दुर्भाग्य! निर्दोष ने 20 साल उस जुर्म की काटी सजा, जो कभी किया ही नहीं, अब हुई रिहाई

Edited By Tamanna Bhardwaj,Updated: 04 Mar, 2021 05:21 PM

unfortunate innocent sentenced to 20 years for a crime

न्यायिक सिद्धांत में अक्सर कहा जाता है कि भले ही 100 गुनेहगार छूट जाएं, लेकिन किसी भी निर्दोष को सजा नहीं होनी चाहिए, लेकिन ललितपुर के विष्णु तिवारी की निर्दोष होते हुए भी पूरी जिंदगी बर्बाद हो गई। रेप व हरिजन एक्ट के मुदकमे में निचली अदालत ने...

ललितपुर: न्यायिक सिद्धांत में अक्सर कहा जाता है कि भले ही 100 गुनेहगार छूट जाएं, लेकिन किसी भी निर्दोष को सजा नहीं होनी चाहिए, लेकिन ललितपुर के विष्णु तिवारी की निर्दोष होते हुए भी पूरी जिंदगी बर्बाद हो गई। रेप व हरिजन एक्ट के मुदकमे में निचली अदालत ने उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई, लेकिन 20 साल जेल में रहने के बाद हाईकोर्ट ने उन्हें बेकसूर करार देते हुए बाइज्जत बरी कर दिया, लेकिन जेल में काटे 20 सालों ने उन्हें क्या-क्या दुख दिए हैं, वो विष्णु तिवारी के मुंह पर साफ देखा जा सकता है।
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20 साल जेल काटने के बाद आज विष्णु आजाद है, लेकिन उसका कहना है कि जब कोई जिंदगी बची ही नहीं, तो वह जिएगा क्या? जेल में जानवरों जैसा बर्ताव किया गया। न कभी फोन करने दिया गया, न घरवालों को चिट्ठी तक लिखने दी। विष्णु कहते हैं कि मर-मर के उसने इस उम्मीद में यह 20 साल काट लिए कि कभी परिवारवालों से मिल पाएगा, लेकिन, वह जो हरा-भरा परिवार छोड़ कर गया था, उसे सामाजिक तिरस्कार ने बर्बाद कर दिया। बेटे का जेल जाना माता-पिता झेल नहीं पाए और उनकी मौत हो गई। समाज के बुरे बर्ताव की वजह से दोनों भाइयों की हार्ट अटैक से जान चली गई। भाई के छोटे-छोटे बच्चे, जिन्हें वह पीछे छोड़ कर गया था, अब वही उसका सहारा हैं। उन्होंने भी अपना जीवन कैसे गुजारा, वही जानते हैं।

विष्णु तिवारी के छोटे भाई महादेव तिवारी (33 वर्ष) कानून व्यवस्था को कोसते हुए कहते हैं। "मेरे भाई के साथ जो कुछ हुआ वह किसी के साथ ना हो। गरीब निर्दोष फंस जाते हैं, भोगता पूरा परिवार है। जैसे हमारे परिवार ने भोगा, सब बर्बाद हो गया। वह 20 साल उस जुर्म के लिए जेल काटकर बाहर आएगा, जो उसने किया ही नहीं था। माता-पिता और 2 भाइयों की मौत हो गई, उनकी अर्थी को कांधा नहीं दे सका। जमीन बिक गई, पूरा परिवार सड़क पर आ गया हमारा।" 

विष्णु ने बताया कि 20 साल पहले एक गाय और पशुओं को लेकर छोटी सी कहासुनी हुई थी, लेकिन राजनीतिक ताकत की वजह से दूसरे पक्ष ने उसपर SC/SC एक्ट के तहत केस दर्ज कर दिया। विष्णु अनपढ़ था, कुछ समझ नहीं पाया। गरीब था इसलिए अपनी तरफ से वकील भी खड़ा नहीं कर सकता था। एक दिन कोर्ट ने उसके पक्ष में सरकारी वकील खड़ा कर उसे आजीवन कारावास की सजा सुना दी। विष्णु ने बताया कि जब जज ने जेल भेजने का निर्णय सुनाया, तो सामने बैठे होने के बावजूद उसको पता नहीं चला कि उसे सजा दे दी गई है।

विष्णु बताया कि वकीलों ने कहा पैसा दो तो विष्णु की जमानत हो जाएगी। इस चक्कर में पिता ने जमीन तक बेच दी, लेकिन विष्णु ने बताया कि सारा पैसा वकील गप कर गए और कोई कार्रवाई नहीं हुई। बेटे की चिंता ने पिता की जान ले ली। कुछ साल बाद, 2014 में मां भी चली गईं। दोनों भाई भी मर गए। उसे तो 3 साल तक पता भी नहीं चला कि उसकी मां नहीं रहीं। 2017 में छोटे भाई की मौत के बाद भतीजे ने खत लिखकर भाई और मां के बारे में बताया। परिवार के 4 लोगों को खोने के बाद भी विष्णु को एक भी बार किसी की अर्थी में शामिल नहीं होने दिया गया। आज भाभियां और भतीजे किराए के मकान में मुश्किलों से जीवन व्यतीत कर रहे हैं।

विष्णु का कहना है कि उसका परिवार, मकान, जमीन सब खत्म हो गया। वह सरकार से एक ही अपील करता है कि उसे दोबोरा अपने पैरों पर खड़ा करने में मदद करें। विष्णु ने उस जुर्म की सजा काटी, जो उसने कभी किया ही नहीं था। न्यायपालिका की देरी की वजह से जो नाइंसाफी हुई है, विष्णु और उसका परिवार न्याय की उम्मीद में बैठा है।

बता दें कि विष्णु तिवारी को 20 साल जेल काटने के दौरान न उन्हें एक बार भी जमानत मिली और न ही पैरोल पर छूटे, जबकि कोरोना काल में कई कैदी पैरोल पर छूटकर बाहर आए। मुकदमा लड़ते-लड़ते और सदमे में माता-पिता और दो भाई चल बसे। परिवार के पास जो पांच एकड़ जमीन थी वो भी बिक गई। विष्णु कहते हैं कि अफ़सोस इस बात का है कि वे किसी को भी कंधा नहीं दे सकें। 

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