देवष्ठान एकादशी पर श्रद्धालु करते हैं 55 किमी लम्बी 3 वन की परिक्रमा, जानें क्या है मान्यता

Edited By Moulshree Tripathi,Updated: 24 Nov, 2020 04:20 PM

devasthans ekadashi circling 55 km long forest devotees

उत्तर प्रदेश के ब्रज मण्डल में प्रबोधिनी एकादशी या देवष्ठान एकादशी पर तीन वन की परिक्रमा करने से जाने अनजाने में की गई गल्तियों का असर समाप्त हो जाता

मथुरा:  उत्तर प्रदेश के ब्रज मण्डल में प्रबोधिनी एकादशी या देवष्ठान एकादशी पर तीन वन की परिक्रमा करने से जाने अनजाने में की गई गल्तियों का असर समाप्त हो जाता है, इसीलिए इस दिन 18 कोस का परिक्रमा मार्ग एक प्रकार से मेले का स्वरूप ले लेता है।       

ब्रज के महान संत बलराम बाबा ने देवष्ठान एकादशी के बारे में बताया कि लक्ष्मीजी ने एक बार भगवान विष्णु से कहा कि वे जब जागते हैं तो लम्बे समय तक जागते हैं और सोते हैं तो लम्बे समय तक और यहां तक कि करोड़ो वर्ष तक सोते हैं। उस समय सभी चर अचर का नाश भी कर डालते हैं तथा उन्हें भी हर समय व्यस्त रहना पड़ता है इसलिए वे अपने जागने और सोेने का नियम बनाएं तो किसी को परेशानी नही होगी।

भगवान विष्णु ने लक्ष्मी जी के सुझाव से सहमति व्यक्त करते हुए कहा कि वे अब चातुर्मास की अल्प निद्रा लेंगे जो देवशयनी एकादशी से शुरू होकर देवष्ठान एकादशी तक चलेगा। जो भक्त चातुर्मास में उनकी (भगवान विष्णु की) सेवा या पूजन अर्चन करेंगे उनके घर में वे (भगवान विष्णु) उनके (लक्ष्मी जी) के साथ निवास करेंगे। इसीलिए बड़े संत महन्त चातुर्मास का व्रत ब्रज में निवास कर करते हैं क्योंकि चातुर्मास में सभी देव ब्रज में आ जाते हैं। चातुर्मास व्रत का समापन भी वे तीन वन की परिक्रमा से करते हैं।

संत बलराम बाबा ने बताया कि इस दिन पवित्र भाव से व्रत रहना चाहिए और चावल का सेवन किसी कीमत पर नही करना चाहिए क्योंकि एकादशी पर खानेवाले चावल में राक्षसों का वास होता है जो मानव को कष्ट देते हैं। इस संबंध में एक पौराणिक कथा का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि एक बार ब्रम्हा जी के सिर से पसीने की कुछ बूंद टपक कर जमीन में गिरीं तो जमीन में गिरते ही वे राक्षस बन गईं। इसके बाद राक्षस ने ब्रम्हा जी से पूछा कि उन्होंने उसे बना तो दिया है अब वे उसे रहने का स्थान बताएं जहां पर वह रह सके। ब्रम्हा जी ने कहा कि तुम उस चावल में रहेा जो लोग एकादशी के दिन खाते है।जब तक पेट के बाहर रहोगे तब तक चावल ही उनका निवास बना रहेगा किंतु जब यह पेट में चला जाएगा तो कीड़ेां की शक्ल ले लेगा। 

देवष्ठान एकादशी के महत्व के बारे में कहा जाता है कि जो पुण्य पवित्र नदियों के स्नान से नही मिलता, जो पुण्य समुद्र में स्नान से नही मिलता, जो पुण्य तीर्थयात्रा से नही मिलता , जो पुण्य एक हजार अश्वमेघ यज्ञ या सौ राजसूय यज्ञ के करने से नही मिलता उससे अधिक पुण्य इस पर्व को भावपूर्ण तरीके से मनाने से होता है। इस दिन व्रत करने या ब्रज की परिक्रमा करने से पिछले किये गए पाप नष्ट हो जाते हैं। इसीलिए कंस बध के पाप से मुक्ति के लिए चतुर्वेद समाज के लोग विशेषतर इस दिन तीन वन यानी लगभग 55 किलोमीटर लम्बी परिक्रमा करते है। ब्रज में तीन वन की परिक्रमा में मथुरा, वृन्दावन और गरूड़ गोविन्द का क्षेत्र आता है चूंकि यह परिक्रमा बहुत लम्बी होती है इसलिए इसे पूरा करने में सामान्यतया 18 से 20 घंटे लग जाते हैं। वैज्ञानिक द्दष्टि से स्वच्छ पर्यावरण में इससे चलने का मौका मिलता है तथा इस दिन दबाव भी कम होता है।

 

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