Edited By Tamanna Bhardwaj,Updated: 23 Jan, 2022 07:46 PM
समाजवादी पार्टी (सपा) अध्यक्ष अखिलेश यादव के पैतृक गांव सैफई से मात्र चार किमी की दूरी पर स्थित मैनपुरी जिले की करहल विधानसभा सीट पर चुनाव लड़ने के पीछे राजनीतिक निहितार्थ तलाशे जाने लगे हैं। राजनीतिक जान...
इटावा: समाजवादी पार्टी (सपा) अध्यक्ष अखिलेश यादव के पैतृक गांव सैफई से मात्र चार किमी की दूरी पर स्थित मैनपुरी जिले की करहल विधानसभा सीट पर चुनाव लड़ने के पीछे राजनीतिक निहितार्थ तलाशे जाने लगे हैं। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि समाजवादी बेल्ट माने जाने वाले आठ जिलों की 29 विधानसभा सीटों पर सपा अपनी नजर गड़ाए हुए है। इन सीटों में 2012 में सपा सबसे मजबूत बनकर उभरी थी, वहीं 2017 के चुनाव में इस पट्टी में सपा को सर्वाधिक नुकसान भी उठाना पड़ा था। सपा अपनी खोई हुई राजनीतिक जमीन को एक बार फिर से हासिल करने के लिए बड़ा दांव लगाया है।
अखिलेश के करहल विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने का अर्थ है कि सैफई इन आठ जिलों के चुनाव का केंद्र बनेगी। सपा की चुनावी रणनीति लखनऊ में नहीं बल्कि सैफई में बैठकर बनेगी। सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव अपने चुनावी अभियान के केंद्र में इटावा और सैफई को ही रखते थे। फिरोजाबाद, एटा, कासगंज, मैनपुरी, इटावा, औरैया, कन्नौज, फरुर्खाबाद कुल आठ जिलों को समाजवादी बेल्ट माना जाता है। यह क्षेत्र प्रख्यात समाजवादी चिंतक डॉ. राममनोहर लोहिया की कर्मभूमि भी रही है। इसी वजह से समाजवादी विचारधारा का सर्वाधिक असर यहां की राजनीति में रहा है। मुलायम सिंह यादव ने अपनी राजनीति का आधार भी इसी क्षेत्र को बनाया। इन जिलों में अपना प्रभुत्व कायम करके ही वे प्रदेश की राजनीति की मुख्य धुरी बन सके। 2012 के विधानसभा चुनाव में इन आठ जिलों की 29 सीटों पर सपा के पास 25, बसपा और भाजपा के पास एक एक और एक सीट निर्दलीय प्रत्याशी के खाते में गई थी।
मैनपुरी से मुलायम, जसवंतनगर से शिवपाल सिंह यादव और कन्नौज से अखिलेश यादव और उनकी पत्नी डिंपल यादव मिलकर इस पूरी बेल्ट के समीकरण साध लेते थे। 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा ने इस बेल्ट में अपना दबदबा दिखाते हुए प्रदेश में सरकार बनाई थी। कन्नौज जिले को अपनी कर्मभूमि बनाने वाले सांसद अखिलेश यादव सूबे के मुख्यमंत्री बने। 2017 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव और उनके चाचा शिवपाल सिंह यादव के बीच उपजे राजनीतिक मतभेदों का इस क्षेत्र के चुनावी समीकरणों पर सबसे ज्यादा बुरा असर पड़ा। चुनाव परिणाम एकदम उलट गए। सपा 25 सीटों से सिर्फ छह सीटों पर सिमट गई। भाजपा एक सीट के मुकाबले 22 सीटों पर सफल रही। समाजवादी बेल्ट में सपा का इतना खराब प्रदर्शन पहले कभी नहीं रहा। अपने ही गढ़ में पराजित सपा को प्रदेश की सत्ता से बाहर होना पड़ा और भाजपा के हाथों सत्ता पहुंच गई।