नेताजी की गैरमौजूदगी में अखिलेश की पहली अग्निपरीक्षा, पिता की राजनीतिक विरासत बचाना बड़ी चुनौती

Edited By Ajay kumar,Updated: 16 Nov, 2022 06:06 PM

akhilesh s first fire test in netaji s absence

समाजवादी पार्टी संस्थापक मुलायम सिंह यादव की मृत्यु के मात्र 55 दिन बाद ही बेटे अखिलेश यादव को 'अग्निपरीक्षा' देनी होगी। मैनपुरी लोकसभा और रामपुर व खतौली विधानसभा सीटों के लिए 5 दिसंबर को होने वाले उपचुनाव सपा प्रमुख अखिलेश के लिए अग्निपरीक्षा से कम...

लखनऊः समाजवादी पार्टी संस्थापक मुलायम सिंह यादव की मृत्यु के मात्र 55 दिन बाद ही बेटे अखिलेश यादव को 'अग्निपरीक्षा' देनी होगी। मैनपुरी लोकसभा और रामपुर व खतौली विधानसभा सीटों के लिए 5 दिसंबर को होने वाले उपचुनाव सपा प्रमुख अखिलेश के लिए अग्निपरीक्षा से कम नहीं। इस दौरान उन्हें दो चुनौतियों से पार पाना है। एक तो चुनाव में यादव कुनबा एकजुट रहे और दूसरा 'नेताजी' (मुलायम) की राजनीतिक विरासत को आंच न आने पाए। मैनपुरी की लोकसभा सीट मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद खाली हुई है। वहीं दूसरी तरफ रामपुर की विधानसभा सीट पर आजम खान की सदस्यता जाने के बाद उपचुनाव होना हैं। पहली बार अखिलेश किसी चुनावी मोर्चे पर पिता के निधन के बाद उतरेंगे। ऐसे में उनके सामने कई अहम चुनौतियां होंगी। सवाल बड़ा यह है कि क्या आजमगढ़ की लोकसभा सीट के रूप में सपा का एक गढ़ गंवाने के बाद अखिलेश, मैनपुरी और रामपुर के किले की हिफाजत कर पाएंगे? मैनपुरी और रामपुर की सीटें सपा लिए बहुत ही ज्यादा मायने रखती हैं। पिता के निधन के बाद खाली हुई मैनपुरी सीट पर तो अखिलेश की अपनी भी प्रतिष्ठा दांव पर है। मैनपुरी में लोकसभा का उपचुनाव जीतकर वह 'नेताजी' को एक सच्ची श्रद्धांजलि देना चाहेंगे।

चुनाव के दौरान सुरक्षित कदम बढ़ाते हुए अखिलेश ने चाचा शिवपाल की भी नाराजगी लेने का रिस्क नहीं लिया। उन्होंने सार्वजनिक तौर पर कहा कि डिंपल को उम्मीदवार बनाने का फैसला चाचा से पूछ कर लिया गया है। यहां तक कि शिवपाल को उन्होंने यहां अपना स्टार प्रचारक भी बनाया है। रोचक तथ्य तो यह है कि बीते विधानसभा चुनाव के बाद आजमगढ़ की सीट अखिलेश यादव के ही इस्तीफा देने के बाद खाली हुई थी। रही बात रामपुर की तो यहां की विधानसभा सीट से सपा नेता आजम खान 10 बार विधायक चुने गए। 1996 के बाद समाजवादी कभी भी इस सीट पर नहीं हारी है। यहां तक कि साल 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लहर में भी रामपुर से आजम खान जीत हासिल करने में भाजपा कामयाब न रही। साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में आजम खान ने सांसद बनने के बाद विधायक पद से इस्तीफा दिया और पत्नी डॉ. तजीन फात्मा को चुनाव लड़वाकर यह सीट जाने नहीं दी।

हालांकि बीते विधानसभा चुनाव में विधायक बनने बाद जब आजम ने सांसद पद छोड़ा तो रामपुर लोकसभा उपचुनाव में भाजपा सेंधमारी करने में सफल रही। रामपुर में सपा को भाजपा के हाथों शिकस्त मिली थी। तब सपा ने यहां पर आजम की पसंद आसिम रजा को टिकट दिया था और भाजपा उम्मीदवार घनश्याम लोधी ने उन्हें 42 हजार से अधिक वोटों से मात दी थी।

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