सुल्तानपुर लोकसभा सीटः भाजपा प्रत्याशी मेनका गांधी के लिए इस बार भी आसान नहीं है जीत, जातीय समीकरण के बीच  दिख रहा त्रिकोणीय मुकाबला

Edited By Ajay kumar,Updated: 22 May, 2024 10:44 AM

sultanpur victory is not easy for bjp candidate maneka gandhi this time too

सुल्तानपुर लोकसभा सीट से बीजेपी सांसद व उम्मीदवार मेनका गांधी सुल्तानपुर से लगातार दूसरी बार मैदान में हैं। आठ बार सांसद रह चुकीं मेनका गांधी चुनाव जीतने के साथ ही डीबी राय के रिकार्ड की बराबरी कर लेंगी।

लखनऊः सुल्तानपुर लोकसभा सीट से बीजेपी सांसद व उम्मीदवार मेनका गांधी इस सीट से लगातार दूसरी बार मैदान में हैं। आठ बार सांसद रह चुकीं मेनका गांधी चुनाव जीतने के साथ ही डीबी राय के रिकार्ड की बराबरी कर लेंगी। राय भी नौ बार सांसद बने थे। वैसे सबसे ज्यादा बार लोकसभा में पहुंचने का रिकार्ड इंद्रजीत गुप्ता के नाम है, जो 11 बार चुनाव जीते थे। 10 बार सांसद बनने वालों में अटल बिहारी वाजपेई, सोमनाथ चटर्जी और पीएम सईद का नाम है। 2019 का लोकसभा चुनाव जीतने के लिए सुल्तानपुर में भाजपा की प्रत्याशी मेनका गांधी को खासा संघर्ष करना करना पड़ा था। कांटे के मुकाबले में उन्होंने बसपा उम्मीदवार चंद्रभद्र सिंह को 14 हजार वोटों से हराया था। इस जीत के साथ ही मेनका गांधी सुल्तानपुर की पहली महिला सांसद भी बन गई थीं। उनसे पहले यहां से कोई महिला उम्मीदवार जीत नहीं हासिल कर पायी थी।

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सपा-बसपा ने जातीय समीकरण से सीट को बनाया त्रिकोणीय 
भाजपा प्रत्याशी मेनका गांधी के लिए सुल्तानपुर में इस बार का चुनाव भी आसान नहीं नजर आ रहा है। इस लोकसभा क्षेत्र में निषाद मतदाता बड़ी संख्या में हैं। सपा ने इसी जातीय समीकरण को साधने के लिए तमाम आंतरिक कलह के बाद राम भुआल निषाद को मैदान में उतारा है। वह पहले बसपा फिर भाजपा में रह चुके हैं। 2007 में बनी बसपा सरकार में मत्स्य राज्य मंत्री थे। 2014 के लोकसभा चुनाव में गोरखपुर में योगी आदित्यनाथ के खिलाफ चुनाव लगे थे। बसपा से इस बार नए और युवा चेहरे के रूप में उदराज वर्मा क्षेत्र में मेहनत करते नजर आ रहे हैं। पिछले तीन चुनावों में यहां बसपा दूसरे नंबर पर रही है, ऐसे में बसपा की चुनौती को कमजोर करके नहीं आंका जा सकता है। जानकार इस बार त्रिकोणीय संघर्ष होना मान रहे हैं। दरअसल, बसपा ने यहां कुर्मी समाज पर दांव खेला है, जिनकी मतदाता संख्या एक लाख से ज्यादा है। बसपा की रणनीति कुर्मी और करीब साढ़े तीन लाख दलित मतों के सहारे मुकाबले में आकर मुस्लिम मतों को भी अपनी झोली में डालना है। उधर, सपा ने भी लोकसभा क्षेत्र में दो लाख से अधिक गिने जाने वाले निषाद मतदताताओं के साथ अन्य पिछड़ा वर्ग और एम वाई समीकरण के तहत यादव और मुस्लिम मतों के सहारे जीत की उम्मीद लगा रखी है।

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मेनका गांधी को कांटे के मुकाबले में 14,526 मतों से मिली थी जीत
2019 के चुनाव में मेनका गांधी को 4,59,196 वोट मिले थे। बसपा के चंद्र भद्र सिंह ने 4,44,670 मत पाए थे। मेनका गांधी चुनाव 14,526 वोटों के अंतर से जीतने में सफल रही थीं। इससे पहले 2014 में मेनका गांधी के पुत्र वरुण गांधी यहां से भाजपा के सांसद चुने गए थे। वरुण ने बसपा के पवन पांडेय को 1,78,902 वोटों से हराया था। सपा के शकील अहमद तीसरे और 41 हजार वोट पाकर कांग्रेस की अमिता सिंह चौथे स्थान पर पिछड़ गई थीं। 2009 का चुनाव कांग्रेस के डॉ. संजय सिंह ने जीता था, तब बसपा के मोहम्मद ताहिर दूसरे स्थान पर थे। भाजपा से उतरे सूर्यभान सिंह 44 हजार वोटों के साथ चौथे स्थान पर खिसक गए थे।

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अकेले ही संभाल रखी है प्रचार की कमान
मेनका गांधी सुल्तानपुर के गांवों में लगातार प्रचार में जुटी हैं। यहां प्रतिदिन सैकड़ों लोगों से संपर्क कर रही हैं। अभी भाजपा के किसी बड़े नेता की सभा उनके समर्थन में नहीं हुई है। सुल्तानपुर लोकसभा में सुल्तानपुर, जयसिंहपुर सदर, लम्भुआ, कादीपुर और इसौली विधानसभा सीटें आती है। इसौली से सपा के मो. ताहिर खान विधायक हैं। बाकी चार विधानसभाओं में भाजपा का कब्जा है। जिला पंचायत अध्यक्ष और नगर पालिका परिषद सुल्तानपुर के चेयरमैन पद पर भी भाजपा काबिज है। मेनका गांधी के साथ सीधे तौर पर कोई जातीय समीकरण नहीं है, लेकिन विधायकों और संगठन के माध्यम से भाजपा सभी वर्ग के मतदाताओं तक मोदी की गारंटी, विकास कार्यों और कल्याणकारी योजनाओं के साथ राष्ट्रवाद का संदेश पहुंचा रही है।

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