Edited By Anil Kapoor,Updated: 20 May, 2023 07:47 AM

जयपुर नरेश के दीवान अमर चंद जैन की गिनती अत्यंत कुशल प्रशासकों में होती थी। वे अहिंसा के घोर समर्थक और मानवता के पुजारी थे। उन्हें राजपरिवार का विशेष स्नेह प्राप्त था। जिस कारण उन्हें दूसरे दरबारी उनसे ईर्ष्या करते थे। वे समय-समय पर उनके खिलाफ....
Inspirational context: जयपुर नरेश के दीवान अमर चंद जैन की गिनती अत्यंत कुशल प्रशासकों में होती थी। वे अहिंसा के घोर समर्थक और मानवता के पुजारी थे। उन्हें राजपरिवार का विशेष स्नेह प्राप्त था। जिस कारण उन्हें दूसरे दरबारी उनसे ईर्ष्या करते थे। वे समय-समय पर उनके खिलाफ महाराज के कान भरते रहते थे।
एक बार महाराज शिकार खेलने के लिए जाने लगे, तो उन्होंने दीवान जी को भी साथ ले लिया। दोनों जंगल में बड़ी दूर निकल गए। जब महाराज ने हिरणों का झुंड देखा तो अपना घोड़ा उनके पीछे दौड़ा दिया। आगे-आगे भयभीत हिरण थे और उनके पीछे महाराज का घोड़ा और उनके पीछे दीवान अमरचंद का घोड़ा दौड़ रहा था।

दीवान जी सोच रहे थे कि इन निरीह एवं मूक पशुओं ने महाराज का क्या बिगाड़ा है ? तभी दीवान जी को एक युक्ति सूझी। उन्होंने जोर से पुकारा, ‘‘हिरणों, मैं कहता हूं कि जहां हो, वहीं रुक जाओ। जब रक्षक ही भक्षक बन जाए तो बच कर कहां जाओगे। असल में दीवान जी ने यह बात महाराज की आंखें खोलने के लिए कही थी, पर संयोगवश हिरण अपने-आप रुक गए। इस पर दीवान जी ने कहा, ‘‘महाराज ये खड़े हैं आपके शिकार, जितने चाहिएं ले लो।’’