30 साल तक सेवा की, पति की तरह निभाया साथ.... फिर मौत के बाद हिंदू रीति से किया अंतिम संस्कार

Edited By Anil Kapoor,Updated: 22 Jun, 2025 12:44 PM

auraiya news served for 30 years supported her like a husband

Auraiya News: उत्तर प्रदेश के औरैया जिले से एक दिल को छू लेने वाला मामला सामने आया है, जो इंसानियत और आपसी रिश्तों की गहराई को दर्शाता है। जहां एक मुस्लिम व्यक्ति ने लगभग 30 साल तक एक मानसिक रूप से कमजोर और निराश्रित हिंदू महिला की सेवा की और...

Auraiya News: उत्तर प्रदेश के औरैया जिले से एक दिल को छू लेने वाला मामला सामने आया है, जो इंसानियत और आपसी रिश्तों की गहराई को दर्शाता है। जहां एक मुस्लिम व्यक्ति ने लगभग 30 साल तक एक मानसिक रूप से कमजोर और निराश्रित हिंदू महिला की सेवा की और उसे पत्नी की तरह अपने साथ रखा। महिला की मौत के बाद उस व्यक्ति ने हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार उसका अंतिम संस्कार भी कराया।

सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, यह घटना दिबियापुर तहसील के असेनी गांव की है। जहां के रहने वाले वाकर अली, मूल रूप से रसूलाबाद के उसरी विला गांव के निवासी हैं। करीब 30 साल पहले वे असेनी गांव आकर बस गए थे और एक खंडहरनुमा सहकारी समिति भवन में रहने लगे। इसी दौरान उनकी मुलाकात भगवती नाम की एक मानसिक रूप से कमजोर हिंदू महिला से हुई, जो निराश्रित जीवन जी रही थी। वाकर ने उसकी सेवा शुरू की और उसे पत्नी की तरह अपने साथ रखा। हालांकि दोनों ने शादी (निकाह या विवाह) नहीं की थी।

मौत और अंतिम संस्कार
शुक्रवार को 53 वर्षीय भगवती की बीमारी के चलते मौत हो गई। पहले वाकर अली उसे कब्रिस्तान ले गए, लेकिन मुस्लिम समुदाय के लोगों ने बताया कि चूंकि भगवती हिंदू थीं और उनका धर्म परिवर्तन या निकाह नहीं हुआ था, इसलिए उनका अंतिम संस्कार मुस्लिम रीति से नहीं हो सकता। तब वाकर ने हिंदू समुदाय से संपर्क किया और दिबियापुर के मुक्तिधाम घाट में पूरे हिंदू संस्कारों के अनुसार मुखाग्नि देकर अंतिम संस्कार किया।

मुस्लिम समाज का समर्थन
दिबियापुर के मुतवल्ली मसीद कादरी ने इस मामले पर कहा कि वाकर अली ने एक हिंदू महिला की सेवा की और जब उसकी मृत्यु हुई, तो समाज के सहयोग से हिंदू रीति से अंतिम संस्कार किया गया। यह इंसानियत की मिसाल है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि अगर महिला मुस्लिम होती, तो उसका दाह संस्कार नहीं किया जा सकता था, लेकिन इस मामले में धार्मिक मर्यादा और मानवीय संवेदनाओं का सम्मान हुआ।

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