सरकार बहुत अच्छा काम कर रही है और कोविड-19 महामारी के दौर में भी उसने जनकल्याण की योजनाओं को बहुत अच्छे तरीके से लागू कराया है। हरदोई से सांसद जय प्रकाश रावत ने 'फेसबुक' पर लिखा था कि ‘‘जब से ऊपर से आदेश हो गया कि अधिकारी अपने विवेक से काम करें, तो हमको कौन सुनेगा? हमने तो 30 वर्ष के कार्यकाल में ऐसी बेबसी कभी महसूस नहीं की।''
दरअसल, एक फेसबुक यूजर ने एक पोस्ट लिखी कि कोविड-19 के दौरान सांसद और विधायकों ने अपनी निधि का जो पैसा दिया था उससे अगर हरदोई जिला अस्पताल में एक वेंटिलेटर मशीन लग जाए तो लोगों को कोरोना वायरस के बाद आगे भी बहुत राहत मिलेगी। इस पर गोपामऊ से भाजपा विधायक श्याम प्रकाश ने टिप्पणी की कि सब कमीशनखोरी की भेंट चढ़ गया है। इसके बाद सांसद जय प्रकाश रावत ने लिखा कि ‘‘मैंने अपनी निधि इसी शर्त पर दी थी कि वेंटिलेटर खरीदा जाए, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। पैसा कहां गया पता नहीं।''