यूपीः कौड़ी,आना समेत दुलर्भ प्राचीन सिक्कों की प्रदर्शनी बनी आकर्षण का केंद्र

Edited By Moulshree Tripathi,Updated: 26 Jan, 2021 06:45 PM

up exhibition of rare ancient coins including kauri ana became center

कहावतों और इतिहास के पन्नों में सिमट चुकी प्राचीन भारतीय मुद्राओं की एक प्रदर्शनी यहां दर्शकों को आकर्षित कर रही है। उत्तर प्रदेश जालौन के उरई मेडिकल कॉलेज में

जालौन:  कहावतों और इतिहास के पन्नों में सिमट चुकी प्राचीन भारतीय मुद्राओं की एक प्रदर्शनी यहां दर्शकों को आकर्षित कर रही है। उत्तर प्रदेश जालौन के उरई मेडिकल कॉलेज में मुद्रा प्रदर्शनी में कौड़ी,आना समेत दुलर्भ प्राचीन सिक्के युवा दर्शकों के कौतूहल का केन्द्र बने हुये हैं वहीं 50 की उम्र पार कर चुके लोग अपने जमाने की चवन्नी,अठन्नी,एक,दो,तीन,पांच,दस और बीस पैसे के सिक्कों को देखकर गदगद हो रहे है जिन्हे वे प्राय: भूल चुके थे।       

डॉक्टर डी नाथ ने कहा कि नए भारत में डिजीटल प्रणाली जीवन का एक अंग बन गया है और युवा पीढ़ी के अलावा वरिष्ठ नागरिक भी चलन से बाहर हो चुकी मुद्रा को भूल चुके हैं। पुरानी मुद्रा के बारे में आज सिर्फ कहावत ही कागजों में सिमट कर रह गई है जैसे कहावत थी कि हमारे पास देने के लिए ना तो धेला और ना ही फूटी कौड़ी है।       

प्रदर्शनी के आयोजनकर्ता इतिहासकार डॉ हरिमोहन पुरवार ने कहा कि प्रदर्शनी में कौड़ी मुद्रा का संबंध वास्तविक रूप में दर्शाया गया है। प्रदर्शनी में स्वतंत्रता से पूर्व जब अपने भारत में यूनिवर्सल क्वॉइनएज सिस्टम लागू नहीं हुआ था। वर्ष 1835 से पूर्व अंग्रेजों द्वारा स्थापित बंगाल प्रेसिडेंसी,मद्रास प्रेसिडेंसी और मुंबई प्रेसिडेंसी के अंतर्गत अलग-अलग विभिन्न मुद्राओं प्रचलन में थी। यूनिवर्सल क्वॉइनएज सिस्टम अंग्रेजों ने वर्ष 1835 से विलियम चतुर्थ के समय से शुरू किया। बाद में 1840 से 1901 तक विक्टोरिया,1903 से 1910 तक एडवडर्,1911 से 1922 तक जॉर्ज पंचम और 1938 से 1947 तक जॉर्ज षष्टम की मुद्रा चलती रही। स्वतंत्रता के पूर्व जॉर्ज पंचम वा जॉर्ज षष्टम के बैंक नोट प्रदर्शनी के आकर्षण का केंद्र रहा।

उन्होंने कहा कि आजादी के बाद 1950 तक जॉर्ज षष्टम की मुद्राएं ही प्रचलन में रही। वर्ष 1947 में आजादी के समय जो दस हजार करोड़ रुपए पाकिस्तान को दिए गए थे, उस करेंसी पर गवर्नमेंट ऑफ पाकिस्तान ऊपर से छाप कर पाकिस्तान ने अपनी अर्थव्यवस्था को गतिशीलता प्रदान की। ऐसे नोटों व डाक टिकटों ने सभी दर्शकों का मन मोहा। वर्ष 1950 से 1955 तक अपने राजकीय चिन्ह अशोक की लाट पर नीचे अंकित अस्व वृषभ अंकन से युक्त मुद्राओं का चलन रहा। उस समय एक रुपए में 64 पैसे एक आने में चार पैसे और 16 आना का एक रूपया होता था।       

 

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