Edited By Imran,Updated: 18 Aug, 2023 07:21 PM

गांधी परिवार अपनी पारंपरिक सीट से दूर नहीं होना चाहता। जिस सीट से पिता चुनाव लड़े हों, मां चुनाव लड़ी हों, वो सीट बेटा एक बार के बाद ही कैसे छोड़ सकता है। यहीं कारण है कि अजय राय ने प्रदेश अध्यक्ष बनते ही राहुल गांधी के लिए अमेठी सीट और प्रियंका...
लखनऊ ( अविरल सिंह ): राहुल गांधी अगर इस बार केवल अमेठी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ते हैं तो उत्तर प्रदेश की सियासत के लिए बेहद दिलचस्प चुनाव होगा। उत्तर प्रदेश कांग्रेस के नए नवेले प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने वाराणसी पहुंचते ही ऐलान किया कि राहुल गांधी अमेठी से ही चुनाव लड़ेंगे। प्रियंका गांधी के लिए अजय राय ने कहा कि अगर वो वाराणसी से चुनाव लड़ना चाहेंगी तो एक-एक कांग्रेस कार्यकर्ता उनको जिताने में जी-जान लगा देगा।
राहुल गांधी और कांग्रेस भांप गए थे अमेठी सीट पर वो 2019 में जीत नहीं पाएंगे
सर्वविदित है कि राहुल गांधी 2019 का लोकसभा चुनाव स्मृति ईरानी से हार गए थे। राहुल गांधी और कांग्रेस भांप गए थे अमेठी सीट पर वो 2019 में जीत नहीं पाएंगे, यहीं कारण था कि राहुल गांधी ने अमेठी से दूर केरल के वायनाड से चुनाव लड़ा। अजय राय के इस ऐलान के बाद भाजपा के साथ-साथ अमेठी की मौजूदा सांसद स्मृति ईरानी भी चौकन्नी हो गई होंगी। क्यों कि 21 साल के बाद कांग्रेस के हाथों से भाजपा ने अमेठी सीट छीनी थी। 1998 में भाजपा के संजय सिंह ने कांग्रेस के सतीश शर्मा को चुनाव हराया था। 21 साल बाद मिले जीत के स्वाद को स्मृति ईरानी इतनी आसानी से जाने देना नहीं चाहेंगी। स्मृति ईरानी अमेठी सीट पर 2014 में भी चुनाव लड़ी थी, लेकिन वो यह चुनाव राहुल गांधी के हाथों चुनाव हार गई। इसके बाद वो लगातार अमेठी का दौरा करती रही, लोगों से मिलती रही और 2019 में अपनी जीत मुकर्रर की ।

उत्तर प्रदेश में हाशिए पर जा चुकी कांग्रेस में नई जान फूंकने की पार्टी कोशिश कर रही है। अगर बात करें राज बब्बर के जमाने से तो जब राज बब्बर यूपी कांग्रेस के अध्यक्ष थे तब पार्टी प्रदेश में एक दम हाशिए पर थी, इसके बाद 2019 में जमीन से जुड़े नेता अजय कुमार लल्लू को यूपी कांग्रेस की बागडोर दी गई। अजय लल्लू ने उत्तर प्रदेश कांग्रेस में जान फूंकने की खूब कोशिश की लेकिन उनकी कोशिश बेकार गई। कांग्रेस यूपी में जनाधार खोती गई। लल्लू की अध्यक्षता में 2019 का चुनाव तो कांग्रेस हारी ही, इसके बाद 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस कुछ खास नहीं कर पाई। 2022 विधानसभा चुनाव में हार के बाद अजय लल्लू ने जब नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया तब से एक नए तेज तर्रार अध्यक्ष की तलाश जारी थी। बीच में दलित चेहरे बृजलाल खाबरी को प्रदेश अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी दी गई लेकिन बृजलाल खाबरी की स्वीकार्यता कांग्रेस के काडर में नहीं बन पाई। कांग्रेस को यूपी में एक ऐसे चेहरे की तलाश थी जो जनस्वीकार्य हो, और लंबे समय से कांग्रेस में हो।

वाराणसी से अजय राय से बेहतर विकल्प क्या हो सकता था, अजय राय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव भी लड़ चुके हैं और पुराने कांग्रेस के सिपाही भी हैं। अजय राय प्रदेश में कांग्रेस के लोकप्रिय नेता होने के साथ साथ अपना राजनीतिक वजूद भी रखते हैं। यहीं कारण है कि पार्टी ने यूपी कांग्रेस में नई जान फूंकने के लिए अजय राय के हाथ में कमान दी है। अब देखना यह होगा की अजय राय दम तोड़ती कांग्रेस को कैसे उत्तर प्रदेश की सियासत में खड़ी करते हैं।
भाजपा से चुनाव जीत पाना किसी भी दल के लिए टेढ़ी खीर
एक तरफ प्रदेश में भाजपा का विशाल पारंपरिक ढांचा है, तो दूसरी तरफ सरकार भी। मौजूदा समय में भाजपा से चुनाव जीत पाना किसी भी दल के लिए टेढ़ी खीर है। दूसरी तरफ प्रदेश में जोड़ तोड़ की राजनीति भी हावी है। समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, सुभासपा, महान दल, अपना दल (एस), अपना दल (के), निषाद पार्टी जैसे तमाम दल प्रदेश की सियासत में जोड़ तोड़ की राजनीति कर सत्ता में बने हुए हैं या वहां तक पहुंचना चाहते हैं। ऐसे में उत्तर प्रदेश में 2 विधायकों और एक सांसद वाली कांग्रेस कैसे इन दलों से पार पाएगी। क्यों कि 2017 के विधानसभा चुनाव में राहुल और अखिलेश यादव की खाट सभा भी कोई खास कमाल नहीं दिखा पाई थी। ऐसे में लोकसभा चुनाव में जब कुछ महीने का समय बचा हो और आपके तमाम पुराने साथी साथ छोड़ कर जा चुके हों तब अजय राय को कांग्रेस का काडर खड़ा करने में और पार्टी को सोनिया गांधी से आगे के सांसद जोड़ने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाना होगा।