धर्म के लिए समर्पित रहे ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ और महंत अवेद्यनाथ: CM योगी

Edited By Mamta Yadav,Updated: 20 Sep, 2024 09:49 PM

late mahant digvijaynath and mahant avedyanath remained dedicated to religion

गोरक्षपीठाधीश्वर एवं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शुक्रवार को कहा कि गोरक्षपीठ को साधना स्थली बनाकर सनातन धर्म के परिपूर्ण स्वरूप के अनुरूप आचरण करने वाले ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ आजीवन भारतीयता के मूल्यों और आदर्शों के लिए लड़ते...

Gorakhpur News: गोरक्षपीठाधीश्वर एवं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शुक्रवार को कहा कि गोरक्षपीठ को साधना स्थली बनाकर सनातन धर्म के परिपूर्ण स्वरूप के अनुरूप आचरण करने वाले ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ आजीवन भारतीयता के मूल्यों और आदर्शों के लिए लड़ते रहे और उनके बताए मूल्यों और आदर्शों ने भारतीयता के नवनिर्माण, पूर्वी उत्तर प्रदेश और गोरखपुर में सुसंस्कृत समाज की नींव रखी। ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ की 55वीं तथा राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ की 10वीं पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में आयोजित साप्ताहिक श्रद्धाजंलि समारोह में योगी ने कहा कि गोरक्षपीठ के उनके पूर्ववर्ती दोनों पीठाधीश्वरों ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ और राष्ट्र संत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ का पूरा जीवन देश और धर्म के लिए समर्पित था। उन्होंने धर्म को केवल उपासना विधि नहीं माना बल्कि भारतीय मनीषा में धर्म के जिसे स्वरूप की बात कही गई है, उसके अनुरूप जीवन जिया।

मुख्यमंत्री ने कहा कि धर्म के दो हेतु होते हैं। एक सांसारिक उत्कर्ष और दूसरा निःश्रेयस। दोनों ही संतों ने धर्म के इन दोनों स्वरूपों को लेकर समाज का मार्गदर्शन किया। उन्होंने कहा कि एक सभ्य और समर्थ समाज के लिए पहली आवश्यकता शिक्षा की होती है। इसी उद्देश्य को समझते हुए महंत अवेद्यनाथ ने 1932 में महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की स्थापना की। यह काम धनोपार्जन के लिए नहीं बल्कि लोक कल्याण के लिए किया गया। उन्होंने कहा कि देश के आजाद होने के बाद किसी जगह विश्वविद्यालय बनाने के लिए तत्कालीन राज्य सरकार को 50 लाख रुपये नकद या इतने की संपत्ति की जरूरत होती थी। महंत दिग्विजयनाथ ने गोरखपुर में विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए इसे पूर्वी उत्तर प्रदेश में शिक्षा का महत्वपूर्ण केंद्र बनाने के लिए शिक्षा परिषद की संस्था एमपी बालिका डिग्री कॉलेज की संपत्ति दे दी। उस समय की 50 लाख की संपत्ति का आज के समय में मूल्य 500 करोड़ रुपये होगा।योगी ने कहा कि तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में अपने समय में योगदान करते हुए महंत दिग्विजयनाथ ने 1956 में एमपी पॉलिटेक्निक और चिकित्सा शिक्षा के लिए साठ के दशक में आयुर्वेद कॉलेज की स्थापना कर दी थी। इन प्रकल्पों को आगे बढ़ाने का काम महंत अवेद्यनाथ ने किया।

योगी ने कहा कि महंत दिग्विजयनाथ और महंत अवेद्यनाथ ने सनातन धर्म की सुदृढ़ता के लिए अनेक कार्यक्रमों को बिना थके, बिना रुके, बिना डिगे तेजी से आगे बढ़ाया। हिंदू समाज को एकजुट करने के लिए उन्होंने छुआछूत मिटाने के अभियान में कभी सरकारों की परवाह नहीं की। मुख्यमंत्री ने कहा कि गोरक्षपीठ के पूज्य संतों के नेतृत्व में जो भी काम हुए, वह व्यक्तिगत नाम के लिए नहीं बल्कि हर काम देश, सनातन धर्म और समाज के नाम रहा। ऐसा इसलिए कि सनातन धर्म के अनुरूप होने वाले सभी कार्य लोक कल्याण की भावना से परिपूर्ण होते हैं। सनातन की मजबूती किसी के उत्पीड़न के लिए नहीं बल्कि लोक कल्याण के लिए होती है।

उन्होंने कहा कि सनातन धर्म चराचर जगत के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करता है। यही कारण है कि आकस्मिक आपदाओं, सम.विषम परिस्थितियों में आक्रांताओं का समाना करते हुए अहर्निश जीवंत है। उन्होंने कहा कि सनातन धर्म की यह विशेषता और महानता है कि यह आक्रांताओं को भी सद्भावना से विदा करता है। मुख्यमंत्री ने कहा कि आक्रांताओं के सपने पूरा करने के लिए कोई नक्सलवाद, आतंकवाद और अलगाववाद के नाम पर आता है लेकिन भारत में नाकाम हो जाता है। उन्होंने कहा कि कोरोना काल में भी सबने कुछ ऐसी ही स्थिति देखी होगी। कोरोना से जब दुनिया उबर नहीं पा रही तब भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है। हमारी रहन सहन, खानपान और पूजा समेत जीवन पद्धति ने हमें सभी परिस्थितियों का सामना करने के अनुकूल बनाया है। योगी ने कहा कि गोरक्षपीठ के पूज्य संतों दिग्विजयनाथ और अवेद्यनाथ की साधना और संकल्पों की सिद्धि है। निस्वार्थ संत जब संकल्प लेते हैं तो उसे पूर्ण होना ही है। संतजन के संकल्पों की पूर्णता से सबका हृदय अंतःकरण के प्रफुल्लित होता है। आज रामलला के विराजमान होने के साथ पूरी अयोध्या जगमगा रही है। उन्होंने कहा कि महंत दिग्विजयनाथ का जन्म मेवाड़ की वीरभूमि में हुआ था लेकिन उन्होंने गोरखपुर को अपनी कर्मभूमि और साधना स्थली बनाया। उनमें दिव्य दृष्टि थी। 1949 में ही उन्होंने अपनी इस दिव्य दृष्टि से देख लिया था कि अयोध्या में राम मंदिर बनेगा। आज उनके एक.एक संकल्प की पूर्ति हो रही है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि हम किसी भी क्षेत्र में कार्यरत हों, अपने दायित्वों का ईमानदारी से निर्वहन करेंगे तो यह ब्रह्मलीन महंतद्वय के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी विकसित भारत बनाने के लिए जो पंच प्रण दिए हैं उनमें नागरिक कर्तव्यों का निर्वहन सबसे महत्वपूर्ण है। श्रद्धांजलि सभा को संबोधित करते हुए वशिष्ठ आश्रम अयोध्याधाम से आए पूर्व सांसद डॉ. रामविलास वेदांती ने कहा कि सामाजिक समरसता और हिंदुत्व के नाम पर पूरे देश में किसी मठ का नाम लिया जाता है तो वह गोरखनाथ मठ है। गोरक्षपीठ हिंदुत्व और सामाजिक समरसता के नाम पर हमेशा ही मुखर रही है। उन्होंने कहा कि राम मंदिर आंदोलन का सफल होना गोरक्षपीठ की अगुवाई के बिना संभव नहीं था। महंत दिग्विजयनाथ द्वारा किए गए नेतृत्व से रामलला का प्रकटीकरण हुआ तो 1984 में जब कांग्रेस सरकार के भय से कोई संत राम मंदिर आंदोलन का नेतृत्व करने को तैयार नहीं था तब महंत अवेद्यनाथ ने यह कहकर मंदिर आंदोलन की अगुवाई की कि उन्हें गोरखनाथ मंदिर की चिंता नहीं है बल्कि रामलला की चिंता है राम मंदिर बनना ही चाहिए। उन्होंने कहा कि महंत अवेद्यनाथ नेतृत्व स्वीकार नहीं करते तो राम8आंदोलन चल नहीं पाता।

डॉ. वेदांती ने कहा कि 1973 में यदि महंत दिग्विजयनाथजीवित होते तो बांग्लादेश एक अलग देश नहीं बल्कि भारत का एक राज्य होता। उन्होंने कहा कि समाज में छुआछूत दूर करने के लिए दिग्विजयनाथ और अवेद्यनाथ ने जितना काम किया उतना किसी ने भी नही किया। वर्तमान गोरक्षपीठाधीश्वर एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व की सराहना करते हुए उन्होंने कहा कि आज किसी भी अन्य प्रांत में साम्प्रदायिक हिंसा होती है तो वहां का हिंदू चिल्लाकर कहता है कि उसे योगी आदित्यनाथ का नेतृत्व चाहिए। बांग्लादेश देश के हिंदू भी आज अपने संरक्षण के लिए योगी आदित्यनाथ का नेतृत्व चाहते हैं। श्रद्धांजलि सभा में जगद्गुरु अनंतानंद द्वाराचार्य काशीपीठाधीश्वर स्वामी डॉ. राम कमल दास वेदांती ने कहा कि महंत दिग्विजयनाथ और महंत अवेद्यनाथ ने स्वाभिमानपूर्वक धर्म और राष्ट्र की रक्षा करना सिखाया। उन्होंने कहा कि संत की भूमिका सिर्फ कुटी में चिंतन करने तक सीमित नहीं है और यही काम गोरक्षपीठ के महंतों ने किया। इस अवसर पर गोरखनाथ आश्रम जूनागढ़, गुजरात के महंत शेरनाथ, दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. पूनम टंडन, महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय गोरखपुर के कुलपति मेजर जनरल डॉ अतुल वाजपेयी, कर्नल डॉ. अरविंद कुशवाहा आदि ने अपनी संस्था की तरफ से महंत दिग्विजयनाथ और महंत अवेद्यनाथ को श्रद्धांजलि दी।

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