नृत्य प्रस्तुत करने आईं पद्मश्री अरुणा मोहंती ने कहा- ओडिसी मेरा पेशा नहीं नशा है

Edited By Ajay kumar,Updated: 01 Apr, 2023 12:36 PM

odissi is not my profession but an addiction padma shri aruna mohanty

आज यानि 1 अप्रैल से लखनऊ में आयोजित ओडिसा दिवस पर ओडिसी नृत्य प्रस्तुत करने आईं पद्मश्री अरुणा मोहंती ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ओडिसी नृत्य ने अपनी खास जगह बना ली है। अमेरिका में ओडिसी को कथक और भरतनाट्यम जैसा सम्मान हासिल है।

लखनऊ: आज यानि 1 अप्रैल से लखनऊ में आयोजित ओडिसा दिवस पर ओडिसी नृत्य प्रस्तुत करने आईं पद्मश्री अरुणा मोहंती ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ओडिसी नृत्य ने अपनी खास जगह बना ली है। अमेरिका में ओडिसी को कथक और भरतनाट्यम जैसा सम्मान हासिल है। बता दें कि ओडिसी नृत्यांगना पद्मश्री अरुणा मोहंती नृत्य में अपने प्रयोगों के लिए जानी जाती हैं। उनका - एक कम्पोजीशन प्रतिनायक भुवनेश्वर से लेकर न्यूयार्क तक कलाप्रेमियों के 5 दिलों पर दस्तक दे चुका है।

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ओडिसी देवदासियां किया करती थीं
पद्मश्री गंगाधर प्रधान की शिष्या अरुणा मोहंती ने बताया कि कथक की तरह से ओडिसी भी मंदिरों से निकला नृत्य है। इसे देवदासियां किया करती थीं। ओडिसी नृत्य पहले सिर्फ महिलायें ही करती थीं लेकिन अब बड़ी संख्या में पुरुष भी इस नृत्य को करते हैं।

यह मेरा पेशा नहीं नशा है
अरुणा मोहंती उड़ीसा संगीत नाटक अकादमी की अध्यक्ष हैं। भुवनेश्वर में उड़ीसा डांस अकादमी की सचिव हैं। उन्होंने छह साल की उम्र में ओडिसी नृत्य सीखना शुरू किया था। 57 साल की उम्र में पद्मश्री मिला। बोलीं, जीवन एक यात्रा है। हर पल डांस को समर्पित है। यह मेरा पेशा नहीं नशा है। यह मेरा पैशन है। यही पैशन मेरा भगवान है। इन 51 सालों में हर सांस में सिर्फ और सिर्फ डांस ही था मगर पद्मश्री के रूप में मेरे डांस को सामाजिक मान्यता मिली तो उसके बाद मुझे डर लगना शुरू हुआ। उसके बाद ही समाज की अपेक्षाएं बढ़ गईं। इसके बाद देश घूम लिया, दुनिया घूम ली। आज 64 की हूं। 16 जैसी परफार्मेंस नहीं कर सकती लेकिन अपेक्षाओं पर खरा उतरने की कोशिश लगातार कर रही हूं। वह कहती हैं कि हिरण्यकश्यप न होता तो हम प्रहलाद को कैसे पहचानते। रावण न होता तो हम राम को कैसे पहचानते। दरअसल हमारे भीतर देव और दानव दोनों होते हैं। मैंने भगवतगीता को ओडीसी में ढाला है। शंकराचार्य के साथ बैठी हूं। मेरी कोशिशों के नीचे मेरा दानव दब गया है। अपने जीवन में लगातार काम करने के बाद यह पूछती हूं कि मृत्यु भी तो एक स्टाइल है फिर उस पर परेशानी क्यों?

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आपका विवेक ही आपका औचित्य डिसाइड करता है
अरुणा मोहंती कहती हैं कि आपका विवेक ही आपका औचित्य डिसाइड करता है। जिस दिन यह जान लिया कि भगवान अंतरात्मा में होता है मूर्ति में नहीं। उस दिन लॉ ऑफ़ नेचर समझ आ जायेगा। उस दिन समझ आ जायेगा कि मूर्ति जगन्नाथ की हो, नटराज की या फिर सिर्फ एक जलता हुआ दिया। सब में एक जैसा ईश्वर नजर आएगा। जिस दिन ईश्वर को पहचान लिया उस दिन फल की इच्छा खत्म हो जायेगी और जो भी मिले वह प्रसाद लगेगा और हर हाल में खुश रहना आ जायेगा।

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