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गंगा में लगाई 108 बार डुबकी और स्वयं का पिण्डदान; महाकुंभ में नागा संन्यासियों का हुआ दीक्षा संस्कार

Edited By Pooja Gill,Updated: 19 Jan, 2025 02:52 PM

took 108 dips in the ganga and offered his own pind daan

प्रयागराज: उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में गंगा के किनारे श्री पंच दशनाम जूना अखाड़े के अवधूतों को आज से नागा दीक्षा देने की प्रक्रिया शुरू हो गई। यह अखाड़ा संन्यासी अखाड़ों में सबसे अधिक नागा संन्यासियों वाला है...

प्रयागराज: उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में गंगा के किनारे श्री पंच दशनाम जूना अखाड़े के अवधूतों को आज से नागा दीक्षा देने की प्रक्रिया शुरू हो गई। यह अखाड़ा संन्यासी अखाड़ों में सबसे अधिक नागा संन्यासियों वाला है। इस अखाड़े में नागा संन्यासियों की संख्या लगातार बढ़ रही है, और इसका विस्तार शनिवार से शुरू हो गया है।

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अखाड़े के 1500 अवधूत बने नागा संन्यासी
श्री पंच दशनाम जूना अखाड़े के अंतरराष्ट्रीय मंत्री महंत चैतन्य पुरी के अनुसार, इस बार 1500 से अधिक अवधूतों को नागा संन्यासी की दीक्षा दी जा रही है। नागा संन्यासी महाकुंभ के दौरान सभी का ध्यान आकर्षित करते हैं, और यही कारण है कि महाकुंभ में जूना अखाड़े के शिविर में सबसे अधिक श्रद्धालुओं की भीड़ देखने को मिलती है। जूना अखाड़े की छावनी सेक्टर 20 में स्थित है, और यह स्थान गंगा के तट पर स्थित है, जहां इन नागा संन्यासियों की परंपरा का पालन किया जा रहा है। जूना अखाड़े में अब तक 5.3 लाख से अधिक नागा संन्यासी हैं, जो इस अखाड़े की प्रमुख पहचान बन चुके हैं।

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महाकुंभ में दीक्षा की प्रक्रिया
नागा संन्यासी केवल महाकुंभ में बनते हैं, और उनकी दीक्षा की पूरी प्रक्रिया भी यहीं होती है। पहले उन्हें ब्रह्मचारी बनकर तीन साल तक गुरुओं की सेवा करनी होती है। इस दौरान वे धर्म, कर्म और अखाड़े के नियमों को समझते हैं। यदि गुरु और अखाड़ा यह तय कर लें कि वह व्यक्ति दीक्षा के योग्य है, तो उसे महाकुंभ में नागा दीक्षा दी जाती है।

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नागा दीक्षा की प्रक्रिया
महाकुंभ में नागा संन्यासी बनने की प्रक्रिया में सबसे पहले उनका मुंडन किया जाता है। इसके बाद, उन्हें गंगा में 108 बार डुबकी लगवाई जाती है। अंतिम प्रक्रिया में उनका पिण्डदान और दण्डी संस्कार भी किया जाता है। इसके बाद, अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर उन्हें नागा दीक्षा प्रदान करते हैं। महाकुंभ के दौरान, अलग-अलग जगहों पर दीक्षा लेने वाले नागा संन्यासियों को विशेष नाम दिए जाते हैं। प्रयागराज में दीक्षा लेने वालों को 'राज राजेश्वरी नागा' कहा जाता है, वहीं उज्जैन में दीक्षा लेने वालों को 'खूनी नागा', हरिद्वार में 'बर्फानी नागा' और नासिक में दीक्षा लेने वालों को 'खिचड़िया नागा' के नाम से जाना जाता है। इन नामों का मुख्य उद्देश्य यह पहचानना है कि किसने कहां दीक्षा ली है।

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