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महंत सत्येंद्र दास को संत तुलसीदास घाट पर दी गई जल समाधि, अंतिम यात्रा में श्रद्धांजलि देने उमड़े लोग

Edited By Purnima Singh,Updated: 13 Feb, 2025 03:53 PM

last journey of mahant satyendra das chief priest of ram temple

अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर के दिवंगत मुख्य पुजारी महंत सत्येंद्र दास के अंतिम संस्कार से पहले बृहस्पतिवार को लोगों के अंतिम दर्शन के लिए पूरे अयोध्या में उनकी अंतिम यात्रा निकाली जाएगी। अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर के दिवंगत मुख्य पुजारी महंत...

Ayodhya News : अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर के दिवंगत मुख्य पुजारी महंत सत्येंद्र दास के अंतिम संस्कार से पहले बृहस्पतिवार को लोगों के अंतिम दर्शन के लिए पूरे अयोध्या में उनकी अंतिम यात्रा निकाली गई। अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर के दिवंगत मुख्य पुजारी महंत सत्येंद्र दास के अंतिम संस्कार से पहले पार्थिव शरीर को बृहस्पतिवार को लोगों के अंतिम दर्शन के लिए पूरे अयोध्या में भ्रमण कराया गया। उनके उत्तराधिकारी प्रदीप दास ने मीडिया को बताया कि रामानंदी संप्रदाय की परंपराओं के अनुसार दास को जल समाधि दी गई है। उससे पहले उनके पार्थिव शरीर को हनुमानगढ़ी और राम जन्मभूमि ले जाया गया। 

ब्रेन स्ट्रोक से ग्रसित थे सत्येंद्र दास 
प्रदीप दास ने बताया कि जल समाधि के तहत शव को नदी के बीच में प्रवाहित करने से पहले उसके साथ भारी पत्थर बांधे गए। सत्येंद्र दास (85) को इस महीने की शुरुआत में मस्तिष्काघात के बाद संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई) में भर्ती कराया गया था, जहां बुधवार को उनका निधन हो गया। अस्पताल के अनुसार, उन्हें तीन फरवरी को मस्तिष्काघात के बाद गंभीर हालत में न्यूरोलॉजी वार्ड के एचडीयू (हाई डिपेंडेंसी यूनिट) में भर्ती कराया गया था। 

बाबरी विध्वंस के गवाह थे सत्येंद्र दास 
महंत दास ने 20 वर्ष की आयु में ‘संन्यास' ले लिया था। उन्होंने छह दिसंबर, 1992 को बाबरी मस्जिद के विध्वंस के दौरान भी पुजारी के रूप में सेवा की थी। बाद में जब सरकार ने परिसर को अपने नियंत्रण में ले लिया, तो उन्हें अस्थायी मंदिर का मुख्य पुजारी बना दिया गया। दास ने 2022 में मीडिया से बातचीत में कहा था कि वह 1992 में अस्थायी रामलला मंदिर के पुजारी के रूप में शामिल हुए थे। उसी वर्ष बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया गया था। दास से जब पूछा गया कि क्या मस्जिद गिराए जाने के समय वह मौजूद थे, तो उन्होंने कहा था, ‘‘मैं वहां था। यह मेरे सामने हुआ। मैं इसका गवाह था। तीन गुंबदों में से उत्तरी और दक्षिणी गुंबदों को ‘कार सेवकों' ने ध्वस्त कर दिया था। मैंने रामलला को उनके सिंहासन के साथ अपने हाथ में ले लिया।'' 

'1992 में मैंने रामलला को तंबू में स्थापित किया था'
उन्होंने कहा, ‘‘बाद में ‘कार सेवकों' ने एक तंबू लगाया और उस स्थान को समतल कर दिया तथा शाम सात बजे तक मैंने रामलला को वहीं स्थापित कर दिया।'' निर्वाणी अखाड़े से आने वाले दास अयोध्या के सबसे सुलभ संतों में से एक थे और अयोध्या एवं राम मंदिर के घटनाक्रमों के बारे में जानकारी चाहने वाले देश भर के कई मीडियाकर्मियों के लिए संपर्क व्यक्ति थे। छह दिसंबर, 1992 को जब बाबरी मस्जिद को ध्वस्त किया गया था, तब उन्हें मुख्य पुजारी के रूप में सेवा करते हुए मुश्किल से नौ महीने हुए थे। 

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