भारत का कोई अधिकृत धर्म नहीं है, जजों की भाषा में यह भावना दिखनी चाहिए: शाहनवाज़ आलम

Edited By Mamta Yadav,Updated: 04 Jul, 2024 03:09 AM

this sentiment should be reflected in the language of judges shahnawaz alam

अल्पसंख्यक कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष शाहनवाज़ आलम ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज रोहित रंजन अग्रवाल द्वारा एक वाद की सुनवाई के दौरान की गयी टिप्पणी 'भोले भाले गरीबों को गुमराह कर ईसाई बनाया जा रहा है और धर्मांतरण जारी रहा तो एक दिन भारत की बहुसंख्यक आबादी...

Lucknow News: अल्पसंख्यक कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष शाहनवाज़ आलम ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज रोहित रंजन अग्रवाल द्वारा एक वाद की सुनवाई के दौरान की गयी टिप्पणी 'भोले भाले गरीबों को गुमराह कर ईसाई बनाया जा रहा है और धर्मांतरण जारी रहा तो एक दिन भारत की बहुसंख्यक आबादी अल्पसंख्यक हो जाएगी' को न्यायिक अधिकारी की भाषा की गरिमा के विपरीत और संवैधानिक नज़रिए से आपत्तिजनक बताया है।

कांग्रेस मुख्यालय से जारी बयान में शाहनवाज़ आलम ने कहा कि भारतीय न्यायिक अधिकारी किसी बहुसंख्यकवादी राज्य के जज नहीं हैं बल्कि एक धर्मनिरपेक्ष राज्य व्यवस्था के जज हैं जिसका कोई अधिकृत धर्म नहीं है। इसलिए धर्मांतरण से जुड़े वाद की सुनवाई में न्यायाधीश की ज़िम्मेदारी यह देखने तक ही है कि कोई जबरन या किसी की इच्छा के विरुद्ध तो धर्म परिवर्तन नहीं करा रहा है। यदि ऐसा पाया जाता है तो उसके लिए दंड का प्रावधान है। इसलिए जज की चिंता का विषय यह नहीं हो सकता कि धर्मांतरण से बहुसंख्यक अल्पसंख्यक हो जाएंगे या अल्पसंख्यक बहुसंख्यक हो जाएंगे।

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि हाई कोर्ट के न्यायाधीश स्तर से आने वाली ऐसी टिप्पणियों से उन सांप्रदायिक तत्वों को बढ़ावा मिलता है जो अल्पसंख्यकों पर धर्मांतरण का फ़र्ज़ी आरोप लगाकर उनका उत्पीड़न करते हैं। यह एक तरह से देश विरोधी बहुसंख्यकवादी विचार से ग्रस्त अपराधियों को 'इम्प्युनिटी' या दंड से छूट की गारंटी देने जैसा है। जिससे 1999 में ओड़िसा में हिंदुत्ववादी संगठनों से जुड़े अपराधियों द्वारा ग्राहम स्टेंस और उनके दो बच्चों को ज़िंदा जला देने जैसी घटनाओं को बढ़ावा मिलेगा।

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