Edited By Mamta Yadav,Updated: 02 Oct, 2025 04:43 PM

कानपुर के परेड मैदान पर हिंदू मुस्लिम एकता की मिशाल के साथ रामलीला का मंचन व रावण दहन किया जाता है वही एक तरफ जहा “आई लव मोहम्मद” को लेकर शहर से लेकर देश-दुनिया तक विवाद छिड़ा हुआ है, वहीं दूसरी ओर परेड ग्राउंड में रावण, मेघनाथ और कुंभकरण के विशाल...
Kanpur News, (प्रांजुल मिश्रा): कानपुर के परेड मैदान पर हिंदू मुस्लिम एकता की मिशाल के साथ रामलीला का मंचन व रावण दहन किया जाता है वही एक तरफ जहा “आई लव मोहम्मद” को लेकर शहर से लेकर देश-दुनिया तक विवाद छिड़ा हुआ है, वहीं दूसरी ओर परेड ग्राउंड में रावण, मेघनाथ और कुंभकरण के विशाल पुतले बनाने वाले सलीम खान ने हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल पेश की है।

सलीम के सीने के बाईं ओर रामलीला कमेटी का पहचान पत्र
राजस्थान के हिंडोन सिटी के रहने वाले सलीम खान पिछले कई दशकों से कानपुर की ऐतिहासिक रामलीला परेड (148 वर्ष पुरानी) में पुतले बनाने का काम करते आ रहे हैं। वे अपनी कारीगरों की टीम के साथ करीब डेढ़ महीना पहले ही कानपुर पहुंच जाते हैं। रामलीला कमेटी उनकी पूरी व्यवस्था—रहने, खाने और काम करने की—करती है। इस दौरान सलीम और उनकी टीम मिलजुलकर रावण, कुंभकरण और मेघनाथ के पुतले तैयार करते हैं। पुतले बनाते समय सलीम के सीने के बाईं ओर रामलीला कमेटी का पहचान पत्र (बिल्ला) लगा हैं, जिसमें भगवान श्रीराम की तस्वीर लगी है।

भगवान राम की फोटो लगाने से मजहब नहीं बदल गया...सलीम
जब उनसे पूछा गया कि एक मुस्लिम होकर वे राम की तस्वीर वाला बिल्ला क्यों लगाए हैं, तो उन्होंने सहजता से जवाब दिया कि भगवान राम की फोटो लगाने से उनका मजहब नहीं बदल गया। वो पूरे महीने भगवान राम के इस बिल्ले को सीने से लगाकर रखते है। सलीम का कहना है कि इतने सालों में कानपुर में कभी भी धार्मिक भेदभाव महसूस नहीं हुआ। रामलीला कमेटी हर साल उन्हें सादर निमंत्रण देती है, और वे भी पूरे उत्साह के साथ यहां आते हैं। कुंभकरण, मेघनाथ और रावण के इन पुतलों को बनाने में लाखों रुपये का खर्च आता है। इन्हें तैयार करने में मज़बूत लकड़ी और खास कागज़ का इस्तेमाल किया जाता है, ताकि पुतले का आकार घुमावदार और टिकाऊ बन सके। इस पूरी तैयारी में सलीम खान और उनकी टीम न सिर्फ अपनी कला दिखा रही है, बल्कि सांप्रदायिक सौहार्द और एकता का सुंदर संदेश भी दे रही है...“हम सब एक हैं।”
