Edited By Ajay kumar,Updated: 22 Feb, 2020 01:42 PM
आईआईटी कानपुर ने एक महत्वपूर्ण अविष्कार किया है। इस अविष्कार से बड़ा बदलाव होगा। दरअसल कॉस्मेटिक और फार्मा कंपनियां अपने उत्पादों...
कानपुरः आईआईटी कानपुर ने एक महत्वपूर्ण अविष्कार किया है। इस अविष्कार से बड़ा बदलाव होगा। दरअसल कॉस्मेटिक और फार्मा कंपनियां अपने उत्पादों और त्वचा संबंधी दवाओं के लिए जानवरों पर ट्रायल करती हैं जो कि बहुत दर्दभरा होता है। संस्थान के केमिकल इंजिनियरिंग विभाग ने ऐसी थ्री-डी आर्टिफिशल त्वचा विकसित की है, जो जीव-जंतुओं पर होने वाले क्लिनिकल ट्रायल का ऑप्शन बनेगी।
बंदरों-चूहों की त्वचा की हूबहू कॉपी होगी यह स्किन
बता दें कि कॉस्मेटिक और फार्मा कंपनियां अपने उत्पादों और त्वचा संबंधी दवाओं के दर्दभरे क्लिनिकल ट्रायल बंदरों, खरगोशों और चूहों पर करती हैं। सेकेंड ऑप्शन जो कि पेपर, नैनो कणों और फाइबर की मदद से बनाई गई है। यह स्किन बंदरों-चूहों की त्वचा की हूबहू कॉपी होगी।
दर्दभरी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है बेजुबानों को
इसमें बेजुबान जीव-जंतुओं को दर्दभरी प्रक्रिया से गुजरना होता है। इस प्रक्रिया में कई बार उनकी मौत भी हो जाती है। रिसर्च के रिजल्ट आने में अभी 2-3 साल का वक्त लगता है। तकनीकी भाषा में इसे ‘एनिमल मॉडल’ कहा जाता है।
तीन साल में विकसित कर ली कृत्रिम त्वचा
केमिकल इंजिनियरिंग के प्रोफेसर श्री शिवकुमार और पीएचडी छात्र औहीन कुमार मपारु ने तीन साल की मेहनत के बाद कृत्रिम त्वचा विकसित कर ली। पेपर, पीडीएमएस नैनो पार्टिकल्स और नैनो फाइबर की मदद से त्वचा का बाहरी हिस्सा (एपिडर्मल लेयर) तैयार की गई। यह लेयर ही तेल, क्रीम और अन्य चीजों को स्वीकार या अस्वीकार करने में प्रमुख भूमिका निभाती है। यह इसमें फंगल संक्रमण, चोट लगने और प्राकृतिक तरीके से ठीक होने की विधि भी शामिल है। दूसरे शब्दों में पेपर से बनी यह कृत्रिम त्वचा एनिमल मॉडल का स्थान ले लेगी।
वैज्ञानिकों के अनुसार, बंदर और खरगोश की त्वचा मानवीय त्वचा के करीब होती है। इन बेजुबानों की त्वचा पर तेल या क्रीम लगाने पर कुछ गीलापन आता है तो ठंडी हवा देने पर त्वचा सूख जाती है। नैनो तकनीक की मदद से यह कृत्रिम त्वचा काफी हद तक वन्यजीवों की त्वचा के माइक्रो-एनवायरमेंट जैसी है। अब तक प्रयोगशाला में बनाई गईं कृत्रिम त्वचा के मॉडल यहां तक पहुंचने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन IIT कानपुर ने हूबहू स्किन तैयार कर टेस्ट करने की आजादी दे दी है। पेपर से बनी त्वचा का पेटेंट दो दिन पहले ही फाइल किया जा चुका है। कोई भी कंपनी यह तकनीक ले सकती है।