आर्य समाज के प्रणेता स्वामी दयानंद से प्रभावित थे अटल वाजपेयी

Edited By Ruby,Updated: 19 Aug, 2018 11:31 AM

कम ही लोगों को पता है कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी आर्य समाज के प्रणेता स्वामी दयानंद सरस्वती से भी प्रभावित थे और भाजपा के मूल में प्राचीन परंपराओं का जो स्थान रहा, वाजपेयी ने उन्हें कभी विस्मृत नहीं होने दिया।  उत्तर प्रदेश की आर्य...

लखनऊः कम ही लोगों को पता है कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी आर्य समाज के प्रणेता स्वामी दयानंद सरस्वती से भी प्रभावित थे और भाजपा के मूल में प्राचीन परंपराओं का जो स्थान रहा, वाजपेयी ने उन्हें कभी विस्मृत नहीं होने दिया।  उत्तर प्रदेश की आर्य प्रतिनिधि सभा के जनसंपर्क प्रभारी विमल पाठक ने कहा,‘‘ये वही आर्य समाज है और ये वही अटल जी हैं, जिनकी अपनी रचना थी। हिंदू तन-मन, हिंदू जीवन, रग-रग हिंदू मेरा परिचय। मै शंकर का वह क्रोधानल कर सकता जगती क्षार-क्षार ।

पाठक ने दावा किया कि सुनने में यह अटपटा लग सकता है लेकिन हकीकत यही है कि अटल जी अपने शुरूआती दौर में आर्य समाज की परिपाटी को आत्मसात कर चुके थे जहां परपंरा के तहत मूर्ति पूजा वर्जित थी।  उन्होंने बताया कि अटल जी अपनी किशोरावस्था में आर्यकुमार सभा के महामंत्री थे जो ग्वालियर में आर्य समाज की युवा इकाई थी । आर्य समाज का गठन स्वामी दयानंद सरस्वती ने 1875 में किया था जो उन्नीसवीं और बीसवीं सदी का प्रखर हिन्दू संगठन हुआ करता था।  

पाठक ने बताया कि अटल ने अपनी उच्च शिक्षा भी आर्य समाज द्वारा स्थापित शिक्षण संस्थान दयानंद एंग्लो वैदिक :डीएवी: कालेज कानपुर से ग्रहण की और वहां से राजनीति शास्त्र की स्नातकोत्तर डिग्री हासिल की।  पाठक ने कहा,‘‘अटल जी की स्वीकार्यता का आलम ये था कि चाहे कोई समाज हो, धर्म हो, संप्रदाय हो या मतावलंबी हो, वह हर खांचे में‘फिट’होते थे बशर्ते बात उन्हें समझ आ जाए।‘‘  उन्होंने बताया कि आर्य समाज से अटल जी के जुडाव के समय के कुछ दिलचस्प किस्से भी हैं। 

स्वामी दयानंद सरस्वती की जन्मभूमि गुजरात :टंकारा: में आर्य समाज मंदिर में वह कई बार गये। अटल जी आर्य समाज से जुडे लोगों से निरंतर संपर्क में रहे।  उन्होंने बताया कि अटल जी की स्वीकार्यता इसीलिए रही क्योंकि उन्होंने किसी विचारधारा का कभी विरोध नहीं किया और उसके बारे में कभी नकारात्मक टिप्पणी भी नहीं की और ये बात उनके धुर विरोधी भी सार्वजनिक रूप से स्वीकार करते हैं। तभी वह आम जन में सर्वग्राही और सर्वसमावेशी कहलाते हैं। पाठक ने कहा कि आज अटल जी हमारे बीच नहीं हैं लेकिन समाज के हर तबके, हर व्यक्ति और हर मतावलंबी को लेकर चलने की क्षमता उनमें थी और उन्होंने इसे हर मौके पर साबित भी किया चाहे संसद के भीतर उनके भाषण हों या फिर आम जनता के बीच उनके संवाद रहे हों।  

उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय नेता वह होता है जिसकी स्वीकार्यता हर जगह हो और अटल जी ने इसे साबित करके दिखाया। इसका प्रमाण उनकी अंतिम यात्रा में उमड़ी भीड़ से इतर कुछ हो नहीं सकता ।
 

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