हौसले को सलाम! कोरोना काल जैसे खराब दौर में गोमती' ने साबुन की झाग से धोए गरीबी के दाग

Edited By Tamanna Bhardwaj,Updated: 07 Jan, 2022 04:12 PM

gomti ran soap business during the corona period

कहते हैं कि इरादे मजबूत हों और नीयत साफ हो तो मंजिल अपने आप मिल ही जाती है। ऐसा ही मजबूत इरादा बांदा की रहने वाली गोमती में भी देखने को मिला है। जिसने आपदा में अवसर की उदाहरण को...

बांदा: कहते हैं कि इरादे मजबूत हों और नीयत साफ हो तो मंजिल अपने आप मिल ही जाती है। ऐसा ही मजबूत इरादा बांदा की रहने वाली गोमती में भी देखने को मिला है। जिसने आपदा में अवसर की उदाहरण को चरितार्थ कर दिखाया। गोमती ने कोरोना काल जैसे खराब दौर में स्वयं सहायता समूह बनाकर गांव में ही साबुन उत्पादन की शुरुआत कर रोजगार की राह बनाई। 15 हजार से हुई शुरुआत प्रतिवर्ष 15 लाख रुपए के टर्नओवर में पहुंच गई है। इतना ही नहीं गोमती ने खुद की गरीबी के धाग तो धोए ही बल्कि 25 अन्य महिलाओं को भी रोजगार देकर उन्हें भी आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाया।

गोमती ज्यादा शिक्षित नहीं हैं, लेकिन हुनरमंद 
किसी ने सच ही कहा है कि प्रतिभा शिक्षा की मोहताज नहीं होती है। बबेरू क्षेत्र के भभुुवा गांव निवासी गोमती ज्यादा शिक्षित नहीं हैं, लेकिन हुनरमंद हैं। गोमती के पति कमलेश मजदूरी कर परिवार का भरण-पोषण करते थे। पिछले वर्ष कोरोना काल में उन्हें मजदूरी भी नहीं मिली। गोमती की सफलता की कहानी तब शुरू होती है जब घर में तीन-तीन बच्चों व परिवार का चलाना मुश्किल हो गया।

साबुन की गुणवत्ता के कारण कुछ ही दिन में बाजार में बढ़ी बिक्री
बस फिर क्या था गोमती ने राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अफसरों से संपर्क कर गुलाब समूह गठित किया। 10 महिलाओं को जोड़कर 15 हजार रुपए का अनुदान लेकर नहाने व कपड़े धोने का साबुन बनाने लगीं। जिले के अन्य समूहों के माध्यम से साबुन की बिक्री शुरू की। ब्रांड के इस साबुन ने गुणवत्ता के कारण कुछ ही दिन में बाजार में पकड़ बना ली। इसके साथ ही सरस मेला, कृषि विश्वविद्यालय गोष्ठी और अन्य कई जगह स्टाल में उनके साबुन को सराहा गया।

कानपुर से साबुन बनाने की सामग्री लाती हैं गोमती
गोमती ने बताया कि वह खुद कानपुर से साबुन बनाने की सामग्री लाती हैं। वर्तमान में साबुन कारखाने में 25 महिलाएं जुड़ी हैं। उन्हें प्रतिमाह 15 से 20 हजार रुपये देती हैं। महिलाएं साबुन बनाने के बाद स्टालों में बिक्री करने में मदद करके पांच से छह हजार रुपये प्रतिमाह कमा लेती हैं। गोमती अपने जैसी गरीबी से घिरी महिलाओं को साबुन बनाने का मुफ्त प्रशिक्षण भी दे रही हैं। ताकि वह भी जीविका चला सकें। 

'गोमती का साबुन कारोबार बेहतर चल रहा है'
इस बारे में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के ब्लाक समन्वयक हिमांशु ने बताया कि गोमती का साबुन कारोबार बेहतर चल रहा है। अब उन्होंने एफपीओ (फार्मर प्रोड्यूसर आर्गनाइजेशन) का गठन किया है। जल्द ही इसके जरिए साबुन की बिक्री करेंगी और दूसरे जिलों में भी माल जाएगा। खेतीबाड़ी की ओर भी रुख करेंगी।


 

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