Edited By Ramkesh,Updated: 25 Dec, 2024 10:29 AM
उत्तर प्रदेश के संतों ने मस्जिदों और दरगाहों को मंदिर बताकर उनका सर्वे कराये जाने के ताजा सिलसिले पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत की तल्ख टिप्पणी पर मिली-जुली राय व्यक्त की है। कुछ लोग जहां मंदिरों को फिर से अपने अधिकार में...
प्रयागराज: उत्तर प्रदेश के संतों ने मस्जिदों और दरगाहों को मंदिर बताकर उनका सर्वे कराये जाने के ताजा सिलसिले पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत की तल्ख टिप्पणी पर मिली-जुली राय व्यक्त की है। कुछ लोग जहां मंदिरों को फिर से अपने अधिकार में लेने के पक्ष में हैं, वहीं अन्य का मानना है कि ऐसे मुद्दों को संवैधानिक ढांचे के भीतर ही सुलझाया जाना चाहिए। भागवत ने हाल में चिंता व्यक्त की थी कि अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के बाद कुछ लोग धार्मिक स्थलों पर नए विवाद उठाकर खुद को “हिंदुओं के नेता” के रूप में उभारने का प्रयास कर रहे हैं।
ऐतिहासिक मंदिर स्थलों को फिर से अपने अधिकार में लेना सही
अयोध्या के राम मंदिर के मुख्य पुजारी महंत सत्येंद्र दास ने आरएसएस प्रमुख की टिप्पणी पर प्रतिक्रिया देते हुए ऐतिहासिक मंदिर स्थलों को फिर से अपने अधिकार में लेने के लिए निर्णायक कार्रवाई का आह्वान किया। उन्होंने कहा, ''अगर जांच से पता चलता है कि हिंदुओं को विस्थापित किया गया और मंदिरों पर कब्ज़ा किया गया, तो उन्हें वापस पाने के प्रयास किए जाने चाहिए। मुख्यमंत्री (योगी आदित्यनाथ) का ऐसे स्थलों की पहचान करने और पूजा फिर से शुरू कराने का तरीका सही है। जहां भी मंदिर हैं, उन्हें वापस लेना उचित है।'' दास ने कहा, ''मंदिर अब खोजे जा रहे हैं। पहले ऐसे प्रयास क्यों नहीं किए गए? मुख्यमंत्री अब जो कर रहे हैं, वह उचित है।''
स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती बोले- धार्मिक मुद्दों को संवैधानिक ढांचे के भीतर हल करना चाहिए
इस बीच, अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने राष्ट्रीय सद्भाव बनाए रखने के बारे में आरएसएस प्रमुख के व्यापक दृष्टिकोण का समर्थन किया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारत वर्तमान में किसी भी आंतरिक संघर्ष से गुजरने की स्थिति में नहीं है। सरस्वती ने कहा, ''हमें भागवत के बयानों के महत्व को समझना चाहिए। धार्मिक और राष्ट्रीय मुद्दों को संवैधानिक ढांचे के भीतर हल किया जाना चाहिए। देश एक और गृहयुद्ध जैसी स्थिति बर्दाश्त नहीं कर सकता।'' हालांकि, सरस्वती ने यह भी कहा कि अयोध्या विवाद का समाधान उच्चतम न्यायालय के जरिए हुआ था, न कि मुस्लिम पक्ष द्वारा दिखाई गई किसी उदारता के कारण।
जब तक कोर्ट का फैसला नहीं आता तब तक हमें धैर्य रखने की जरूरत: स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती
मौजूदा कानूनी परिदृश्य पर चर्चा करते हुए सरस्वती ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने पूजा स्थल अधिनियम पर सुनवाई शुरू कर दी है और संयुक्त संसदीय समिति वक्फ अधिनियम की जांच कर रही है। उन्होंने कहा, ''जब तक ये प्रक्रिया पूरी नहीं हो जातीं, तब तक धैर्य रखना जरूरी है। सरस्वती ने भागवत के बयान से असहमति जताने वाले स्वामी रामभद्राचार्य का जिक्र करते हुए कहा, ''लोकतंत्र में मतभेद की अनुमति है, जैसा कि आदरणीय रामभद्राचार्य की टिप्पणियों से देखा जा सकता है।
कोई भी देश को हिंसा में धकेलने का समर्थन नहीं करता
भागवत और रामभद्राचार्य दोनों ने इस प्रकाश में अपने दृष्टिकोण प्रस्तुत किये हैं।'' सरस्वती ने धार्मिक नेताओं और समुदायों से रचनात्मक संवाद में शामिल होने का आग्रह किया। उन्होंने कहा, ''आगामी महाकुंभ सामूहिक चर्चाओं, स्पष्टता और आम सहमति को बढ़ावा देने का अवसर प्रदान करेगा। कोई भी देश को हिंसा में धकेलने का समर्थन नहीं करता है, वह भी तब, जब यह विकास के पथ पर तेजी से आगे बढ़ रहा है।''
रामभद्राचार्य ने आरएसएस प्रमुख की बात का नहीं किया समर्थन
संभल में हुई हिंसा का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, ''हमें परिस्थितियों को समझना होगा और यही बात आरएसएस प्रमुख ने कही है। लोकतंत्र में पूज्य संत रामभद्राचार्य को असहमति का अधिकार है। जिस तरह आरएसएस प्रमुख ने अपने विचार रखे, उसी तरह रामभद्राचार्य जी ने भी अपने विचार रखे। सरस्वती ने कहा, ''संघ प्रमुख की राय पर विचार किया जाना चाहिए। इसे खारिज नहीं किया जा सकता। धार्मिक विषय संवेदनशील विषय हैं और उन पर बोलने से पहले सभी को सोचना चाहिए।"
हाल में उत्तर प्रदेश में मंदिर-मस्जिद विवादों से संबंधित कई मुकदमे विभिन्न अदालतों में दायर किए गए हैं। इनमें संभल की शाही जामा मस्जिद से लेकर बदायूं की जामा मस्जिद शम्सी और जौनपुर की अटाला मस्जिद तक शामिल हैं। इन मामलों में हिंदू याचिकाकर्ताओं ने यह दावा करते हुए पूजा करने की अनुमति मांगी है कि जिन जगहों पर अब मस्जिदें हैं, वहां प्राचीन मंदिर थे। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने 19 दिसंबर को कई मंदिर-मस्जिद विवादों के फिर से उठने पर चिंता व्यक्त की थी और कहा था कि अयोध्या के राम मंदिर के निर्माण के बाद कुछ लोग यह मानते हैं कि वे ऐसे मुद्दों को उठाकर 'हिंदुओं के नेता' बन सकते हैं।