बांसगांव लोकसभा सीट पर त्रिकोणीय मुकाबले के आसारः पार्टी कोई भी जीते, बनेगा नया रिकार्ड

Edited By Ajay kumar,Updated: 26 May, 2024 11:51 AM

bansgaon lok sabha no matter which party wins a new record will be created

मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ का गढ़ कहे जाने वाले गोरखपुर जिले में दो लोकसभा सीटें गोरखपुर और बांसगांव आती हैं। बांसगांव सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। बांसगांव में बसपा को छोड़कर भाजपा, कांग्रेस व सपा तीनों प्रमुख दल जीत हासिल कर चुके हैं।

यूपी डेस्कः मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ का गढ़ कहे जाने वाले गोरखपुर जिले में दो लोकसभा सीटें गोरखपुर और बांसगांव आती हैं। बांसगांव सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। बांसगांव में बसपा को छोड़कर भाजपा, कांग्रेस व सपा तीनों प्रमुख दल जीत हासिल कर चुके हैं। यह सीट ओम प्रकाश पासवान के लिए जानी जाती है, जिनकी हत्या के बाद उनकी पत्नी सुभावती पासवान साल 1996 में यहां से सांसद चुनी गई थीं। उनके ही पुत्र कमलेश पासवान यहां पिछली बार जीत की हैट्रिक लगा चुके हैं और इस बार चौथी जीत दर्ज करने के लिए तत्पर नजर आ रहे हैं। कमलेश 2009, 2014 व 2019 के तीन चुनाव लगातार जीत चुके हैं। इस बार उन्हें जीत मिली तो कांग्रेस नेता महावीर प्रसाद के रिकार्ड की बराबरी करने के साथ ही लगातार चार जीत दर्ज करने का नया रिकार्ड भी बना देंगे। उनसे पहले इस सीट पर कांग्रेस नेता महावीर प्रसाद ने भी चार बार जीत हासिल की थी, जिसमें तीन लगातार जीत दर्ज करके हैट्रिक लगाई थी। महावीर प्रसाद 1980, 1984 व 1989 के लोकसभा चुनाव में लगातार जीते थे। साल 2004 में वह चौथी बार जीते थे। इस तरह वह लगातार चार जीत नहीं दर्ज कर पाए थे।

सदल प्रसाद के बिना अधूरी है बांसगांव लोकसभा सीट की कहानी 
बांसगांव लोकसभा सीट की कहानी सदल प्रसाद के बिना अधूरी है। वह यहां से तीन बार 2004, 2014 और 2019 में लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं। तीनों बार बसपा से किस्मत आजमाई लेकिन हर बार उपविजेता ही रहे। यह पहला मौका है, जब वह सपा-कांग्रेस गठबंधन के तहत कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में हैं। सदल प्रसाद बांसगांव सुरक्षित विधानसभा सीट पर साल 2002 से 2012 के बीच दो बार विधायक रहे हैं। इस बार उनके सामने अपने परंपरागत दलित मतदाताओं के साथ सपा के यादव और मुसलमान वोट बैंक को जोड़ना बड़ी चुनौती है। चुनाव प्रचार के दौरान वह इसी मिशन में जुटे दिखाई देते है, ताकि तीन बार रनर रहने के बाद इस बार पहली बार जीत दर्ज कर सकें। लेकिन उनकी इस राह में रोड़ा बसपा प्रत्याशी डा. रामसमुझ नजर आ रहे हैं, जो गोरखपुर व बस्ती मंडल की एकमात्र सुरक्षित सीट पर बसपा का खाता खोलने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं। 

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सांसद के प्रति नाराजगी को मुद्दा बनाने का प्रयास
बांसगाव में बसपा पिछले चार चुनावों में दूसरे स्थान पर आ रही है। ऐसे में बसपा को त्रिकोणात्मक संघर्ष में आने से रोक कर कांग्रेस व सपा ने सदल प्रसाद को जिताने के लिए बांसगांव में सवर्ण मतदाताओं की भाजपा सांसद से नाराजगी को मुद्दा बनाकर भुनाने की रणनीति बनाई है। हालांकि बांसगांव लोकसभा क्षेत्र में कई स्थानों पर भाजपा प्रत्याशी कमलेश के प्रति लोगों की नाराजगी दिखाई तो देती हैं, लेकिन इनमें से अधिकतर लोग मोदी और योगी के नाम पर ईवीएम में बटन कमल निशान का ही दबाने की बात भी करते नजर आते हैं।

पिछले दो चुनावों का परिणाम
साल 2019 के चुनाव में भाजपा के कमलेश पासवान एक लाख से अधिक मतों से जीते थे। उन्हें 5,46,673 वोट मिले थे। बसपा के सदल प्रसाद ने 3,93, 205 वोट पाए थे। 2014 के चुनाव में भी भाजपा के कमलेश पासवान ने बसपा प्रत्याशी सदल प्रसाद को हराया था। कमलेश 4,17.959 वोट मिले थे, जबकि सदल प्रसाद ने 2, 28, 443 वोट पाए थे।

सभी पांचों सीटों पर भाजपा का कब्जा
बांसगांव लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत पांच विधानसभा सीटें आती हैं। इनमें दो सीटें देवरिया जिले की रूद्रपुर और बरहज है. जबकि तीन सीटें चौरी-चौरा, बांसगांव और चिल्लूपार गोरखपुर जिले की है। 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने सभी पांचों सीटों पर कब्जा जमाया था।

जातीय समीकरण का लेखा-जोखा
बांसगाव में पासी समुदाय सहित अन्य दलितों की संख्या चार लाख से ज्यादा है। ब्राहमण और राजपूत मिलकर करीब तीन लाख तो यादव मतदाताओं की संख्या ढाई लाख तक बताई जाती है। मुस्लिम वोटर डेढ़ लाख गिनाए जाते हैं।

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