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‘दो हिन्दुओं के बीच विवाह एक पवित्र बंधन, सालभर में नहीं तोड़ा जा सकता’, जानिए कोर्ट ने क्यों दिया ये दिल छू लेने वाला फैसला

Edited By Purnima Singh,Updated: 29 Jan, 2025 06:13 PM

marriage between two hindus is a sacred bond cannot be broken within a year

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक फैसले में कहा कि दो हिंदुओं के बीच विवाह एक पवित्र बंधन है, जिसे विवाह के साल भर के भीतर नहीं तोड़ा जा सकता। फिर चाहे इसके लिए दोनों पक्ष पारस्परिक रूप से सहमत ही क्यों न हों। अदालत ने कहा कि जब तक असाधारण मुश्किल या...

प्रयागराज : इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक फैसले में कहा कि दो हिंदुओं के बीच विवाह एक पवित्र बंधन है, जिसे विवाह के साल भर के भीतर नहीं तोड़ा जा सकता। फिर चाहे इसके लिए दोनों पक्ष पारस्परिक रूप से सहमत ही क्यों न हों। अदालत ने कहा कि जब तक असाधारण मुश्किल या असाधारण अनैतिकता ना हो जैसा कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 14 में वर्णित है, विवाह को भंग नहीं किया जा सकता है। 

न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति डी. रमेश की पीठ ने यह निर्णय देते हुए कहा कि तलाक के लिए अर्जी दाखिल करने के संबंध में धारा 14 में विवाह की तिथि से एक साल की समय सीमा की व्यवस्था है। हालांकि असाधारण मुश्किल या अनैतिकता के मामले में इस तरह की याचिका पर विचार किया जा सकता है। इस मामले में दोनों पक्षों ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13-बी के तहत पारस्परिक सहमति से विवाह भंग करने की अर्जी दाखिल की थी, जिसे सहारनपुर की कुटुम्ब अदालत ने इस आधार पर खारिज कर दिया था कि अर्जी दाखिल करने की न्यूनतम अवधि पूरी नहीं हुई है। 

याचिकाकर्ताओं ने इस निर्णय के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील की थी। इलाहाबाद उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने 15 जनवरी को निशांत भारद्वाज द्वारा दाखिल प्रथम अपील खारिज करते हुए एक वर्ष की अवधि पूरी होने के बाद याचिकाकर्ता को नए सिरे से अर्जी दाखिल करने का विकल्प दिया था। अदालत ने कहा कि मौजूदा मामले में आपसी असंगति के लिए नियमित आधार के अलावा, कोई असाधारण परिस्थिति पेश नहीं की गई, जिससे इन पक्षों को विवाह के एक वर्ष के भीतर तलाक के लिए अर्जी दाखिल करने की अनुमति दी जा सके। 

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