इटावा आरक्षित सीट पर लगातार नहीं मिल सकी है किसी को जीत, जानें इस बार क्या हैं समीकरण?

Edited By Tamanna Bhardwaj,Updated: 04 May, 2024 04:58 PM

no one has been able to win the etawah reserved seat continuously

यादवपट्टी की सबसे अहम मानी जाने वाली उत्तर प्रदेश की इटावा संसदीय सीट पर आरक्षित होने के बाद कोई उम्मीदवार लगाता...

इटावा: यादवपट्टी की सबसे अहम मानी जाने वाली उत्तर प्रदेश की इटावा संसदीय सीट पर आरक्षित होने के बाद कोई उम्मीदवार लगातार जीत हासिल नहीं कर सका है। राजनीतिक टीकाकार और वरिष्ठ पत्रकार गुलशन कुमार के अनुसार साल 2009 में सामान्य से आरक्षित घोषित हुई इटावा लोकसभा सीट पर पहला लोकसभा चुनाव हुआ था। उसके बाद से यह तीसरा चुनाव है। पिछले तीन लोकसभा चुनाव में इटावा लोकसभा क्षेत्र के मतदाताओं ने हर बार नए चेहरे को जिता कर संसद भेजने का कार्य किया है। वर्ष 2009 में समाजवादी पार्टी के प्रेमदास कठेरिया, 2014 में भाजपा के अशोक दोहरे व 2019 में भाजपा के ही डॉ. रामशंकर कठेरिया को जीत मिली थी।

इटावा आरक्षित सीट पर चौथी बार चुनाव हो रहा
वर्ष 2024 में इटावा आरक्षित सीट पर चौथी बार चुनाव हो रहा है। भाजपा के डॉ. रामशंकर कठेरिया को छोड़कर समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने इस बार नए चेहरों पर दांव लगाया है। इसमें भी बहुजन समाज पार्टी की प्रत्याशी सारिका सिंह बघेल पूर्व में लोकसभा चुनाव हाथरस से राष्ट्रीय लोकदल पार्टी की सांसद रह चुकी हैं। यानी उन्हें लोकसभा चुनाव लड़ने का न सिर्फ अनुभव है, बल्कि वह जीत भी चुकी हैं। बात समाजवादी पार्टी की करें तो जितेंद्र दोहरे पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं। वह अपनी पत्नी को इटावा जनपद के ब्लॉक महेवा का ब्लॉक प्रमुख बनवा चुके हैं। महेवा को एशिया महाद्वीप के पहले ब्लॉक होने का दर्जा प्राप्त है।        

इस बार समाजवादी पार्टी इंडिया गठबंधन के तहत चुनाव लड़ रही है, जो कांग्रेस,आम आदमी पार्टी, माकपा के सहयोग से चुनाव मैदान में है। इस वजह से मजबूत स्थिति में कही जा सकती है। गठबंधन के उम्मीदवार को मुस्लिम, यादव वोटों का सहारा तो है ही। साथ ही उन्हें अनुसूचित जाति के वोट भी अच्छी संख्या में मिलने का अनुमान है। इसकी वजह जितेंद्र दोहरे का पूर्व में बहुजन समाज पार्टीका जिलाध्यक्ष होने के अलावा भरथना विधानसभा के विधायक राघवेंद्र गौतम हैं। यह भी बहुजन समाज पार्टी के जिलाध्यक्ष रह चुके हैं। ऐसे में दोनों की अनुसूचित जाति के मतदाताओं पर अच्छी पकड़ मानी जा सकती है यानी दोनों नेताओं के स्थानीय होने का लाभ समाजवादी पार्टी को मिल सकता है।        

रामशंकर कठेरिया हैं वर्तमान सांसद
अनुसूचित जाति के ज्यादातर वोटर बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार को बाहरी मानकर उसके खिलाफ वोट कर सकते हैं, यदि उन्हें वह समझाने में सफल रही तो। समाजवादी पार्टी फिलहाल इसी लगी हुई है और अपनी गोटी फिट करने में लगी हुई है। जहां तक बात भाजपा उम्मीदवार डॉ. रामशंकर कठेरिया की करें तो वह वर्तमान में सांसद हैं। वर्ष 2019 के चुनाव में वह विजयी हुए थे। कहने को इटावा उनका गृह जनपद है, लेकिन बावजूद इसके वह मूल निवासी आगरा के हैं और वह इटावा में खुद के लिए वोट नहीं डाल सकते। इस वजह से उन्हें भी यदि बाहरी कहा जाए तो शायद गलत नहीं होगा।        

भाजपा को सिर्फ अपना दल का समर्थन मिला हुआ है। चुनाव प्रचार में बस एक सप्ताह का समय शेष है। अभी तक भाजपा उम्मीदवार के पक्ष में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ चुनावी सभा को जरूर संबोधित कर चुके हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 5 मई को इटावा के भरथना में इटावा, मैनपुरी,कन्नौज और फरुर्खाबाद की एक संयुक्त चुनावी रैली को संबोधित करने के लिए आ रहे हैं लेकिन इसके बावजूद फिर भी एकतरफा जीत की उम्मीद नहीं की जा रही है।  इसकी एक वजह वोटरों का खामोश रहना है, जो कहीं न कहीं पार्टी के नेताओं की नीतियों से खिन्न नजर आ रहे हैं। वैसे भी भाजपा में जिस तरह की गुटबंदी 2019 के चुनाव के बाद से देखी जा रही है,वह खाई लगातार चौड़ी होती जा रही है। इससे कार्यकर्ताओं तक मनोबल जिस तरह से गिरा हुआ है। वह भी भाजपा के लिए शुभ संकेत नहीं है। इसकी मुख्य वजह छोटे स्तर तक का काम न होना है । डबल इंजन सरकार के बावजूद कार्यकर्ताओं के लाइसेंस तक नहीं बन सके। एक दूसरे के गुट का होने की वजह से काम नहीं होने से ऐसे कार्यकर्ता गहरी निराशा में डूबे हुए हैं।        

बीजेपी के नाराज कार्यकर्ताओं ने कहा- वह तो वोट पार्टी को देंगे ही, लेकिन...
ऐसे में नाराज कार्यकर्ताओं का कहना है कि वह तो वोट पार्टी को देंगे ही, लेकिन परिवार, पड़ोसी और मोहल्ले में वोट डालने की अपील तो कर रहे हैं लेकिन उन पर किसी तरह का दवाब बनाने की स्थिति नहीं है। कुल मिला कर जिले का संगठन जिस तरह से कार्य कर रहा है। वह भी सवालों के घेरे में है। उम्मीद है प्रधानमंत्री की चुनावी रैली के बाद हालात में शायद कुछ सुधार हो जाए। अन्यथा पिछले तीन चुनावों का जो रिकाडर् है उसे तोड़ना बहुत ही मुश्किल होगा। पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री और भारतीय जनता पार्टी के सांसद उम्मीदवार मोदी और योगी सरकार की योजनाओं के भरोसे अपनी दोबारा जीत का बड़ा दावा कर रहे है।      

बहुजन समाज पार्टी से सपा में आए जितेंद्र दोहरे को इंडिया गठबंधन की ओर से टिकट दिया गया है। बहुजन समाज पाटर्ी की पृष्ठभूमि से जुड़े जितेंद्र दोहरे अपनी जीत का बड़ा दावा करते हुए बताते है कि मोदी और योगी सरकार ने आम जनमानस के लिए कोई जन पक्षीय काम नहीं किया है जिससे लोगो में सत्ता दल के खिलाफ खासी नाराजगी है उम्मीद है कि लोग उनको वोट करेगे जिससे उनकी जीत तय है।  बसपा की सारिका सिंह बघेल का इटावा मायका है। उनके नाना घसीराम इटावा से सात दफा विधायक रह चुके है। 15वीं लोकसभा में सारिका सिंह बघेल हाथरस से सांसद निर्वाचित हो चुकी है। उनका दावा है कि बसपा का मूल वोट और उनके परिवार का पुराना राजनीतिक इतिहास उनकी जीत में बड़ा सहायक साबित होगा। 


 

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