UP विधि आयोग ने भीड़ हिंसा रोकने के लिए दी विशेष कानून बनाने की सलाह, CM को सौंपी रिपोर्ट

Edited By Anil Kapoor,Updated: 11 Jul, 2019 04:40 PM

up law commission advised to create special law to prevent crowded violence

पिछले दिनों भीड़ हिंसा की घटनाओं (गाय पर हुई हिंसा) के मद्देनजर राज्य विधि आयोग ने सलाह दी है कि ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए एक विशेष कानून बनाया जाए। आयोग ने एक प्रस्तावित विधेयक का मसौदा भी तैयार किया है।

लखनऊ: पिछले दिनों भीड़ हिंसा की घटनाओं (गाय पर हुई हिंसा) के मद्देनजर राज्य विधि आयोग ने सलाह दी है कि ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए एक विशेष कानून बनाया जाए। आयोग ने एक प्रस्तावित विधेयक का मसौदा भी तैयार किया है। राज्य विधि आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति (अवकाश प्राप्त) ए एन मित्तल ने भीड हिंसा पर अपनी रिपोर्ट और प्रस्तावित विधेयक मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बुधवार को सौंपा।

आयोग की सचिव सपना त्रिपाठी ने गुरुवार को एक न्यूज एजेंसी से कहा कि ऐसी घटनाओं के मददेनजर आयोग ने स्वत: संज्ञान लेते हुये भीड़ तंत्र की हिंसा को रोकने के लिए राज्य सरकार को विशेष कानून बनाने की सिफारिश की है। मुख्यमंत्री को सौंपी गई 128 पन्नों वाली इस रिपोर्ट में राज्य में भीड़ तंत्र द्वारा की जाने वाले हिंसा की घटनाओं का हवाला देते हुए जोर दिया है कि उच्चतम न्यायालय के 2018 के निर्णय को ध्यान में रखते हुये विशेष कानून बनाया जाए।

आयोग का मानना है कि भीड. तंत्र की हिंसा को रोकने के लिये वर्तमान कानून प्रभावी नही है, इसलिए अलग से सख्त कानून बनाया जाए। आयोग ने सुझाव दिया है कि इस कानून का नाम उत्तर प्रदेश कॉबेटिंग ऑफ मॉब लिचिंग एक्ट रखा जाए तथा अपनी डयूटी में लापरवाही बरतने पर पुलिस अधिकारियों और जिलाधिकारियों की जिम्मेदारी तय की जाए और दोषी पाए जाने पर सजा का प्राविधान भी किया जाए। भीड़ हिंसा के जिम्मेदार लोगों को 7 साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा का भी सुझाव दिया गया है।

रिपोर्ट में कहा गया कि हिंसा के शिकार व्यक्ति के परिवार और गंभीर रूप से घायलों को भी पर्याप्त मुआवजा मिले। इसके अलावा संपत्ति को नुकसान के लिए भी मुआवजा मिले। ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए पीड़ित व्यक्ति और उसके परिवार के पुर्नवास और संपूर्ण सुरक्षा का भी इंतजाम किया जाए। उत्तर प्रदेश में उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2012 से 2019 तक ऐसी 50 घटनायें हुई जिसमें 50 लोग हिंसा का शिकार बने, इनमें से 11 लोगों की हत्या हुई जबकि 25 लोगों पर गंभीर हमले हुए है। इसमें गाय से जुड़े हिंसा के मामले भी शामिल है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि इस विषय पर अभी तक मणिपुर राज्य ने पृथक कानून बनाया है जबकि मीडिया की खबरों के मुताबिक मध्य प्रदेश सरकार भी इस पर शीघ्र कानून अलग से लाने वाली है। रिपोर्ट में राज्य में भीड़ हिंसा के अनेक मामलों का हवाला दिया गया है। जिसमें 2015 में दादरी में अखलाक की हत्या, बुलंदशहर में 3 दिसंबर 2018 को खेत में जानवरों के शव पाए जाने के बाद पुलिस और हिन्दू संगठनों के बीच हुई हिंसा के बाद इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की हत्या जैसे मामले शामिल है। आयोग के अध्यक्ष का मानना है कि भीड़ तंत्र के निशाने पर अब पुलिस भी है । न्यायमूर्ति मित्तल ने रिपोर्ट में कहा है कि भीड़ तंत्र की उन्मादी हिंसा के मामले फर्रूखाबाद, उन्नाव, कानपुर,हापुड़ और मुजफ्फरनगर में भी सामने आए है। उन्मादी हिंसा के मामलों में पुलिस भी निशाने पर रहती है और मित्र पुलिस को भी जनता अपना शत्रु मानने लगती है।

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