Edited By Pooja Gill,Updated: 21 Jan, 2025 03:08 PM
Mahakumbh 2025: उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में लगे महाकुंभ मेले में देश दुनिया से श्रद्धालु आ रहे है। इसी मेले में दुनियाभर के साधु, संत और अघोरी भी आ रहे है और संगम में आस्था की डुबकी लगा रहे है। इतनी बड़ी संख्या में ये साधु-संत और अघोरियों को देखकर...
Mahakumbh 2025: उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में लगे महाकुंभ मेले में देश दुनिया से श्रद्धालु आ रहे है। इसी मेले में दुनियाभर के साधु, संत और अघोरी भी आ रहे है और संगम में आस्था की डुबकी लगा रहे है। इतनी बड़ी संख्या में ये साधु-संत और अघोरियों को देखकर लोगों के मनों में कई सवाल आ रहे है। लोग अघोरी साधुओं की रहस्यमयी दुनिया के बारे में सोचते है और इन्हें लेकर कई सवाल लोगों के मन में है। जैसे कि अघोरी कौन होते है? कहां रहते हैं, काले कपड़े क्यों पहनते हैं, श्मशान घाटों पर क्यों तपस्या करते हैं? अघोरियों की मृत्यु होती है या नहीं? क्या अघोरी मरे हुए इंसानों को खाते है? आज आपको इन सब सवालों के जवाब मिल जाएंगे....
अघोरियों को समाज से मतलब नहीं होता
असली अघोरियों को समाज से मतलब नहीं होता। श्री पंचायती निरंजनी अखाड़ा के महामंडलेश्वर ललितानंद महाराज का कहना है कि भगवान शंकर भी अघोरी थे। अघोरी होते हुए वैष्णव थे, जो हमने इतिहास पढ़ा, वही हमने फिर देखा। श्मशान में वही व्यक्ति साधना कर सकता है, जिसके पास किसी भी प्रकार का कोई व्यसन ना हो, दूसरे से घृणा ना हो, वही शमशान में साधना कर सकता है।
एकांत में रहते है अघोरी
जानकारी के मुताबिक, अघोरी साधु आमतौर पर एकांत में रहते हैं और सार्वजनिक रूप से कम नजर आते हैं। महाकुंभ जैसे धार्मिक आयोजनों में ही इन्हें सार्वजनिक तौर पर देखा जाता है। इस बार भारी संख्या में महाकुंभ में अघोरी आ रहे है और आस्था की डुबकी लगा रहे है।
क्या नागा साधु और अघोरी एक ही होते हैं?
जैसी भी परिस्थिति हो, उस परिस्थिति से निपटना अघोर है। अघोरी और नागा साधु में अंतर नहीं है। सिर्फ पहचानने की बात है। अघोरियों को वहीं पहचान सकता है, जिसे ज्ञान हो।
क्या अघोरी मानव मांस खाते है?
जानकारी के अनुसार, अघोरी साधु शिव को मोक्ष का मार्ग मानकर उनकी घोर साधना करते हैं। शिव को सर्वव्यापी और सर्वशक्तिमान मानते हैं। अघोरी जन मृत्यु के भय से परे माने जाते हैं और इसी वजह से श्मशान में रहने से बिल्कुल नहीं डरते, मान्यता है कि अगर ऐसा करने में उन्हें डर ना लगे, घृणा ना हो तो वे अपनी साधना में पक्के हो रहे हैं। भगवान शंकर के भस्म लगाते थे, जिसका महाकाल में इसका प्रमाण है। यह भी धारणा है कि अघोरी मानव मांस खाते हैं, शराब पीते हैं और उन्हें तांत्रिक की तरह दिखाया जाता है. लेकिन इसके पीछे पूरी सच्चाई नहीं है. जो ऐसा करता है वे सभी राक्षसी प्रवृति के लोग हैं। देवताओं का काम नहीं है।