कान्हा नगरी में ऐसा मंदिर जिसके निर्माण में लगे 27 साल, लेकिन मजदूरी पर एक भी पैसा नहीं हुआ खर्च

Edited By Harman Kaur,Updated: 21 May, 2023 03:47 PM

such a temple in the city of kanha in the construction of which no money

प्रेम रस से सराबोर कान्हा की नगरी मथुरा (Mathura News​​​​​​​) में अपने अन्दर रहस्य समेटे एक ऐसा अनूठा मंदिर है, जिसके निर्माण में मजदूरी और मशीनरी का एक भी पैसा नहीं लगा है....

मथुरा: प्रेम रस से सराबोर कान्हा की नगरी मथुरा (Mathura News) में अपने अन्दर रहस्य समेटे एक ऐसा अनूठा मंदिर है, जिसके निर्माण में मजदूरी और मशीनरी का एक भी पैसा नहीं लगा है। जयगुरूदेव मंदिर (Jaygurudev Temple) के नाम से मशहूर इस पूजा स्थल के निर्माण में करीब 27 साल लगे लेकिन मजदूरी और मशीनरी पर एक भी पैसा नहीं खर्च हुआ। बाबा जयगुरुदेव (Baba Jaygurudev) के एक बार कहने पर गुरु की आज्ञा मानकर उनके अनुयायियों ने इसका निर्माण किया। बाबा के अनुयाई नौकरीपेशा, व्यापारी अथवा किसान थे, इसलिए वे अपने व्यवसाय से समय निकाल कर हर साल मंदिर निर्माण में कुछ न कुछ शारीरिक योगदान देते रहे है।

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मंदिर के निर्माण में मशीनरी के प्रयोग पर भी नहीं हुआ कोई खर्च
बाबा के शिष्यों की संख्या लाखों में थी इसलिए मंदिर के निर्माण में मशीनरी के प्रयोग पर भी कोई खर्च नहीं हुआ क्योंकि, ये मशीनरी बाबा के शिष्यों ने ही उपलब्ध कराई थी। बाबा जयगुरुदेव आश्रम के राष्ट्रीय उपदेशक बाबूराम ने यूनीवार्ता को बताया कि मंदिर की आधारशिला पांच दिसंबर 1973 को रखी गई थी और 25 दिसम्बर 2001 को मंदिर बनकर तैयार हुआ। उसी दिन से मंदिर के कपाट भक्तों के लिए खोल दिए गए। इस मन्दिर की सबसे बड़ी विशेषता गुरूभक्ति का अनूठा नमूना है।

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इसमें किसी प्रकार की मूर्ति नहीं है केवल बाबा जयगुरूदेव के गुरू घूरेलाल का एक बड़ा चित्र है। बाबा समाज को संस्कारित बनाना चाहते थे। उनका कहना था कि जो व्यक्ति गुरु भक्ति से ओतप्रोत होगा वह संस्कारित बनेगा और एक प्रकार से संस्कारित समाज का निर्माण होगा। इस मन्दिर के निर्माण में 85 प्रतिशत गरीबी की रेखा से नीचे रहने वाले लोगों का पैसा लगा है।        

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रूपयों को हाथ नहीं लगाते थे बाबा जयगुरुदेव
उन्होंने बताया कि इस मंदिर की शिल्पकला सर्वधर्म समभाव का अनूठा उदाहरण प्रस्तुत करती है। यह नाम से मंदिर है गुम्बद से गुरुद्वारा, मीनारों से मस्जिद एवं प्रार्थना हाल से गिरजाघर है। उनका कहना था कि बाबा एक प्रकार से बहुत बड़े समाज सुधारक थे। हर वर्ष दिसंबर में होनेवाले वार्षिक मेले में वे दर्जनों दहेज रहित विवाह कराते थे तो होली के अवसर पर लगनेवाले मेले में दर्जनों लोगों के मतभेद दूर कर उन्हें गले मिलाते थे। वे रूपयों को हाथ नहीं लगाते थे इसलिए उनके अनुयायियों में सामान्यजन से लेकर विदेशी लोग भी उनसे बहुत अधिक प्रभावित थे।      

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बाबा का प्रवचन सुनने के लिए जयगुरुदेव साधना स्थली में आए थे कई बड़े नेता
उनके प्रवचन में 40 से पचास हजार तक लोग बैठते थे। उनके इन्हीं गुणों के कारण पूर्व प्रधानमंत्री स्व इंदिरा गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री स्व अटल बिहारी वाजपेयी, उत्तर प्रदेश के पूर्व राज्यपाल रोमेश भंडारी, पूर्व केन्द्रीय मंत्री रामनारायण, केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह, उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री स्व नारायण दत्त तिवारी, मुलायम सिंह समेत दर्जनों नेता और समाजसेवी बाबा का प्रवचन सुनने के लिए बाबा जयगुरुदेव साधना स्थली में आए थे। बाबा बड़े दूरद्दष्टा थे इसीलिए उन्होंने अपने जीवनकाल में ही अपने भक्त और शिष्य पंकज महराज को आश्रम की बागडोर संभालने के लिए तैयार किया था, जो बाबा के गोलोकवासी होने के बाद इस साधनास्थली की बागडोर बखूबी संभाले हुए हैं। बाबा जयगुरूदेव की पुण्य तिथि पर आयोजित सतसंग मेले में आज बाबा के हजारों अनुयायी मन्दिर में अपनी भावांजलि व्यक्त कर रहें हैं। 

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