Edited By PTI News Agency,Updated: 06 Aug, 2022 06:49 PM
वाराणसी, छह अगस्त (भाषा) उत्तर प्रदेश के घोसी से बसपा सांसद अतुल राय को वाराणसी की एमपी एमएलए अदालत ने शनिवार को बाइज्जत बरी कर दिया है। राय के खिलाफ दुष्कर्म, फर्जीवाड़ा, धमकी देने और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज था, और वह...
वाराणसी, छह अगस्त (भाषा) उत्तर प्रदेश के घोसी से बसपा सांसद अतुल राय को वाराणसी की एमपी एमएलए अदालत ने शनिवार को बाइज्जत बरी कर दिया है। राय के खिलाफ दुष्कर्म, फर्जीवाड़ा, धमकी देने और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज था, और वह फिलहाल नैनी जेल में हैं।
सांसद के अधिवक्ता अनुज यादव ने बताया कि विशेष न्यायाधीश एमपी एमएलए अदालत सियाराम चौरसिया ने सांसद को उनके खिलाफ दर्ज सभी मामलों से बाइज्जत बरी कर दिया है।
यादव ने बताया कि अदालत ने पीड़िता के बयान को विश्वसनीय नहीं माना और उसकी ओर से मामले साक्ष्य नहीं दिया जा सका और घटना साबित नहीं हो सकी।
गौरतलब है कि बलिया जिले के मूल निवासी और वाराणसी के उप्र कॉलेज की पूर्व छात्रा ने एक मई 2019 को अतुल राय पर दुष्कर्म सहित अन्य मामलों में मुकदमा दर्ज कराया था।
पीड़िता ने तहरीर में लिखा था कि अतुल राय ने उसे अपने चितईपुर स्थित फ्लैट में ले जाकर दुष्कर्म करने के साथ ही, उसकी फोटो और वीडियो बना लिया, जिसके बाद वीडियो वायरल करने की धमकी देकर दुष्कर्म करने लगे।
सांसद ने 22 जून 2019 को अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया था, तब से वह प्रयागराज के नैनी जेल में बंद हैं।
इसी बीच 16 अगस्त 2021 को उच्चतम न्यायालय के सामने पीड़िता और उसके मित्र तथा मुकदमे के गवाह सत्यम राय ने फेसबुक लाइव कर आत्मदाह करने का प्रयास किया, जिनकी बाद में उपचार के दौरान मौत हो गयी थी ।
आत्महत्या करने से पहले दोनों ने एक फेसबुक लाइव वीडियो रिकॉर्ड किया था जिसमें कथित पीड़िता ने अपनी पहचान का खुलासा किया और दावा किया कि उसने 2019 में राय के खिलाफ बलात्कार का मामला दर्ज किया था। उनलोगों ने यह भी आरोप लगाया कि कुछ वरिष्ठ पुलिस अधिकारी आरोपी का समर्थन कर रहे थे।
दोनों को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में लखनऊ में हजरतगंज पुलिस ने राय के खिलाफ मामला दर्ज किया था।
इस मामले में जुलाई में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने राय को जमानत देने से इनकार करते हुए संसद और भारत निर्वाचन आयोग से अपराधियों को राजनीति से हटाने तथा राजनेताओं और नौकरशाहों के बीच अपवित्र गठजोड़ को तोड़ने के लिए प्रभावी उपाय करने को कहा था।
न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह की पीठ ने कहा कि लोकतंत्र को बचाने के लिए अपराधियों को राजनीति या विधायिका में प्रवेश करने से रोकने के लिए अपनी सामूहिक इच्छाशक्ति दिखाना संसद की जिम्मेदारी है।
राय के खिलाफ 23 मामलों का आपराधिक इतिहास, आरोपी की ताकत, रिकॉर्ड पर सबूत और सबूतों के साथ छेड़छाड़ की संभावना को देखते हुए पीठ ने कहा था कि आरोपी को इस स्तर पर जमानत नहीं दी जा सकती ।
राय के अधिवक्ता अनुज यादव ने यह भी कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने जिस जमानत याचिका को खारिज कर दिया था, वह इसी मामले से संबंधित है।
उन्होंने यह भी कहा कि जब उन्हें आत्महत्या के लिए उकसाने के आपराधिक साजिश से संबंधित मामले में जमानत मिल जाएगी, तब राय को जेल से रिहा किया जाएगा।
अधिवक्ता ने यह भी कहा, ''उच्च न्यायालय ने हमें इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य जमा करने का निर्देश दिया था। इसकी जांच के बाद अदालत ने पाया कि मामला राजनीतिक साजिश के तहत और लोकसभा चुनाव में उन्हें हराने की साजिश के तहत दर्ज किया गया है।''
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