Edited By Ramkesh,Updated: 13 Jan, 2025 01:58 PM
पौष पूर्णिमा स्नान के साथ महाकुम्भ मेला सोमवार से प्रारंभ हो गया। मेला अधिकारी के मुताबिक, सुबह साढ़े नौ बजे तक 60 लाख से अधिक लोगों ने संगम और गंगा में आस्था की डुबकी लगाई। देश विदेश से आए श्रद्धालुओं ने झाड़ वाले नागा बाबा से आशीर्वाद भी ले रहे...
महाकुंभ नगर ( सैय्यद आकिब रज़ा): पौष पूर्णिमा स्नान के साथ महाकुम्भ मेला सोमवार से प्रारंभ हो गया। मेला अधिकारी के मुताबिक, सुबह साढ़े नौ बजे तक 60 लाख से अधिक लोगों ने संगम और गंगा में आस्था की डुबकी लगाई। देश- विदेश से आए श्रद्धालुओं ने झाड़ वाले नागा बाबा से आशीर्वाद भी ले रहे हैं। संगम स्नान के बाद भारी संख्या में श्रद्धालु झाड़ू वाले नागा बाबा के पास पहुंचे, सिर पर झाड़ू फेर कर नागा बाबा ने आशीर्वाद भी दिया। भक्तों का मानना है कि बाद के आशीर्वाद से सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाएंगी।
सुबह साढ़े नौ बजे तक 60 लाख से अधिक लोग ने संगम में लगाई डुबकी
सोमवार को सुबह साढ़े नौ बजे तक 60 लाख से अधिक लोग गंगा और संगम में डुबकी लगा चुके हैं। पौष पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान के महत्व पर प्रकाश डालते हुए तीर्थ पुरोहित राजेंद्र मिश्र ने बताया कि पौष माह के शुक्ल पक्ष के 15वें दिन पौष पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान से सभी तरह के पाप कट जाते हैं। उन्होंने कहा कि पौष पूर्णिमा के साथ एक महीने तक चलने वाला कल्पवास भी आज से प्रारंभ हो गया। इस दौरान लोग एक माह तक तीनों समय गंगा स्नान कर एक प्रकार का तप वाला जीवन व्यतीत करते हैं और भगवान की भक्ति में लीन रहते हैं। इससे पूर्व शनिवार और रविवार को मिलाकर 85 लाख से अधिक लोगों ने गंगा स्नान किया।
कम से कम संसाधनों की मदद लेकर कल्पवास करते हैं श्रद्धालु
पालीवाल ने कहा कि पुराणों और धर्मशास्त्रों में कल्पवास को आत्मा शुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति के लिए जरूरी बताया गया है। यह मनुष्य के लिए आध्यात्म की राह का एक पड़ाव है, जिसके जरिए स्वनियंत्रण एवं आत्मशुद्धि का प्रयास किया जाता है। हर वर्ष श्रद्धालु एक महीने तक संगम के विस्तीर्ण रेती पर तंबुओं की आध्यात्मिक नगरी में रहकर अल्पाहार, तीन समय गंगा स्नान, ध्यान एवं दान करके कल्पवास करना चाहिए तथा अपने को लोकाचार से दूर रखना चाहिए। तीर्थ पुरोहित ने बताया कि आदिकाल से चली आ रही इस परंपरा के महत्व की चर्चा वेदों से लेकर महाभारत और रामचरितमानस में अलग-अलग नामों से मिलती है। बदलते समय के अनुरूप कल्पवास करने वालों के तौरतरीक में कुछ बदलाव जरूर आए हैं लेकिन कल्पवास करने वालों की संख्या में वृद्धि हुई है। आज भी श्रद्धालु भयंकर सर्दी में कम से कम संसाधनों की मदद लेकर कल्पवास करते हैं।
हाकुंभ मेला भारतीय संस्कृति का द्योतक है
पालीवाल ने बताया कि भारत की आध्यात्मिक सांस्कृतिक, सामाजिक एवं वैचारिक विविधताओं को एकता के सूत्र में पिरोने वाला महाकुंभ मेला भारतीय संस्कृति का द्योतक है। इस मेले में सनातन संस्कृति की झलक देखने को मिलती है।बताया कि पौष कल्पवास के लिए वैसे तो उम्र की कोई बाध्यता नहीं है, लेकिन माना जाता है कि संसारी मोहमाया से मुक्त और जिम्मेदारियों को पूरा कर चुके व्यक्ति को ही कल्पवास करना चाहिए क्योंकि जिम्मेदारियों से बंधे व्यक्ति के लिए आत्मनियंत्रण कठिन माना जाता है। माघ मेला, कुंभ, और महाकुंभ दुनिया का सबसे बड़ा आध्यात्मिक और सांस्कृतिक समागम है जिसकी दुनिया में कोई मिसाल नहीं मिलती। इसके लिए किसी प्रकार का न/न तो प्रचार किया जाता है और न ही इसमें आने के लिए लोगों से मिन्नतें की जाती हैं। तिथियों के पंचांग की एक तारीख पर करोड़ों लोगों पुण्य के पवित्र अवसर पर दूर दराज से पहुंचकर तीर्थराज प्रयाग में पतित पावनी गंगा, श्यामल यमुना और अन्त: सलिला स्वरूप में प्रवाहित सरस्वती में आस्था की डुबकी लगाते हैं।