यूपी में बदल रहा मुस्लिमों का मन, BJP को लेकर घट रही दूरी... निकाय चुनाव में टिकट के लिए दावेदारी

Edited By Imran,Updated: 26 Oct, 2022 03:38 PM

the mind of muslims is changing in up

लखनऊ: 25 मई 2019 याद तो होगा ही ये वो ही दिन था। जब भारतीय राजनीति में एक चमत्कार हुआ। पहली बार देश में कोई गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री पहली बार अपने 5 साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद देश की सत्ता में दोबारा पूर्ण बहुमत के साथ आया था।

लखनऊ: 25 मई 2019 याद तो होगा ही ये वो ही दिन था। जब भारतीय राजनीति में एक चमत्कार हुआ। पहली बार देश में कोई गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री पहली बार अपने 5 साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद देश की सत्ता में दोबारा पूर्ण बहुमत के साथ आया था। इस जीत के बाद प्रधानमंत्री ने एक नया नारा दिया था। 'सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास' इस नारे का मतलब साफ था कि BJP अब अपने पुराने स्वरूप से बाहर निकल कर एक नए अंदाज में राजनीति करने जा रही है। मुस्लिमों के मन में से खुद के लिए जगह बनाने के लिए पूरा प्रयास करेगी। इसके बावजूद UP 2022 के विधानसभा में एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया। अलबत्ता दानिश आजाद अंसारी को योगी सरकार में मंत्री जरूर बनाया। ये सभी एक नियोजित तरीके से मुस्लिमों के बीच अपनी पैठ बनाने की भाजपा की रणनीति है। अब ऐसा लगता है कि भाजपा की ये रणनीती सच में काम कर गई है। इसके पीछे कारण ये है कि यूपी में होने वाले निकाय चुनाव में मुस्लिम उम्मीदवारों के बीच भाजपा से चुनाव में टिकट की मांग। आइए देखते है इसके पीछे  की रणनिती...
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प्रदेश अध्यक्ष का दावा

प्रदेश में BJP को लेकर मुस्लिमों का रुख बदल रहा है। अब वो सपा- बसपा से दूर हो रहे है और BJP में अपना भविष्य ढूढ़ रहे है। उनको भी पता है कि देश- प्रदेश में अगर कोई उनका विकास कर सकता है तो वो सिर्फ BJP है। जी हां ये दावा कोई और नहीं बल्कि प्रदेश की सत्ता में काबिज BJP के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने  मंगलवार को बिजनौर के स्योहारा में किया है। भूपेंद्र चौधरी ने कहा कि अगर आवेदक दमदार हुआ तो भाजपा मुस्लिमों पर भी चुनावी दांव लगाएगी। BJP "हम कमल खिलाने निकले हैं" की अपनी टैग लाइन को लेकर क्षेत्रों में निकल रही है। कार्यकर्ताओं को निकाय चुनाव में प्रदेश के सभी निकाय क्षेत्रों की हर गली, हर नुक्कड़ तक कमल खिलाने का संकल्प दिलाया जा रहा है। बूथ प्रबंधन पर जोर है। नगर निकाय चुनाव में पार्टी इतनी बड़ी संख्या में मुस्लिम प्रत्याशियों को मैदान में उतारेगी। दावा किया जा रहा है कि योगी-मोदी की जोड़ी ने प्रदेश का राजनीतिक भूगोल बदल दिया है। भाजपा को अछूत मानने वाला यह अल्पसंख्यक समाज अब भाजपा के टिकट की मांग कर रहा है। पार्टी सूत्रों का दावा कि जिन सीटों पर मुस्लिम समाज का प्रभाव ज्यादा है, वहां उसी समाज का प्रत्याशी उतारा जाएगा।

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मजबूत उम्मीदवार को टिकट देगी पार्टी

BJP के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने कहा कि यूपी में भाजपा सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास की तर्ज पर पार्टी का जनाधार बढ़ाने की कवायद में जुटी हुई है। भाजपा इस बार निकाय चुनावों में मुस्लिम उम्मीदवारों पर भी दांव लगाने की तैयारी में है। पार्टी खासतौर पर मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में मुस्लिम उम्मीदवार उतारेगी। सूत्रों की मानें तो पार्टी के अल्पसंख्यक मोर्चे ने 'जिताऊ' उम्मीदवारों की सूची तैयार करनी शुरू कर दी है। मुस्लिमों की दावेदारी और निकाय चुनाव की तैयारी को लेकर अगले सप्ताह भाजपा प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी अल्पसंख्यक मोर्चे की टीम के साथ मंथन भी करेंगे।
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एक नजर भाजपा के मुस्लिम प्रेम पर

1. तीन तलाक जैसे मुद्दे पर मुस्लिम महिलाओं के साथ खड़ी रही।
2. 2017 और 2022 के विधानसभा चुनावों में एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को ना उतारने के बावजूद लगातार दो बार सत्ता मिली। इन दोनों ही योगी सरकार में पहले 2017 में मोहसिन रजा फिर 2022 में दानिश आजाद को राज्यमंत्री  बनाकर भाजपा ने मुस्लिमों के बीच उनकी सरकार होने के संकेत दिए।
3. इसके बाद हैदराबाद में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में PM मोदी ने पसमांदा समाज को मुख्यधारा में जोड़ने की बात कही थी। सरकार के सभी  योजनाओं में मुस्लिमों का ख्याल रखना।
4. लखनऊ में हुए पसमंदा समाज के सम्मेलन में पहुंचे डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक ने कहा था कि " कांग्रेस, सपा और अन्य विपक्षी दलों ने मुसलमानों को सिर्फ वोट बैंक समझा।

300 वार्डों पर मुस्लिम समाज का बड़ा इम्पैक्ट
UP में करीब 300 ऐसे वार्ड हैं, जिसमें मुस्लिम समाज का दबदबा है। इनमें से तमाम सीटों पर भाजपा उम्मीदवार तक नहीं उतारती थी। इसकी दो वजह थी। पहला- मुस्लिम कैंडिडेट भाजपा के टिकट पर लड़ना नहीं चाहते थे। दूसरा- भाजपा हार के डर से अपना उम्मीदवार तक उतारने में बचती रहती थी। इस बार यूपी में होने वाले नगर निकाय चुनाव के लिए भाजपा कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती है। इसलिए यूपी के मुस्लिम बाहुल्य 300 वार्डों में जीत के लिए पसमांदा समाज के इस सम्मेलन को किया जा रहा है और तैयारी इन सभी सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारने की है। वहीं, नगर निगमों में 980 पार्षद पदों की तुलना में 844 पर ही बीजेपी ने चुनाव लड़ा था। वाराणसी नगर निगम की 90 में 78 सीटों पर ही प्रत्याशी उतारे गए थे, क्योंकि मुस्लिम बहुल वार्डों के लिए पार्टी के पास उम्मीदवार ही नहीं थे। लेकिन अब हालात बदल गए है। अब बड़ी संख्या में मुस्लिम नगर निकाय चुनाव में भाजपा की टिकट की मांग कर रहें है।

मुस्लिमों को टिकट देने के पीछे भाजपा की सियासत
नए वोटरों को साथ लाने की कवायद में जुटी बीजेपी मुस्लिमों को 'अपना' बनाने पर काम कर रही है। इसी वजह से निकाय चुनाव में मुस्लिमों पर दांव लगाया जाएगा। भाजपा के एक नेता कहते हैं कि मुस्लिमों को टिकट देना बीजेपी की सियासत का भी हिस्सा है और जरूरत भी। 2012 में हुए नगरीय निकाय चुनाव में 30% से अधिक नगर पालिका और नगर पंचायत अध्यक्ष मुस्लिम बने थे।

यूपी में 24 जिले ऐसे हैं, जहां मुस्लिमों की संख्या 20% से ज्यादा है।
12 जिलों में मुस्लिम आबादी 35% से 52% तक है।
संभल, सहारनपुर, बिजनौर, मुरादाबाद, बहराइच, मुजफ्फरनगर, बलरामपुर, मेरठ, अमरोहा, रामपुर, बरेली, श्रावस्ती में मुस्लिम आबादी सबसे ज्यादा।
अलीगढ़, मुरादाबाद, फिरोजाबाद, संभल, शामली सहित कई जिलों में नगर पंचायतों में भी मुस्लिम वोटर बहुतायत में हैं।

2024 से पहले वोट प्रतिशत 60% तक लाने की कोशिश
भाजपा ने मुस्लिम वोट बैंक को अपने पाले में लाने के लिए पसमांदा बुद्धिजीवी सम्मेलन कर रही है। करीब 6 दिन पहले लखनऊ में हुए इस सम्मेलन में सरकार के अंसारी समाज के मंत्री दानिश अंसारी के साथ ही दोनों डिप्टी सीएम भी शामिल हुए। भाजपा मिशन 2024 के पहले अपने वोट प्रतिशत को यूपी में 60% के आसपास लाना चाहती है, ऐसे में अल्पसंख्यकों पर भी पार्टी का फोकस है। पीएम के आग्रह के बाद पसमांदा मुसलमानों की महत्वपूर्ण आबादी वाले 44,000 से अधिक मतदान केंद्रों की पहचान की है, जहां ध्यान केंद्रित किया जाएगा। ऐसे हर बूथ में पसमांदा मुस्लिम समुदाय के कम से कम 100 लाभार्थियों से बात करने का लक्ष्य है। मोर्चे के प्रदेश अध्यक्ष कुंवर बासित अली कहते हैं कि केंद्र और प्रदेश सरकार की योजनाओं का फायदा पाने वाले ज्यादातर लोग अल्पसंख्यक समुदाय से हैं। विधानसभा क्षेत्रवार देखें तो हर बूथ पर करीब 100 लाभार्थी अल्पसंख्यक समुदाय के हैं। अल्पसंख्यक मोर्चे को इन्हें 'अपना' बनाने की जिम्मेदारी दी गई है।

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