Edited By PTI News Agency,Updated: 30 Mar, 2023 08:28 PM

लखनऊ, 30 मार्च (भाषा) उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने बृहस्पतिवार को नगर निगम अधिनियम और नगर पालिका अधिनियम में बदलाव करने के लिए लाए गए अध्यादेश को अपनी मंजूरी दे दी।
लखनऊ, 30 मार्च (भाषा) उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने बृहस्पतिवार को नगर निगम अधिनियम और नगर पालिका अधिनियम में बदलाव करने के लिए लाए गए अध्यादेश को अपनी मंजूरी दे दी।
इसी के साथ राज्य ने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) आरक्षण के साथ निकाय चुनाव कराने की प्रक्रिया में एक कदम और बढ़ा दिया है।
उल्लेखनीय है कि बुधवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में मंत्रिपरिषद द्वारा अध्यादेश को मंजूरी दिए जाने के बाद, इसे राज्यपाल के पास उनकी सहमति के लिए भेजा गया था।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने ब़हस्पतिवार को ‘पीटीआई-भाषा’ से बताया, ‘‘राज्यपाल ने नगर निगम और नगर पालिका अधिनियम में संशोधन संबंधी अध्यादेश को अपनी मंजूरी दे दी है।''
उन्होंने बताया कि राज्य में ओबीसी आरक्षण के लिए पिछड़ेपन की अर्हता की पहचान करने के लिए गठित आयोग की सिफारिशों के बाद नगर निगम और नगर पालिका अधिनियम में संशोधन आवश्यक हो गया था।
उच्चतम न्यायालय ने 27 मार्च को राज्य निर्वाचन आयोग को निर्देश दिया था कि ओबीसी आरक्षण के प्रावधान के साथ दो दिन में शहरी निकाय चुनाव के लिए अधिसूचना जारी करे।
उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्री ए.के. शर्मा ने कहा कि स्थानीय निकाय चुनाव की अधिसूचना पांच दिसंबर 2022 को जारी की गई थी, लेकिन इस कदम के खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय में कई याचिकाएं दायर की गईं। उन्होंने बताया कि अदालत ने पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण के लिए अर्हताओं की पहचान करने हेतु आयोग गठित करने का निर्देश दिया था।
बिना ओबीसी आरक्षण के शहरी निकाय चुनाव कराने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश के एक दिन बाद 28 दिसंबर को उत्तर प्रदेश सरकार ने शहरी स्थानीय निकाय चुनावों में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को आरक्षण प्रदान करने के लिए सभी मुद्दों पर विचार करने के वास्ते न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) अवतार सिंह की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय आयोग गठित किया था।
आयोग ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को नौ मार्च को रिपोर्ट सौंपी और इसे 10 मार्च को मंत्रिपरिषद ने स्वीकार कर लिया था।
उल्लेखनीय है कि उच्चतम न्यायालय ने ‘त्रिस्तरीय जांच’ का फार्मूला अपनाने को कहा था जिसमें आयोग का गठन किया जाता है जो स्थानीय निकाय के संदर्भ में पिछड़ेपन की ‘‘गंभीरता से जांच’ करता है, आरक्षण की सीमा तय करता है और साथ ही सुनिश्चित किया जाता है कि कुल आरक्षण 50 प्रतिशत की सीमा से ऊपर न हो।
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