माघ स्नान: कोरोना पर भारी पड़ा आस्था का संकल्प, प्रयागराज में 10 लाख श्रद्धालुओं ने लगाई डुबकी

Edited By Tamanna Bhardwaj,Updated: 14 Jan, 2021 01:28 PM

magh mela 10 lakh devotees take a dip in prayagraj

दुनिया के सबसे बड़े आध्यात्मिक माघ मेला के पहले स्नान पर्व मकर संक्रांति पर पतित पावनी गंगा, श्यामल यमुना और अन्त: सलिला स्वरूप में प्रवाहित रस्वती के त्रिवेणी संगम में वैश्विक महामारी कोरोना पर आस्था का सैलाब भारी पड़ा। एडीजी प्रेम प्रकाश ने बताया कि...

प्रयागराज: दुनिया के सबसे बड़े आध्यात्मिक माघ मेला के पहले स्नान पर्व मकर संक्रांति पर पतित पावनी गंगा, श्यामल यमुना और अन्त: सलिला स्वरूप में प्रवाहित रस्वती के त्रिवेणी संगम में वैश्विक महामारी कोरोना पर आस्था का सैलाब भारी पड़ा। एडीजी प्रेम प्रकाश ने बताया कि सुबह आठ बजे तक 10 लाख श्रद्धालुओं ने संगम में आस्था की डुबकी लगाई। सुरक्षा के मद्देनजर मेला क्षेत्र में सीसीटीवी और पुलिस के जवान चप्पे चप्पे पर नजर रखे हुए हैं। देश के कोने कोने से पहुंचे माघ मेले के पहले स्नान पर्व मकर संक्रांति पर त्रिवेणी के तट पर कोरोना को धता बताकर गांगा में पांच से 10 लाख श्रद्धालुओं ने डुबकी लगाई। आधिकारिक रूप से स्नान भोर के चार बजे से घोषित किया गया था लेकिन दांत कटकटाती ठंड के बावजूद श्रद्धालुओं और साधु संतों ने भोर के तीन बजे से ही संगम के पवित्र जल में आस्था की डुबकी लगाना शुरू कर दिया। भोर में स्नान करने वालों की भीड कम थी लेकिन दिन चढने के साथ ही स्नान करने वालों की भीड बढ़ती गयी। डुबकी लगाने वालों में महिलायें ,बच्चे और बूढ़े और दिव्यांग भी शामिल हैं।

मेले में विभिन्न संस्कृतियों, भाषाओं और विविधताओं का संगम दिखायी पड रहा है। कडाके की ठंड और शीतलहरी पर आस्था का विश्वास भारी पड़ रहा है। त्रिवेणी के संगम तट पर सांयण्सांय करती तेज हवा और कडाके की ठंड में पतित पावनी के जल में भोर के चार बजे से ही श्रद्धालु एवं कल्पवासी, तीर्थयात्री और सांधु-संतों ने शहर हर गंगे, ऊं नम: शिवाय श्री राम जयराम जय जय राम का उच्चारण करते हुए आस्था की डुबकी लगाई। श्रद्धालु संगम में स्नान करने के बाद सूर्य देव को अर्ध्य दिया। महिलाओं ने गंगा किनारे फूल धूप और दीप से मां गंगा से परिवार के लोगों की मंगल कामना के साथ कोरोना से मुक्ति की प्रार्थना किया। कुछ श्रद्धालुओं ने गंगा मां को दूध भी अर्पण किया। पूजन अर्चन कर गृहस्थों ने स्नान कर घाट पर बैठे पण्डे और पुरोहितों को चावल, आटा, नमक दाल, तिल चावल और तिल से बने लड्डू आदि का दान किया। प्राचीन काल से संगम तट पर जुटने वाले माघ मेले वैश्विक महामारी के बाद भी जीवंतता में आज भी कोई कमी नहीं आयी है। मेले में आस्था और श्रद्धा से सराबोर पुरानी परम्पराओं के साथ आधुनिकता के रंगबिरंगे नजारे दिखायी पड रहे हैं। भारतीय संस्कृति और आध्यात्म से प्रभावित कई विदेशी भी इस दौरान पुण्य लाभ के लिए संगम स्नान करते दिखायी दे रहे हैं।

एक तरफ जहां तीन नदियों का संगम है वहीं दूसरी तरफ तम्बुओं के अन्दर से आध्यत्म की बयार बह रही है। चारों ओर धार्मिक अनुष्ठानों के मंत्रोच्चार और हवन में प्रवाहित की जा रही सामग्रियों की भीनी भीनी खुशबू मेला क्षेत्र के वातावरण को पवित्र और सुगन्धित कर रही है। प्रयाग में कल्पवास की परंपरा सदियों पुरानी है। रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास ने इसका प्रमाण इस चौपाई से दिया है कि माघ मकरगत रबि जब होई तीरथपति आवै सब कोई। देव दनुज किन्नर नर श्रेनींण् सादर मज्जहि सकल त्रिबेनी।
 

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